Sunday, August 24, 2025
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वलेक मड़ा/सेमर का वृक्ष/लिंगों पेन मरा /ज्ञान वृक्ष / सगा सांवरी गोंडियन समुदाय का महत्वपूर्ण अंग

विशेष लेख : यूनिवर्स के रहस्यो को ऊजागर करने के दिशा मे किसी भी तत्व के 12वें कण ” गाॅड पार्टिकल्स/हिग्स बोसान/गोण्ड जिर्र ” के संसुचन से संबंधित ” वलेक मड़ा ” का मानव विकास व प्रकृति मे अति महत्वपूर्ण योगदान है, इसलिए इस वृक्ष को कोया पूनेम मे ” ज्ञान वृक्ष ” का दर्जा दिया गया है ।

इसी वृक्ष पर महान वैज्ञानिक पंहादी पारी कुपार लिगों पेन ने गहन अनुसंधान कर पहली बार यूनिवर्स के अनेक रहस्यो/विनियमो को समझने मे सफलता पाई थी । इसी वृक्ष पर अध्ययन के दौरान उन्होंने बताया कि पृथ्वी पर अन्नतकाल तक जीवन की सम्भावनाओं को बनाए रखने के लिए ” परस्पर सहजीविता ” का होना अति आवश्यक है । उन्होंने जाना कि प्रकृति मे सबसे लोकप्रिय प्रजाति ही इस पृथ्वी पर लम्बे समय तक टीक पाती है । लिंगो पेन ने सेमल वृक्ष की शाखाओं व उन परपत्तियो की स्थिति के आधार पर डार्विन से हजारो वर्ष पूर्व 750×3 = 2250 अलग-अलग प्रजाति के वनस्पतियो जीव जन्तुओ का प्रतिचयन कर एक से लेकर 7 के क्रम मे व्यवस्थित किया फिर 7 से लेकर 12 तक पुनः व्यवस्थापन कर 1 से 7 समुह वाले ग्रुप मे प्रत्येक पर 300 100×3 वनस्पतियो – जीव जंतुओं को रखकर फिर अगले 8 से 12 तक वाले समुहो पर प्रत्येक पर 30 10×3 वनस्पतियो को व्यवस्थित किया ।

वलेक मड़ा के शाखा, फुल ,फल, पत्ती और बीज के सरचनांओ से लिंगो पेन को प्रकृति का व्यवहार, यूनिवर्स के फैलाव अर्थात “पुकराल” के तारो व ग्रहो ???? की स्थिति, ब्लैक होल, बिग बैंग की घटना आदि के भी अध्ययन मे भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी । वलेक मड़ा दुनिया की उन अद्भूत प्रजातियो मे से एक है जो अपने बीज का प्रसारण सबसे अधिक दुरी तक “वायु” मे उड़ कर “पानी” के ऊपर बहकर, “जमीन” मे लुड़कर प्रसार करता है। वे विशिष्ट प्रजातियाँ जो पृथ्वी के इकोसिस्टम को बनाए रखने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है उन्हे इण्डिजीनस समुदाय अपने पेन, टोटम सिस्टम मे जगह देकर सम्मानित करते हुए उसके संरक्षण की जिम्मेदारी भी लेते है जिसे उनकी आने वाली पीढ़िया रूढ़ी-प्रथा के साथ अनंतकाल तक निभाते चली जाती है । वलेक मड़ा ऐसा अदभूत वृक्ष है जो अपने रहवास मे सूर्य की ऊर्जामयी किरणो को सबसे पहले आकर्षित करता है जिससे अलसुबह सूर्य की किरणो की चाहत मे अनेक जीव जन्तुओ का जमावड़ा इस पर बना रहता है । 

इसके साथ ही कांटो भरी तनो के साथ ही भालूओ जैसे “हनिहंटर” जीवो के लिए विपरित डिजाइन की शाखाओ की बनावट से इस पर बनी मधुमक्खियो की छत्तों की कालोनिया इस वृक्ष को “पर्यावरण संतुलन” की अद्वितीय इकाई मे तब्दील कर देती है । इसलिए “गोटूल एजुकेशनल सिस्टम” के युवक-युवतियो के लिए यह एक प्रेक्टिकल लैब व मौसम वेधशाला की ही तरह थी। इस ज्ञान वृक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका देखते हुए आज भी गोटूल लयोर इसे अपने गोटूल स्थापना के समय से ही इसे अपने गोटूल केन्द्रो मे लगाते आ रहे है ।

 इस वृक्ष के पुष्पन से ठीक पहले पुस माह मे होने वाले अपने महान “पुस कोंलाग” नृत्य अभियान के दौरान इसी वृक्ष पर सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान भी सम्पादित किया जाता है। वलेक मड़ा के छोटी कांटेदार शाखाओ का इस्तेमाल गोटूल स्टूडेंट्स अनुशासन बनाऐ रखने मे भी करते है । इसी वृक्ष के “रेखाचित्र” हमे हड़प्पा – मोहनजोदड़ो की महान सभ्यता मे भी मिली है जो हम आदिवासियों को उसके निर्माता होने का घोतक है इसके फलो से ही तैयार रेशे व “गतली” इस पृथ्वी पर सबसे पहली बार मानव को देखने को मिला जिसे हम आज “कपड़े” के नाम से जानते है । मेहुला-हड़प्पा-मोहनजोदड़ो के सबसे महत्वपूर्ण “तीन सींग धारी” देवता जिसे हम मूलवासी “पहादी पारी कुपार लिंगो” के रूप मे जानते है उन्होंने इसी वृक्ष को अपना पेन वृक्ष स्वीकार किये और यह और भी आश्चर्यजनक पहलु है कि लिगों पेन का पेन राऊड़ (शक्ति स्थल) जिस गांव मे स्थित है उसका नाम भी “वलेकनार” (वलेक = सेमल + नार = गाॅव == सेमरगांव) है इस वृक्ष से जुड़ी ऐसी असंख्य कड़िया है जो हमे अपने गोण्डीयन होने पर गर्व महसूस कराती है। जब कभी भी आप देश की राजधानी नई दिल्ली के ऊपर से फरवरी-मार्च-अप्रैल के मौसम मे हवाई जहाज से उड़ते हुए गुजरे तो आप इस महानगर मे बहुतायत मे पाए जाने वाली इस “ज्ञान वृक्ष” के लाल-गुलाबी फुलो से निकलती ज्ञान ऊर्जा तरंगो को देख कर अपने सीने मे प्रकृति के प्यार को महसूस जरूर करे…..।

केबीकेएस प्रशिक्षण शिवरो से अनुग्रहित अंश

 लेखक : नारायण मरकाम 

बुम गोटूल यूनिवर्सिटी बेड़मा माड़

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