कोरबा/कटघोरा: उत्तर छत्तीसगढ़ के घने हसदेव अरण्य, जिसे मध्य भारत के फेफड़े कहा जाता है, को बचाने के लिए स्थानीय आदिवासियों और समाजसेवियों का संघर्ष निरंतर जारी है। यह क्षेत्र न केवल अपनी जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह हसदेव नदी पर बने मिनीमाता बांगो बांध का कैचमेंट क्षेत्र भी है। इस बांध से जांजगीर, कोरबा और बिलासपुर जिलों की लाखों हेक्टेयर जमीन सिंचित होती है। हसदेव जंगल क्षेत्र हाथियों का प्राकृतिक रहवास और उनकी आवाजाही का मार्ग है। यहां रहने वाले आदिवासियों के लिए यह जंगल उनकी आजीविका, संस्कृति और जीवन का आधार है। “भारतीय वन्यजीव संस्थान” की एक रिपोर्ट के अनुसार, हसदेव में खनन परियोजनाओं की अनुमति से बांगो बांध की जल भराव क्षमता प्रभावित होगी और मानव-हाथी संघर्ष गंभीर रूप से बढ़ेगा।
24 नवंबर से शुरू हुई थी यह पदयात्रा
हसदेव जंगल बचाने के उद्देश्य से 24 नवंबर को न्यायधानी बिलासपुर से एक पदयात्रा शुरू की गई, जो दसवें दिन कटघोरा पहुंची। इस दौरान स्थानीय जनप्रतिनिधि और समाज के गणमान्यजन बड़ी संख्या में इस आंदोलन का हिस्सा बने।कटघोरा में पदयात्रा का नेतृत्व सातगढ़ कंवर समाज के अध्यक्ष विजय प्रभात कंवर, सर्व आदिवासी समाज युवा प्रभाग के जिलाध्यक्ष चंद्रपाल सिंह कंवर, पूर्व जिलाध्यक्ष केशी कंवर, जीएसयू के पूर्व जिलाध्यक्ष अनिल पोया और जिला प्रवक्ता सत्येन्द्र श्याम ने किया। इनके साथ ब्लॉक अध्यक्ष विजय कोर्राम, ब्लॉक कोषाध्यक्ष अरूण कुमार ओड़े, रविन्द्र कंवर, जयदीप पोर्ते समेत कई अन्य लोग इस आंदोलन में शामिल हुए।
गुलसियां की ओर बढ़ रही पद यात्रा
कटघोरा से यह पदयात्रा सुबह 8:00 बजे गुलसियां के लिए प्रस्थान कर गई। इस आंदोलन को व्यापक जनसमर्थन मिल रहा है और यह हसदेव जंगल को बचाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है। हसदेव जंगल को बचाने की यह लड़ाई केवल आदिवासी किसानों की नहीं, बल्कि पर्यावरण और हम सभी के जीवन की रक्षा की लड़ाई है।आंदोलनकारी मांग कर रहे हैं कि इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार के खनन कार्य पर तत्काल रोक लगाई जाए ताकि पर्यावरण और जल संसाधनों को संरक्षित किया जा सके।