हमारी नाक और शाख
(एक प्रेरणादायक व्यंग )
मैं अपने मामा जी को समझा रहा था कि , शादी व्याह हमें अपने रूढ़िजन्य पारंपरिक तरीके से करना चाहिए । जैसे कोयतुर संस्कृति में अनादि काल से हमारे पुरखों द्वारा होता आया है। पर हमारे मामा जी को कौन समझाए उन्होने कहा “भांचा श्री वो सब तो ठीक है मगर हमारे स्टेटस का क्या होगा? रिश्तेदारों में तो नाक ही कट जाएगी।”
हमारे मामा जी की नाक काफी लम्बी थी। उन्हे अपने पुरखों की व्यवस्था से मानों कोई मतलब ना हो उन्हे तो उनकी नाक की पड़ी थी।
आजकल इस नाक की हिफाजत सबसे ज्यादा हमारे समुदाय ने उठा रखी है। अपनी गौरमयी *संस्कृति , पुरखौती व्यवस्था को छोड़कर बाहरी आडंम्बर का चोला ओढ़कर सांस्कृतिक आतंकवाद के भंवर में उलझता जा रहा है हमारा समुदाय।
हमारे समुदाय में भी बड़े नाक वाले आजकल बहुत हो गये हैं जो अपनी नाक और शाख के चक्कर में अपनी बरसों की जमापूंजी को बर्बाद कर रहे हैं । इसी की देखासीखी का असर समुदाय में सहज ही देखा जा सकता है । ये भले कर्ज लें लें पर नाक ऊंची रहनी चाहिए। और नतीजा होता है खेत गिरवी , मकान गिरवी , रखने की नौबत आ जाती है। और आजकी समाज कि व्यवस्था ऐसी है कि , हमारा समुदाय कंगाल और दूसरा समुदाय मालामाल ।
एक दिन एक सगाबंधु मिले । बड़े दुखी थे। कहने लगे , हमारी तो नाक ही कट गई। लड़की ने भागकर विजातीय लड़के से शादी कर ली। हमारी तो नाक ही कट गई । काश अपने बच्चों को अपने पुरखों की व्यवस्था व संस्कृति का ज्ञान कराया होता।
कुछ लोग पढ़ लिख गये। दूसरों के संपर्क में आए । और शहरी चकाचौंध में अपनी नाक और शाख बनाने में मदमस्त हैं। उनकी नाक अगर कट जाए तो सारे शहर की नाक कट जाती है। अगर उन्हें विधायक का टिकिट नहीं मिला तो सारे शहर की नाक कट जाती है।
मगर मै तो मामा की बात कर रहा था जो अपनी लड़की की शादी ठाठ से करना चाहते हैं । अच्छे खासे रईस हैं मतलब मध्यम वर्गीय रईस । कोल्ड फील्ड में नौकरी जो थी। पर अब गरीब थे। बिगड़ा रईस और बिगड़े घोड़े एक ही स्वभाव के होते हैं, कभी भी बौखला जाते हैं।किसे कुचल दें ,ठिकाना नहीं। आदमी को बिगड़े रईस और बिगड़े घोड़े से दूर रहना चाहिए। मै भरसक कोशिश करता हूं। मै तो मस्ती से डोलते आते साँड को देखकर भी सड़क किनारे की इमारत के बरामदे में चढ़ जाता हूं। क्या पता हमरेच ऊपर बोहनी न हो जाए। हमेशा इनसे बच कर रहना चाहिए।
मैं मामा जी को समझा रहा था ,आपके पास नाक तो है पर आपके पास उतने पैसे नहीं हैं आप कर्ज में मत फंसे । जितने पैसे हैं उतने में ही सामाजिक व्यवस्था के अंतर्गत पारंपरिक शादी कर दें। इससे सामाजिक समरसता भी बढेगी और नुकसान भी नहीं होगा। वैसे भी हमारे समुदाय में शादी होती है तो रिवाज है सभी सगा नात गांव नातेदार हमारी मदद करते हैं और अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर लेते हैं। मुठवा ,भूमका निस्वार्थ भाव से मंडमिंगना करवा देते हैं । बदले में कुछ लेते नहीं ऊपर से पेनशक्तियां भी साक्षी होती हैं। सगे संबंधी नाते रिश्तेदारों का आशीर्वाद होता है। हल्दी चावल से काम चल जाता है। बड़े बड़े डीजे का स्थान हमारे पारंपरिक धुन ले लेते है। बरातियों का स्वागत मांदी भात से किया जाता है। कुल मिलाकर शुद्ध बचत । कोया पुनेम के विधि विधान से शादी संपन्न । अगर आप चाहें तो बचे पैसों को आप नव दम्पति को चेक देकर कर सकते हैं ताकि उनके रोजगार व उज्जवल भविष्य के लिए सही और सार्थक सिद्ध हो सकता है।
मेरी बातें अंततः उनके समझ आई और उन्होने पारंपरिक व्यवस्था अनुसार कोया पुनेम विधि अनुसार करने का संकल्प लिया। शादी बिल्कुल पारंपरिक हुई । मुठवा भूमका ,सगा संबंधियों ने आशीर्वाद दिया। उनकी नाक और शाख बच गई ।
कुछ दिन बाद मुझे फोन किया । और धन्यवाद दिया। कहा भांचा आपने मुझे सही रास्ता देकर मुझे बचा लिया। आज सब अच्छे से जीवन जी रहे हैं। इधर मैं अपने सामाजिक व्यवस्था को अपनाकर खुश हूं। या यो कहें पूर्णतः कोया पुनेमी हो चुका हूं। इस वर्ष कोया पुनेमी पवित्र धाम कचारगढ़ जाने की तैयारी में लगा हूं। और सगा जनों को भी प्रेरित कर रहा हूं। मुझे भी कचारगढ़ जाने का न्योता दिया है।
अब आपकी बारी है अपने समाज और कोया पुनेम के अनुसार विधि विधान से* *पारंपरिक मंडमिंगना की तैयारी करें। खर्चीले शादी ब्याह से बचें। हमारी नाक और शाख अपनी पुरखौती व्यवस्था में है। न कि बाहरी आडम्बरों में। आप सभी को सेवा जोहार ।
बुद्धम श्याम
( लेखक ,गीतकार,अभिनेता,रंगकर्मी,गायक, निर्देशन, निर्माता, कोयतुर समाज सेवी, )