Saturday, March 15, 2025
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सर्व आदिवासी समाज ने मस्तूरी परिक्षेत्र के ग्राम इटवा में मनाया शंकर शाह / कुंवर रघुनाथ शाह का बलिदान दिवस

        रमेश चंद्र श्याम जिला अध्यक्ष बिलासपुर, छत्तीसगढ़
बिलासपुर -: सर्व आदिवासी समाज मस्तूरी परिक्षेत्र ने आज ग्राम इटवा जिला बिलासपुर में गढ़  पुरवा  के राजा रघुनाथ शाह मंडावी और युवराज रघुनाथ शाह मंडावी के बलिदान को स्मरण करते हुए भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया ! ज्ञातव्य हो कि 18 सितंबर सन् 1857 में अंग्रेज कमांडर क्लार्क ने गोंड़ राजा और युवराज को सरे बाजार में तोप के मुह पर बांध कर उड़ा दिया था।
राजा शंकर शाह के पिता का नाम राजा सुमेर शाह था, 1789 में शंकर शाह का जन्म हुआ था. उस समय राजा सुमेर सिंह मराठों के बंदी होकर सागर के किले में कैद थे, रानी बेटे शंकर शाह के साथ राजधानी गढ़ा पुरवा में आकर रहने लगी थीं. शंकर शाह जंगल में बांस छीलकर नुकीले बाण तैयार करने लगे उन्हें देख आसपास के गोंड बालक भी जुड़ गए. धनुष बाण से वे निशानेबाजी का अभ्यास करने लगे. थोड़े ही दिनों में उनकी एक मित्र मंडली तैयार हो गई, जिसे गोंटिया दल का नाम मिला. इस दौरान सन 1800 में मराठों ने सुमेर सिंह को कैद से मुक्त कर दिया और वह अपने परिवार के साथ पुरवा गढ़ में आकर रहने लगे. जहां मात्र 16 साल की उम्र में उन्होंने शंकर शाह को युवराज बना दिया. शंकर शाह गुरिल्ला युद्ध के जरिए मराठा सैनिकों पर हमले करने लगे !
1857 में जबलपुर में तैनात अंग्रेजों की 52वीं रेजीमेंट का कमांडर क्लार्क बहुत ही क्रूर था ! वह इलाके के छोटे राजाओं, जमीदारों को परेशान किया करता था और मनमाना कर वसूलता था ! इस पर तत्कालीन गोंडवाना राज्य, जो कि मौजूदा जबलपुर और मंडला का इलाका था, वहां के राजा शंकर शाह और उनके बेटे कुंवर रघुनाथ शाह ने अंग्रेज कमांडर क्लार्क के सामने झुकने से इंकार कर दिया. दोनों ने आसपास के राजाओं को अंग्रेजों के खिलाफ इकट्ठा करना शुरू किया. बताया जाता है कि दोनों बाप बेटे अच्छे कवि थे और वह अपनी कविताओं के जरिए राज्य में लोगों को क्रांति के लिए प्रेरित करते थे ! रिए मराठा सैनिकों पर हमले करने लगे ! पिता के वीरगति को प्राप्त होने के बाद शंकर शाह राजा बने हालांकि राज्य के नाम पर कुछ नहीं बचा था !
  वह अपने गोंटिया दल के माध्यम से छापामार युद्ध जारी रखे हुए थे. 20 की उम्र में उनकी शादी युद्धकला में निपुण फूलकुंवरि से हुई. जहां दो साल बाद कुंवर रघुनाथ शाह का जन्म हुआ !
1857 में जबलपुर में तैनात अंग्रेजों की 52वीं रेजीमेंट का कमांडर क्लार्क बहुत ही क्रूर था. वह इलाके के छोटे राजाओं, जमीदारों को परेशान किया करता था और मनमाना कर वसूलता था. इस पर तत्कालीन गोंडवाना राज्य, जो कि मौजूदा जबलपुर और मंडला का इलाका था, वहां के राजा शंकर शाह और उनके बेटे कुंवर रघुनाथ शाह ने अंग्रेज कमांडर क्लार्क के सामने झुकने से इंकार कर दिया. दोनों ने आसपास के राजाओं को अंग्रेजों के खिलाफ इकट्ठा करना शुरू किया. बताया जाता है कि दोनों बाप बेटे अच्छे कवि थे और वह अपनी कविताओं के जरिए राज्य में लोगों को क्रांति के लिए प्रेरित करते थे !
शंकर शाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह अपनी सेना के साथ विश्वासघाती  राजाओं और अंग्रेजों का विरोध करना शुरु कर दिया, लेकिन दोनों के पास इतनी सेना नहीं थी की वे अंग्रेजों से लड़ सकते. इसलिए शंकर शाह और रघुनाथ शाह ने अंग्रेजों और उनके पिट्ठूओ से लड़ने के लिए सामाजिक आंदोलन चलाया और लोगों को उनके खिलाफ खड़ा करने के लिए मुहिम शुरू की. इस बात की भनक जब अंग्रेजों को लगी, तो अंग्रेज डर गए, उन दिनों गोंड राजाओं का साम्राज्य जबलपुर से शुरू होकर पूरे महाकौशल तक फैला था. यदि ये सभी लोग विरोध करते तो अंग्रेजों के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती थी !
पिता पुत्र से डरे अंग्रेजों ने उनकी आवाज दबाने के लिए शंकर शाह और रघुनाथ शाह को मारने का षड्यंत्र रचा और इनके पाले हुए एक स्थानीय गैर जनजाति राजा ने अंग्रेजों को शंकर शाह और रघुनाथ शाह के बारे में जानकारी दे दी ! अंग्रेजों ने चालाकी से इन गोंड राजाओं को गिरफ्तार कर लिया और भरे बाजार जबलपुर कमिश्नरी के सामने 18 सितंबर 1857 को पिता और पुत्र को तोप के आगे बांधकर उड़ा दिया. शंकर शाह और रघुनाथ शाह ने अपनी शहादत दे दी, लेकिन अंग्रेजों के सामने घुटने नहीं टेके यद्यपि शंकर शाह और रघुनाथ शाह की याद में दोनों की प्रतिमा की स्थापान जबलपुर में की गई है, तथापि इन अमर बलिदानियों को इतिहास में वो जगह नहीं दी गई जो स्वतंत्रता संग्राम के दूसरे सेनानियों को मिली. इसके कारण को हमे समझना होगा। दरअसल हमारे  बिरसा मुंडा, वीर नारायण सिंह से लेकर शंकर शाह जैसे पुरोधा अपने लोगों के लिए, अपने राज्य, जंगल जमीन को बचाने के लिए गैर आदिवासी दिकुओं से लड़ते थे जो अंग्रेजों के पालतू थे। चालबाज और अंग्रेजों के चाटुकार दिकुओं ने बड़ी चालाकी से आदिवासियों के निशाने को अंग्रेजों की तरफ मोड़ दिया। हालत आज भी बदले नहीं हैँ। हमे अपने दोस्त और दुश्मन दोनों को पहचानना है !
 आदिवासियों  खाशकर गोंड़ों की जमीर अब जागने लगी है, देर से सही अपने इतिहास को जानने और मानने-मनाने का सिलसिला ग्रामीण अञ्चल में भी शुरू हो गया है।  ग्राम इटवा के युवा उपसरपंच मनोज जगत और उनके साथियों की इस  पहल के लिए बारम्बार जोहार इस आयोजन में बिल्हा क्षेत्र से शामिल हुए शिव नारायण चेचाम, जिला अध्ययक्ष युवा प्र. जदुनाथ सिंह उईके जिला संयुक्त सचिव, अनिल मरावी ब्लॉक सचिव, महासिंह नेताम ब्लॉक अध्यक्ष युवा प्र. सालकू मरकाम सचिव मुरकुटा चक, उत्तर राज, राकेश राज और धन्नु ध्रुव सहित  कई कार्यकर्ता।
मल्हार क्षेत्र से रिखीराम नेताम जिला महासचिव के साथ शिव प्रसाद जगत बाबूलाल मरावी सन्तोष कुमार मरावी, सहित अनेकों लोग कार्यकंम  में पहुंचे ! सीपत क्षेत्र से सर्वश्री अमृत लाल मरावी उपाध्यक्ष युवा प्र. भुलाराम मरावी अध्यक्ष, राजकुमार मरकाम, अहिलराम जगत बुधरांम  मरावी सहित कई कार्यकर्ता पहुंचे/ खैरा परिक्षेत्र से प्रेमसागर मरकाम जिला उपाध्यक्ष, रमाधार नेताम, कोशध्यक्ष खैरा परिक्षेत्र से  बहोरण सिंह खुशरों, चमरु सिंह खुशरों, अंजोर सिंह खुशरों, दिनेश नेताम, राम अवतार नेताम, प्रीतम नेताम, राजा नेताम  सहित कई सम्मानित सागजन पहुंचे।
  बिलासपुर से श्री सुभाष परते, प्रदेश अध्यक्ष युवा प्र. राजेन्द्र सिंह पोरते मीडिया प्र. बद्री खैरवार जिला संगठन मंत्री युवा प्र, भी कार्यक्रम मे उपस्थित रहे। इस कार्यक्रम का सफल संचालन श्री रिखीराम नेताम ने किया !
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