कोयतुरों का पवित्र पेनठाना काची कुपाड़ कोयली कचारगढ़ में विशिष्ट अतिथि हेतु आमंत्रित किया गया था । यही वो स्थल है जहां से बसकोया पुनेम रूपी सुयमोद ज्ञान / प्रकृति का साक्षात्कार /लिंगो को प्राप्त हुआ । इसके बाद आगे चलकर मुठवापोय पहांदी पारी कुपार लिंगों ने सगा सावरी पेंड के नीचे मंडूद कोट बच्चों को कोया पूनेम से साक्षात्कार कराया साथ ही सगा सामुदायिक सगा घटक का निर्माण कर गोत्र टोटम पेन व्यवस्था से चिन्हित किया एवं जिम्मेदारी दी ।
कहते हैं कि, जिस वृक्ष के नीचे उन्होने ध्यान साधना किया था जिस पेंड से उन्हें कोयतुरों के जीवन मार्ग का साक्षात्कार हुआ जहां ज्ञानचक्षु खुले उस पेंड को ही कोया पुनेमी गण्डजीवों का काट सावरी पेड़ को ही सगा सावरी मड़ा याने पेड़ कहा जाता है।
जिस पर्वत पर उन्होने साधना किया वो पर्वत कुपार मेट्टा के नाम से जाना जाता है। और यह वही स्थान है जहां से कोयतुर गण्डजीवों को जीवन जीने का सत्यमार्ग प्राप्त हुआ । और यही वह स्थान है जहां से हम कोयतुर समुदायों को लिंगो ने सगावेन गोंदोला युक्त सगा सामुदायिक सामाजिक व्यवस्था की जिम्मेदारी देकर मंडूद कोट बच्चों के लिए प्रथम गोटूल लांजीगढ़ में स्थापित किया साथ ही वहीं पर वेनगंगा में ले जाकर डुबकी लगवाया तथा नदी के बीच धार में जल को आंगुर में लेकर गोंडी पूनेम की शपथ दिलवाई तथा आजीवन सगा समुदाय के लिए अर्पित करोगे। क्योंकि सभी मंडूद कोट बच्चों ने यहां इसी नदी पर कोया पुनेम के मार्ग पर चलने का संकल्प लिया था यही कारण उस नदी का नाम वेनगंगा पड़ा था। गोंडी में लांजीगढ़ को गोंडी सगाना मोड्ड कहा जाता है जिसका अर्थ गोंडी सगाओं का केंद्र स्थल नाभी ।
यह गोंडों का पवित्र पेनठाना है जहां कोई मंदिर नहीं , ना ही करोड़ो का सोना ,चांदी से रत्न जड़ित मुर्ति वाला भगवान बसता है यहां तो प्रकृति प्रदत्त चिड़ी चाप मेट्टा में पहांदी कुपार का सत्य ज्ञान बसता है।
यहां न कोई महाप्रसाद न कोई महंगे चढ़ावे चढ़ते हैं । यहां तो सगा प्रेम ,सगा सेवा , सगा जोग , सगा ममत्व , सगा गोटूल बसता है। यहां यदि कुछ है तो प्रकृति /निसर्ग शक्ति का महा विराट रूप ।। प्रचंड चीड़ी चाप गुफा कमेकान आलोट ।। फड़ापेन परसापेन सजोरपेन का दृष्टांत । यही वो स्थल है जहां कोयतुरों का पवित्र पेनठाना और कोया पुनेम का महासंगम । यही वो जगह है जहां से हमारे जीवन को सही दिशा मिली है।
आज भी जरूरत है हमें अपने पवित्र पेनठाना में जाने की जहां से हमें सही सद्बुद्धि सद्गति साथ ही जीवन जीने का सत्यमार्ग को जानने का ,समझने का सुअवसर मिल सकता है। ।
आप सभी से निवेदन है अपनी आस्था का केंद्र कचारगढ़ का दर्शन करने सामूहिक होकर माघ पूर्णिमा को अवश्य जाएं। तभी कोया पुनेम जीवित रह पाएगा। और कोयतुर भी । अन्यथा सब व्यर्थ है। यह वही पवित्र कचारगढ़ है जहां पर लिंगो ने कोयतुरों को मजबूत व्यवस्था बनाकर दी जिसके बदौलत गोंडवाना में बड़े बड़े राजा महाराजाओं ने गौरवशाली राज्य खड़े किए। यहीं से हर प्रकार की खोज हुई। लिंगों ने धातुओं की खोज की । गुफाकाल , पशु काल ,कृषि काल यहां तक कि कोयतुर मान्वाल ही विकास के नये आयाम विकसित किए। यही वो समय था जब संभू गवरा ,दाई कलिया कुवारी अर्थात कली कंकाली , रायताड़ जंगो , मानको , तुरपो, गौरा गौरी ,गिरजा , हीरासुका पाटालीर जैसे महान पुरखे , महान अविष्कारक हुए। यही लोग गुफा में रहकर ध्यान साधना कर हमें सुदृढ़ सामाजिक व्यवस्था दिया गोटूल का ज्ञानकेंद्र दिया, गोत्र व्यवस्था दिया , कुलचिन्ह दिया , टोटम दिया , कुल गोंगो करने की सुदृढ़ व्यवस्था सिखाया , सगा -सोयरा , नात , समधी संबंध जोड़ने को अमरबेल रूपी व्यवस्था दिया साथ ही गोंडी धर्म गोंडी भाषा दिया । मुठवापोय पहांदी पारी कुपार लिंगों ने ही हमें प्रकृति के साथ रहने का , चलने का नि:सर्ग मार्ग दिया। जंगो दाई व कली कंकाली दाई का त्याग बलिदान सदैव अजर अमर अविनाशी है। जिस जगह पर हम कोयतुरों को सत्यज्ञान देकर आलोकित किया वही पवित्र पावन भूमि कचारगढ़ है।
आइऐ हम सब संकल्प लें प्रति वर्ष माघ पूर्णिमा को अपने पेनठाना में जाएंगे और समूह बनाकर जाएंगे तभी हमारी पहचान मान सम्मान जीवंत रहेगी।
लेखक/बुद्धम श्याम
गोंडी विचारक / गोंडी सोशियलिस्ट /अभिनेता/ गोंडीगायक / भूमका / गोंडी कलाकार /गीतकार / फिल्म निर्माता/ रंगकर्मी/ साथ ही कोयली कचारगढ़ धाम का सेवक।