लेखक :- अनिल सिंह धुर्वे राष्ट्रीय युवा मोर्चा (गोंडवाना गणतंत्र पार्टी)
अनिल सिंह धुर्वे // जब मिट्टी को जब मिट्टी नापती हैं, तो कोई हीरा सिंह मरकाम जन्म लेता हैं। जब कोई इंसान खुद को मिट्टी समझकर, इस धरती पर पैदल चलता हैं, गांव-शहर, गली-डगर, पगडंडियों में बिछी धूल,आपके पांव को अपना जैसा बना लेता हैं, तब कोई हीरा सिंह मरकाम जन्म लेता हैं। मेरे लिए इस तरह के लीडर हमेशा हैरत की तरह कि कैसे कोई अपने समाज को इकट्ठे करके उसका लीडर बनता हैं और हर पल उस समाज को उठाने का प्रयत्न करता हैं।
इस वर्ष 28 अक्टूबर को दादा हीरा सिंह मरकाम जी की तीसरी पुण्यतिथि था । मेरे लिए दादा मरकाम जी का जीवनसंघर्ष बहुत बड़ा मार्गदर्शक हैं। सबसे ज़्यादा एक समाज की साइकोलॉजी बतलाता हैं। एक लीडर की पकड़ और अपनापन बतलाता हैं। बहुत साधारण परिवार में जन्म लेकर असाधारण काम करने का सूत्र बतलाता हैं।
तिवरता जैसे एक छोटे से गांव से निकलकर,खेत में मौजूद हल में लगे लोहे से ज़िन्दगी शुरू करने वाला यह शख्स इस देश के मध्य क्षेत्र में आदिवासियों-मूलनिवासियों का मसीहा तक बन जाता हैं। क्या यह मामूली बात है…? लोग सोच भी नही सकते,जो दादा हीरा सिंह मरकाम जी ने अपने जीवन में जीकर और करके दिखाया हैं।
मेरे जैसे युवा दादा हीरा सिंह मरकाम जी की राजनीति को भले कम समझते रहे हों (क्योंकि राजनीति की उतनी समझ अभी भी हम लोगों में नहीं आ पाई हैं।) मगर उनके समाजनीति पर हम जैसे युवाओं की पैनी दृष्टि थी। लोगों के घर तक उनकी पहुंच और मिलनसार होने के तरीकों को देखते थे। राजनीति में आदिवासियों-मूलनिवासियों की आवाज़ बनते देखा हैं तो समाज में हर एक के साथ खड़े होते देखा हैं। गोंडवाना समग्र विकास आंदोलन क्रांति को आगे बढ़ाते और इस कारवां को दुश्मनों से भी सुरक्षित रखने की अदा को भी देखा हैं। ज़िन्दगी के हर रंग को ख़ामोश खड़े होकर,दूर से देखा हैं।
शनिवार 28 अक्टूबर को उनकी पुण्यतिथि था । मध्य भारत के हर युवा नेता को उनके जीवन से सीखना चाहिए…! सबसे पहले तो उन गांवों (गोंडवाना गणतंत्र पार्टी युवा मोर्चा के माध्यम से इसीलिए हम युवाओं ने गोंडवाना राज्य संकल्प यात्रा के माध्यम से मंडला जिला के गांव-गांव में जाना तय किया था।) में जाना चाहिए,जिन्होंने पेनवासी दादा हीरा सिंह मरकाम जी के क़दमो को तराशा (गोंडवाना राज्य संकल्प यात्रा के दौरान मैं सुड़गांव भी पहुंचा था, वहां बहुत सारे युवा साथियों और बड़े-बुजुर्गो के साथ संवाद भी हुआ था। मंडला जिला में गोंडवाना राज्य संकल्प यात्रा के दौरान हम युवाओं ने जितने भी गांवों में कदम रखा हैं,हर गांव में पेनवासी दादा हीरा सिंह मरकाम जी के विचारों की महक और गोंडवाना समग्र विकास आंदोलन क्रांति की धमक मिली।) हैं। ताकि समझ सको,दुनिया का कोई भी लक्ष्य पाना मुश्किल नही हैं,बशर्तें मेहनत के प्रति ईमानदार हो।
पेनवासी दादा हीरा सिंह मरकाम जी खुद अपने लिए बहुत ईमानदार थे,जब वो असफल होते,सब कहते कि गोंडवाना आंदोलन खत्म,तब वह फिर जी उठते और पूरे आसमान पर छा जाते। असफलता को बर्दाश्त करना उन्हें आता था और सफलता की मिठास को गांव-गांव, घर-घर पहुंचाना भी आता था।
पेनवासी दादा हीरा सिंह मरकाम जी के बतौर गोंडवाना समग्र विकास आंदोलन क्रांति के लिए किये गए कामों को देखने की ज़रूरत हैं। तब उनकी इज़्ज़त और बढ़ जाएगी,यह गोंडवाना का सौभाग्य रहा कि आज़ादी के बाद से उसे अपनी मिट्टी से प्रेम करने वाले एक से एक लीडर मिले और उन्होने इस गोंडवाना को राष्ट्रीय ही नही बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर तक मशहूर किया। पेनवासी दादा हीरा सिंह मरकाम जी इस मिट्टी के ऐसे ही होनहार,दूरदर्शी, मेहनती और ज़मीनी लीडर थे।
उनकी दूसरी पुण्यतिथि पर नमन हैं, उम्मीद हैं उनके दिल में बसी गरीब, शोषित, पीड़ित, वंचित आदिवासियों-मूलनिवासियों की टीस और जो काम अधूरे रह गए,उन्हें हम-सब मिलकर पूरा करेंगे…!
पेनवासी दादा हीरा सिंह मरकाम जी गोंडवाना विचारधारा के एक मज़बूत स्तम्भ थे…हैं और रहेंगे। एक दिन उनके काम के प्रति सब ईमानदार होकर सोचेंगे और देखेंगे कि उन्होंने पेनवासी दादा हीरा सिंह मरकाम जी के साथ कैसा बर्ताव किया। वह अपना काम कर गए और वह लोग देखें,जिन्हें शायद दादा मरकाम जी से बेहतर लीडर,इस जन्म में नही मिलेगा। मुझे पेनवासी दादा हीरा सिंह मरकाम जी की अहमियत,रोज़, बरोज़ बढ़ती हुई दिख रही हैं। गोंडवाना की पावन भूमि के इस कृतज्ञ और मेहनती सपूत को नमन है ।