रायपुर :- आरक्षण की बहाली को लेकर राज्य सरकार दो नए विधेयक ला रही है। इस विधेयक में अनुसूचित जनजाति वर्ग को 32%, अनुसूचित जाति को 13% और अन्य पिछड़ा वर्ग को 27% आरक्षण और गरीब सवर्ण को 4% आरक्षण देना तय हुआ है, पर इस विषय पर संयुक्त विपक्ष को आरक्षण का नया कोटा मंजूर नहीं है। भाजपा, जोगी कांग्रेस और बसपा अब इस आरक्षण में संशोधन प्रस्ताव देने की तैयारी कर रही है। आरक्षण बहाली के लिए बुलाए गए विधानसभा के विशेष सत्र के दूसरे दिन शुक्रवार को भाजपा के 4-5 विधायक संशोधन प्रस्ताव दे सकते हैं। जोगी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी ने मुख्यमंत्री को पहले ही पत्र लिख रखा है। विपक्ष की तरफ से एससी के लिए 16 और ईडब्ल्यूएस को 10 फीसदी आरक्षण की मांग की जा सकती है। शुक्रवार को मुख्यमंत्री ने छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग को (एससी, एसटी और ओबीसी आरक्षण) संशोधन विधेयक 2022 और शैक्षणिक संस्था (प्रवेश में आरक्षण) संशोधन विधेयक को पेश करेंगे।
झारखंड सरकार ने कुल आरक्षण 77 प्रतिशत किया
पिछले महीने झारखंड विधानसभा ने कुल आरक्षण को 60 प्रतिशत से बढ़ाते हुए 77 प्रतिशत करने से जुड़े विधेयक को सर्वसम्मति से मंजूरी दी। उसके मुताबिक, अब अनुसूचित जनजाति को 28 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा जो पहले 26 प्रतिशत था। इसी तरह ओबीसी आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत और अनुसूचित जाति का आरक्षण 10 से बढ़ाकर 12 प्रतिशत करने का प्रावधान है। इस तरह सूबे में अब कुल आरक्षण 77 प्रतिशत पहुंच जाएगा। अभी यह लागू नहीं हुआ है लेकिन माना जा रहा है हेमंत सोरेन सरकार इसके लिए नौवीं अनुसूची वाला रास्ता अपनाएगी ।
कर्नाटक ने भी पिछले महीने बढ़ाया आरक्षण
पिछले महीने कर्नाटक की बीजेपी सरकार ने भी शिक्षा और नौकरी में एससी/एसटी आरक्षण को बढ़ाने का फैसला किया। इससे जुड़े अध्यादेश को राज्यपाल की मंजूरी के बाद 1 नवंबर को राज्य के स्थापना दिवस पर लागू भी कर दिया गया है। कर्नाटक में पहले ओबीसी के लिए 32 प्रतिशत, एससी के लिए 15 प्रतिशत और एसटी के लिए 3 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था थी। अब एससी आरक्षण को 2 प्रतिशत बढ़ाकर 17 प्रतिशत और एसटी कोटा को 4 प्रतिशत बढ़ाकर 7 प्रतिशत कर दिया गया है। आरक्षण कानून की न्यायिक समीक्षा न हो सके, इसके लिए राज्य सरकार संविधान की नौवीं अनुसूची का सहारा लेगी।
हरियाणा में प्राइवेट सेक्टर जॉब में लोकल के लिए 75 प्रतिशत आरक्षण
इसी साल मार्च में हरियाणा विधानसभा ने प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों में स्थानीय युवाओं के लिए 75 प्रतिशत आरक्षण से जुड़ा कानून हरियाणा स्टेट इम्प्लॉयमेंट ऑफ लोकल कैंडिडेट्स ऐक्ट 2020 पास किया। कानून के मुताबिक, राज्य में 30 हजार रुपये महीने तक वाली प्राइवेट नौकरियों में स्थानीय उम्मीदवारों को 75 प्रतिशत रोजगार दिया जाएगा। यह 10 से ज्यादा कर्मचारी वालीं सभी कंपनियों, सोसाइटी, ट्रस्ट वगैरह पर लागू होगा। इस कानून को 10 साल के लिए लागू किया जाना है।
क्या है संविधान की 9वीं अनुसूची?
आखिर संविधान की नौवीं अनुसूची है क्या जिसका सहारा छत्तीसगढ़ से लेकर झारखंड और कर्नाटक सरकार लेना चाहती हैं? नौवीं अनुसूची को संविधान में 1951 के पहले संशोधन के जरिए जोड़ा गया था। संविधान के अनुच्छेद 31 ए और 31बी के तहत इसमें शामिल कानूनों को न्यायिक समीक्षा से संरक्षण हासिल है। आसान भाषा में कहें तो संविधान की नौंवी सूची में शामिल कानून न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर होते हैं यानी सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट उसकी समीक्षा नहीं कर सकते। इसीलिए अक्सर आरक्षण से जुड़े कानूनों को नौवीं अनुसूची में डालने की मांग होती रहती है। 1951 में नौवीं अनुसूची बनने पर भूमि सुधार और जमींदारी उन्मूलन समेत कुल 13 कानूनों को जोड़ा गया था। दरअसल, आजादी के बाद जब भारत में भूमि सुधार को शुरू किया गया तो उसे यूपी, एमपी और बिहार की अदालतों में चुनौती दी गई थी। पटना हाई कोर्ट ने 12 मार्च 1951 को बिहार भूमि सुधार कानून को अनुच्छेद 14 का उल्लंघन बताते हुए असंवैधानिक करार दे दिया। इसी के बाद केंद्र की तत्कालीन पंडित जवाहर लाल नेहरू सरकार ने संविधान में नौवीं अनुसूची को जोड़ा और इसे न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर कर दिया। फिलहाल नौवीं अनुसूची में 283 कानून हैं जिन्हें समय-समय पर संविधान संशोधनों के जरिए इसमें शामिल किया गया। खास बात ये है कि किसी कानून को असंवैधानिक करार दिए जाने के बाद अगर संविधान संशोधन के जरिए उसे नौवीं अनुसूची में डाल दिया जाता है तो वह कानून लागू हो जाता है ।
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