बलरामपुर, छत्तीसगढ़/ शिक्षा एक ऐसा आधार है जो सामाजिक और आर्थिक विकास की दिशा तय करती है। ऐसे ही विविधताओ से सम्पन्न राज्य में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती रही है, खासकर ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में इसका गहरा असर देखने को मिलता है।
इन्हीं कारकों को देखते हुए बेहतर शिक्षक व्यवस्था कर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की नींव को मजबूत करने मुख्यमंत्री के द्वारा शिक्षा क्षेत्र में युक्तियुक्तकरण नीति से सुधार की दिशा में कदम बढ़ाया गया है।
जिसका उद्देश्य स्कूलों में संसाधनों का बेहतर उपयोग, शिक्षक-छात्र अनुपात में संतुलन, और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना है।
युक्तियुक्तकरण से बलरामपुर-रामानुजगंज जिले में शिक्षको का ऐसा प्रबंधन किया गया जिससे प्रत्येक विद्यालय में पर्याप्त शिक्षकों की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके विशेषकर उन स्कूलों में जो लंबे समय से शिक्षकविहीन या एकल शिक्षकीय स्थिति में संचालित हो रहे थे।युक्तियुक्तकरण के पूर्व जिले के 14 प्राथमिक शाला और 1 माध्यमिक कुल 15 शालाओं में कोई भी शिक्षक पदस्थ नहीं थे। इसी प्रकार 363 प्राथमिक और 3 माध्यमिक शाला कुल 366 विद्यालय केवल एक शिक्षक के भरोसे संचालित हो रहे थे। ऐसी स्थिति में बच्चों के समग्र विकास के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना बड़ी बाधा थी। शिक्षकों की अनुपलब्धता न केवल शैक्षणिक गुणवत्ता को प्रभावित कर रही थी, बल्कि विद्यालयों में उपस्थिति और नामांकन दरों में भी गिरावट आ रही थी। इसके लिए प्रभावी रणनीति बनाते हुए युक्तियुक्तकरण की नीति लाई गई जिसके माध्यम से शिक्षकविहीन विद्यालयो में शिक्षको की पदस्थापन, एकल शिक्षकीय विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या के आधार पर शिक्षकों की उपलब्धता, अधिक शिक्षकों वाले विद्यालयों से न्यूनतम या बिना शिक्षक वाले विद्यालयों में समायोजन
सुनिश्चित की गई।युक्तियुक्तकरण पश्चात जिले में कोई भी स्कूल शिक्षक विहीन नहीं है।
बच्चों को मिलेगी सतत, व्यवस्थित और गुणवत्ता युक्त शिक्षा
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से जुड़ रहा हर बच्चा
जिला मुख्यालय से दूर कई गाँव है जहां पढ़ाई करने वाले अधिकांश बच्चे पहाड़ी कोरवा जनजाति समुदाय के है। शासन ने पहाड़ी कोरवा बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए स्कूल भवन भी बनाया है लेकिन नियमित शिक्षक नहीं होने से किसी तरह कुछ शिक्षकों को संलग्नीकरण कर अध्यापन का कार्य कराया जाता रहा है। शंकरगढ़ एवं कुसमी विकासखंड जिले के ऐसे क्षेत्र है जहां अधिकांश विशेष पिछड़ी जनजाति पहाड़ी कोरवाओं का परिवार निवास करता है।
विगत कई साल से नियमित शिक्षक नहीं होने से अध्यापन प्रभावित होता रहा है। बीते शिक्षा सत्र में स्कूल में शिक्षक नहीं होने से दूसरे स्कूल के शिक्षको को पढ़ाने भेजा जाता है। लेकिन यह समाधान स्थायी नहीं था। कई बार विभिन्न कारणों से शिक्षक के अवकाश में रहने से समस्याएं आ जाती थी। शिक्षक जब अवकाश पर होते, तो विद्यालयों में बच्चों की पढ़ाई रुक जाती और उनके सीखने की प्रक्रिया बाधित होती।
ऐसे में शिक्षा की नींव मजबूत होने के बजाय लगातार कमजोर होती गई। शिक्षकविहीन विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए स्कूल सिर्फ एक इमारत बनकर रह गया था।
दूरस्थ ग्रामों में बसी पहाड़ी कोरवा जनजातीय परिवार के बच्चों के लिए सरकार द्वारा समय-समय पर कई प्रयास किए गए, लेकिन बुनियादी सुविधाओं की कमी, शिक्षकविहीन विद्यालयों और दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण इन बच्चों तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पहुंचाना संभव नहीं हो पाया।
इस शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में शासन ने अतिशेष शिक्षकों को ऐसे शिक्षकविहीन और एकल शिक्षकीय विद्यालयों में नियुक्ति करने की नीति बनाई। इससे पहाड़ी कोरवा वनांचल में स्थित विद्यालयों में भी अतिशेष शिक्षक पदस्थ हुए हैं, जो अब नियमित शिक्षक होंगे और बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देंगे। युक्तियुक्तकरण काउंसिलिंग उपरांत शंकरगढ़ विकासखंड अंतर्गत 11 एवं कुसमी विकासखंड अंतर्गत 12 प्राथमिक शालाओ में एक नियमित प्रधानपाठक और एक नियमित शिक्षक मिल गया है। अब इस विद्यालय में भी शिक्षक उपलब्ध हो जाने से पहाड़ी कोरवा परिवारों के बच्चों का भी भविष्य उज्ज्वल होगा।
नियमित शिक्षको की पदस्थापना से शैक्षणिक माहौल और भी बेहतर होगा और बच्चों को सतत, व्यवस्थित और गुणवत्ता युक्त शिक्षा मिलेगी।

