कोंडागांव, छत्तीसगढ़/ कोंडागांव में विगत रविवार को सांसद राजकुमार रोत का आदिवासी समुदाय द्वारा पारम्परिक रीति-रिवाजों के साथ भव्य स्वागत किया गया। इस अवसर पर क्षेत्र के विभिन्न आदिवासी समुदायों के लोग अपनी विशिष्ट वेशभूषा में पहुंचे और अपनी सांस्कृतिक पहचान को प्रदर्शित किया। इस कार्यक्रम में सांसद रोत ने आदिवासी समुदायों की मौजूदा चुनौतियों और उनके संघर्ष पर जोरदार चर्चा की।
आदिवासी अधिकारों के लिए संघर्ष की बात
अपने संबोधन में सांसद राजकुमार रोत ने कहा कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी आदिवासी समुदाय जल, जंगल, जमीन और अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहा है। उन्होंने कहा कि एक तरफ देश में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर आदिवासी समाज को अब भी कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। इसका मुख्य कारण समाज में एकजुटता की कमी और शिक्षा का अभाव है। सांसद ने कहा कि सरकारों ने आदिवासी समाज के प्रति सही दृष्टिकोण नहीं अपनाया, जिसके चलते वे मूलभूत सुविधाओं से वंचित रहे। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों का जिक्र करते हुए कहा कि यही कुरीतियां आदिवासी समाज को अपने अधिकारों की लड़ाई में पीछे कर रही हैं। रोत ने आदिवासी समुदाय से अपील की कि वे सामाजिक बुराइयों से दूर रहें और एकजुट होकर अपने समाज के सशक्तिकरण के लिए काम करें ताकि आने वाली पीढ़ी एक मजबूत और सशक्त समाज का निर्माण कर सके।
धार्मिक पहचान और सांस्कृतिक संघर्ष
सांसद रोत ने अपने भाषण में यह भी कहा कि कुछ राजनीतिक पार्टियां आदिवासी समुदाय की पूजा पद्धति को खत्म करने और उनका धर्मांतरण करने का प्रयास कर रही हैं। उन्होंने कहा कि आदिवासी पूजा पद्धति अन्य धर्मों से बिल्कुल अलग है और इसे खत्म करने की कोशिश हो रही है, जिसे अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि आदिवासी समुदाय की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को बचाने के लिए अब सख्त कदम उठाए जाने की जरूरत है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय के इतिहास और संवैधानिक अधिकारों को पाठ्यक्रमों में समुचित स्थान नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने संसद में इस मुद्दे को उठाने का संकल्प लिया, ताकि आदिवासी पुरखों के इतिहास और उनके संवैधानिक अधिकारों को शिक्षा में शामिल किया जा सके।
खनन और विस्थापन का मुद्दा
सांसद रोत ने छत्तीसगढ़ में हो रहे खनन और जमीन हड़पने के मुद्दे पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि पिछले 5 वर्षों में देशभर में 18,000 हेक्टेयर वन भूमि को निजी कंपनियों को सौंप दिया गया है, जिसमें से छत्तीसगढ़ की 2,280 हेक्टेयर भूमि शामिल है। दूसरी ओर, आदिवासी जो वर्षों से वन भूमि की रक्षा कर रहे हैं, उन्हें जमीन का पट्टा नहीं दिया जा रहा है। सांसद ने कहा कि टाइगर प्रोजेक्ट के नाम पर लाखों आदिवासियों को विस्थापित किया जा रहा है, और अब नारायणपुर में थल सेना के ट्रेनिंग रेंज के लिए 54,000 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहित करने की योजना है, जिससे हजारों आदिवासियों का विस्थापन होगा। उन्होंने कहा कि इस जमीन को बचाने के लिए लड़ाई लड़ी जाएगी।
संविधान की 5वीं अनुसूची और सरकारी नीतियां
रोत ने कहा कि चाहे कोई भी सरकार रही हो, संविधान की 5वीं अनुसूची में निहित अधिकारों को धरातल पर लागू करने में वे असफल रही हैं। बिना ग्राम सभा की अनुमति के माइनिंग कंपनियों के लिए भूमि अधिग्रहण किया जा रहा है, जो कि संविधान के खिलाफ है। उन्होंने यह भी कहा कि नक्सलवाद के नाम पर छत्तीसगढ़ को बदनाम किया जा रहा है, जबकि असली मकसद आदिवासियों की जमीन छीनकर उसे उद्योगपतियों को देना है। निर्दोष आदिवासियों को फर्जी नक्सली मुठभेड़ों में मारा जा रहा है।
आदिवासी समाज के लिए एकजुटता का आह्वान
सांसद रोत ने अपने तीन दिवसीय छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र दौरे के दौरान आदिवासी समाज से एकजुटता और जागरूकता बढ़ाने की अपील की। उन्होंने आश्वस्त किया कि वे हमेशा आदिवासी समाज के साथ खड़े रहेंगे और उनके अधिकारों के लिए हर मंच पर आवाज उठाएंगे।