मुझे ढूंढ रहे हो?
ढूंढते – ढूंढते जब थक जाओ ।
तो एक आख़री बार,
ढूंढ़ना मुझे…,
मेरी कविताओं में ।
मैं वहीं मिलूँगी सदा ,
उनके छंदों में इठलाती,
उनके अन्तराओं में गुनगुनाती,
कभी निर्बाध हो बहती,
तो कभी अल्पविराम ले रुकती ।
और कभी उनके प्राणों में
सरिता बन बहती ।
मैं हँसती- मुस्कुराती
गाती – गुनगुनाती ।
तो कभी गुमसुम हो,
खुद में सिमटती।
वहीं मिलूँगी ।
मेरी कविताओं में ।
तुम बहुत भ्रमित हो सकते हो,
मुझसे मिलकर,
या मेरी कविताओं से मिलकर,
तुम्हें पता ही न चलेगा,
कि वास्तव में मेरी रूह बसती है कविताओं में ।
या फिर कविताओं की रूह समाई हुई है मुझमें ।
लेखक
चमेली सिंह सिदार
चमेली सिंह सिदार
मो.न. – 6264776990