लेखक : अनिल मरावी
है इस धरा के कर्ज तुम पर, कुछ कर गुजरने का है वक्त आज,
तू अपने अधिकार समझ ले, सफल होंगे हर अटके काज,
ये वक्त है खुद को जगाने का, अब सीख ले कुछ नया अंदाज,
कब तक तेरे जमीं पर कोई, ठग कर तुझे करता रहेगा राज,
हितैषी नहीं कोई तेरा यहां, सो कर किसने राज किया है,
हे आदिवासी अब तो जाग, अलाप लिया है बहुतों तूने,
अपने दुश्मनों की गाथा राग, होंगे सपने पूरे भी तेरे,
करने होंगे आदतें बुरी त्याग, तू अपने लक्ष्य को पाने की,
कोशिश करते रहना हर आज, निश्चित ही होगा यहां ,
एक नए सबेरे का सरताज, देखना वो दिन दूर नहीं,
जब आएगा “हमर राज”।