Sunday, July 27, 2025
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वाराणसी में ‘नशा मुक्त युवा, विकासशील भारत’ पर आध्यात्मिक शिखर सम्मेलन संपन्न, काशी घोषणापत्र हुआ स्वीकृत

वाराणसी, उत्तरप्रदेश/ युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय द्वारा आयोजित “विकासशील भारत के लिए नशा मुक्त युवा” विषय पर तीन दिवसीय युवा आध्यात्मिक शिखर सम्मेलन सोमवार को काशी के रुद्राक्ष अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन केंद्र में ऐतिहासिक “काशी घोषणापत्र” को औपचारिक रूप से अपनाने के साथ संपन्न हुआ। यह सम्मेलन न केवल नशा मुक्ति की दिशा में एक राष्ट्रीय संकल्प का प्रतीक बना, बल्कि 2047 तक नशामुक्त समाज की दिशा में भारत की यात्रा को एक निर्णायक मोड़ प्रदान करता है। आयोजन में 600 से अधिक युवा नेता, 120 से अधिक आध्यात्मिक, सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों के प्रतिनिधि, शिक्षाविद् और क्षेत्र विशेषज्ञों ने भाग लिया।

यह शिखर सम्मेलन भारत की युवा ऊर्जा, आध्यात्मिक दृष्टि और संस्थागत संकल्प का एक अद्वितीय संगम रहा, जिसमें मादक द्रव्यों के सेवन से जुड़ी प्रमुख चुनौतियों पर केंद्रित चार महत्वपूर्ण पूर्ण सत्र आयोजित किए गए। इन सत्रों में मादक पदार्थों के मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाव, तस्करी और आपूर्ति श्रृंखला की कार्यप्रणाली, जमीनी स्तर पर जन-जागरूकता अभियानों की रणनीतियाँ और पुनर्वास एवं रोकथाम में आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं की भूमिका पर गहन विचार-विमर्श हुआ। इन्हीं विचारों और सुझावों के आधार पर काशी घोषणापत्र तैयार किया गया, जो भारत के सभ्यतागत मूल्यों और युवाओं के नेतृत्व में नशा विरोधी राष्ट्रीय मुहिम का मार्गदर्शक दस्तावेज़ है। शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए केंद्रीय युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने कहा कि हमने पिछले तीन दिनों में विविध विषयों पर गहन मंथन किया है। इसी चिंतन और विचारों की सामूहिक ऊर्जा से काशी घोषणापत्र का जन्म हुआ है, जो केवल एक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि भारत की युवा शक्ति के लिए एक साझा संकल्प और दिशा है। उन्होंने कहा कि नशा मुक्ति की यह यात्रा केवल सरकारी प्रयासों से संभव नहीं, बल्कि इसमें समाज के हर स्तर पर सहयोग, विशेषकर आध्यात्मिक संस्थाओं की अग्रणी भूमिका अनिवार्य है।काशी घोषणापत्र मादक द्रव्यों के सेवन को केवल व्यक्तिगत कमजोरी नहीं, बल्कि एक बहुआयामी जन स्वास्थ्य और सामाजिक चुनौती के रूप में परिभाषित करता है। यह घोषणापत्र सरकार और समाज के समन्वित दृष्टिकोण का आह्वान करता है, जिसमें व्यसन निवारण, पुनर्वास सहायता, संयम की संस्कृति को प्रोत्साहित करने और बहु-मंत्रालयीय समन्वय के लिए संस्थागत ढांचे का निर्माण प्रस्तावित किया गया है। इसके तहत एक संयुक्त राष्ट्रीय समिति का गठन, वार्षिक प्रगति रिपोर्टिंग और सहायता सेवाओं से पीड़ितों को जोड़ने हेतु एक समर्पित राष्ट्रीय मंच की स्थापना की बात कही गई है। सम्मेलन की आध्यात्मिक ऊर्जा को आगे बढ़ाते हुए डॉ. मांडविया ने कहा कि भारत की आध्यात्मिक चेतना ने हमेशा कठिन समय में राष्ट्र का मार्गदर्शन किया है। अब समय आ गया है कि आध्यात्मिक संस्थाएँ विकसित भारत के निर्माण हेतु नशा मुक्त युवा अभियान की अगुवाई करें। यह अभियान केवल सामाजिक परिवर्तन नहीं, बल्कि आध्यात्मिक पुनर्जागरण का स्वरूप भी लेगा।

इस भाव को प्रतिध्वनित करते हुए हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल श्री शिव प्रताप शुक्ला ने सम्मेलन स्थल की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पवित्रता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि काशी की यह पावन भूमि सनातन चेतना का केंद्र है, जहाँ अनुशासन और मूल्यों के माध्यम से जीवन मोक्ष की ओर अग्रसर होता है। यह आयोजन केवल एकत्रीकरण नहीं, बल्कि ऐसे विचारों के बीज बोने का कार्य है जो भविष्य में राष्ट्रीय परिवर्तन के सशक्त वृक्ष के रूप में विकसित होंगे। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि भारत जैसा देश, जहाँ 65 प्रतिशत आबादी युवा है, नशे के दुष्चक्र में फंस जाए, तो वह अपनी संभावनाओं को खो देगा। केवल नशा मुक्त युवा ही देश के भविष्य का निर्माण कर सकते हैं। इस ऐतिहासिक सम्मेलन और काशी घोषणापत्र ने भारत को एक ऐसा मंच प्रदान किया है, जहाँ नशा मुक्ति को केवल स्वास्थ्य या अपराध से जुड़ा विषय नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनरुत्थान और युवा नेतृत्व की दिशा में एक समग्र राष्ट्रीय प्रयास के रूप में देखा गया है। यह सम्मेलन भारत के उज्ज्वल, सशक्त और नशा मुक्त भविष्य की आधारशिला के रूप में इतिहास में दर्ज हो गया है।

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