Sunday, April 20, 2025
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गोंडवाना संस्कृति ही विश्व संस्कृतियों की जननी है इसलिए हमें अपनी संस्कृति पर नाज है – बुद्धम श्याम

अम्बिकापुर :- कोया पुनेम गोंडवाना महासभा के द्वारा आयोजित वेभिनार जो कोया पुनेम दर्शन पर आधारित होता है जो कि दिनांक -05/10/2022 को दिन – मंगलवार को सायं 7 बजे से आरंभ हुआ  । कोया पुनेम सगा वेभिनार सीजन  के 26 सत्र के मुख्य अतिथि महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष  मनोज कमरो जी रहे।  कार्यक्रम की शुरुआत तिरूमाल महेंद्र सिंह मरपच्ची प्रदेश मीडिया प्रभारी  ने की । पहली बार तिरूमाल महेंद्र सिंह मरपच्ची जी ने गोंडी मे पाटा पढ़ा । तत्पश्चात इस वेभिनार सत्र के  वरिष्ठ प्रबोधनकार  तिरूमाल  बुद्धम श्याम  जी  ने  सर्वप्रथम गोंडवंश की वीरांगना महारानी दुर्गावती मंडावी के पुण्यतिथि पर उन्हे जीवातल सेवा जोहार करते हुए  कहा कि सगाजनों गोंडवाना संस्कृति ही विश्व संस्कृति की जननी है और हमे अपनी संस्कृति पर गर्व है।इसलिए हमे किसी और सभ्यता की आवश्यकता ही नहीं।

जिस गौरवशाली सभ्यता के जनक स्वयं संभूसेक मादाऊ की 88 जोडी है जो इस बात को सिद्ध करती* *है कि यहां सामूदायिक व्यवस्था को महत्व दिया जाता है न कि व्यक्तिवाद को। व्यक्तिवाद के लिए यहां पर कोई स्थान नहीं है ।

इस देश में वैसे तो बहुत सी आक्रांता संस्कति आई किंतु यहां कि गोंडवाना संस्कृति मूल जड़ है। ये कहीं से नहीं आई बल्कि यहीं यथावत से पुरातन कालों से पल्लवित होती रही है। यहां कोयतुर  लगभग 35 करोड़ वर्ष से रहते आ रहे। ये यहीं पैदा हुए और विश्व की महानतम संस्कृति को यहीं पर जन्म दिया। इसलिए इस धरा का नाम गोंडवाना /गण्डमादाना/गण्डधारवाना हुआ। इसे ही वेदों में स्मृतियों में ,श्रुतियों में कालांतर में  सिंगारदीप, कुयवाराष्ट्र, कोयामर्री दीप, जम्बूदीप , भारतखण्ड , बाद में आक्रांताओ ने इसे आर्यावर्त कहा। मुगलों ने इसे हिंदुस्तान , अंग्रेजों ने इंडिया कहा। सबने अपनी अपनी कही पर हमारी किसी ने न सुनी। मालिक हाथ मलता रह गया और हाथ किसी और ने मार लिया । कारण था हम सब शांत ,सरल, सीधे साधे भोले लोग , दयालू ,सहानुभूति प्रवृति के लोग थे और आज भी ऐसे ही है।  हमारी भलमनसाहत ने ही हमे ले डूबा।
गोंडवाना वो गौरवशाली सभ्यता है जिसके नाम से गोंडवाना लैंड पड़ा गोंडवाना अपने आप मे यूनिक है सुपर कांटिनेंट है। इसका कोई तोड़ नहीं ।
  इस समूचे भारत वर्ष की प्राचीन धरोहर है गोंडवाना । और इसकी प्राचीन संस्कृति । उस संस्कृति को हम कोया पुनेम के नाम से जानते हैं।  
कोया पुनेम अर्थात  वह कोख( आवरण) जहां पर कोया पुंगार के रूप में  एक बीज विकसित होकर दाई की कोख से निकलता है एक नत्तूर मतलब कोख ता नत्तूर जो कोयतुर के रूप में जन्म लेता है। इसलिए इसे तो हम इसे कोयतोड़ या कोया मर्री कहते हैं। इस तरह कोयामर्री या कोयापुत्र इसे कहते हैं। दूसरा पुनेम मतलब पुंद याने ज्ञान । ऐसा ज्ञान जो निसर्ग पर आधारित है जो बिल्कुल प्रकृति संवत है ,वैज्ञानिक है,सिस्टमेटिक है, और पहांदीपारी पारी कुपार लिंगो के द्वारा स्थापित सत्यमार्ग है। जहां कोई एकाधिकार नहीं बल्कि मानवता पर आधारित अधो संरचना है। यही कोयतुरों का लाइफस्टाइल है। जो पूरे विश्व में यूनिक है युनिवर्सल है,ब्रांडेड है  बिल्कुल शुद्ध है। जो सामुदायिकता पर आधारित है ।  इसी को विश्व की महान सभ्यता माना गया । जो आगे चलकर कोया पुनेम के रूप मे प्रचलित हुई।
सर्वप्रथम जब सभ्यता विकसित हुई तब यह पांच खण्ड का धरती था जिसे संयुंगारदीप कहा गया कारण सयुंग+आर+दीप इन तीन शब्दों की उत्पत्ति के मेल से बना जिसे गोंडी में सयुंग याने पांच , आर याने पानी ,और दीप माने धरती मतलब पानी के अंदर पांच दीप ऐसा अर्थ हुआ।  इस तरह संयुगार दीप कहलाया । ठीक उसी तरह गोंडवाना का भी अर्थ निकला पां दीपो का गण्डा या संच को गण्डवाना कहा गया वही गोंडवाना कहलाया। जिसे सभी देशों ने स्वीकार किया।  इतना महान गौरवशाली सभ्यता हमारा है। जिसके प्रथम मुखिया संभूसेक हुए। और यह जो संभूसेक है कोई व्यक्ति नही बल्कि यह तो उपाधि है। ऐसे कुल 88संभूसेक हुए जो गोंडवाना के राजा हुए। इनमे प्रथम राजा कोसोडूम थे।  जो संभूसेक के रूप में राजा हुए। इनकी पत्नी मूला दाई थी जिनके नाम पर मूल्ताई एक रेल्वेस्टेशन है।कोसोडुम पेन्कमढ़ी कोट के कोट प्रमुख /गण प्रमुख कुलीतरा का पुत्र था। इसने सभी जीवों का कल्याण साध्य हेतु मूंद शूल सर्री का त्रैगुण्यमार्ग दिया।  यही त्रैगुण्यमार्ग पुनेम का मुंजोक सिद्धांत है जिसे समझने की आवश्यकता है।  यह सभ्यता सर्वप्रथम नारमादा मे वेल विस्तार की जो अमूरकोट मे स्थित है।आज वर्तमान भारत के मध्य में स्थित वेनांचल से, सतपूड़ा तथा अमूरकोट की उपत्यकाएं सघन वनों से पर्वत शृंखलाओं से सुशोभित हो रही है। इस समुदाय ने जहां जहां तक नजरे गयी वहां वहां तक विस्तार किया। इस तरह गो़डी सगावेनों की जन्मदाई  जननी नरमादा  हुई। क्योंकि सामुदायिक व्यवस्था थी इसलिए अपनी व्यवस्था गोंदोला के रूप में विकसित की।  88 संभूसेक मे क्रमशः संभू मूला ,संभू गोंदा, संभू रमला , संभू सैया, संभू अनेदी ,संभू ठम्मा , संभू अनेदी,संभू हीरो, संभू गवरा ,संभू बेला , संभू तुलसा,संभू आली , संभू सती , संभू गिरिजा , संभू पार्वती इत्यादि।
इन संभुओं में मध्य जोड़ी संभू गवरा हुए। इसी काल मे पहांदी पारी कुपार लिंगो उत्पन्न हुए। यही आगे चलकर कोया पुनेम दर्शन के मुठवा घोषित हुए। आपने ही जीवन कल्याण के साध्य हेतु कोया पुनेम की स्थापना  की ।
 किंतु आज हम इतनी सुदृढ़ व्यवस्था होने के बाद भी दूसरों के आइडियोजी पर जीवन जीने को मजबूर है।
 जीवा पर्रो जीवा पिसीता का सिद्धात के अनुसार एक जीव दूसरे पर निर्भर रहता है ।इस पृथ्वी पर जितने भी जीव जन्तु पशु पक्षी है सभी एक दूसरे पर निर्भर है।यही प्राकृतिक नियम है  इस तरह गोंडी कथनानुसार संभू गवरा काल में रूपोलंग पहांदी पारी कुपार लिंगो पैदा हुए। और यहीं से कचारगढ़ की गाथानुसार आपने सगापेन बच्चो को जिन्हे संभूसेक ने गुफा में बंद कर दिया था । इन  सगापेन बच्चो को मुठवा हीरासुका की मदद से लिंगो ने आजाद कराया और लांजीकोट मे जाकर सगा बच्चों को सेमल पेंड के नीचे दीक्षित किया।यही से 750 गण गोत्र टैटम की उत्पति हुई। इस घटनाक्रम में हीरासुका ने अपना बलिदान देकर इन सगा बच्चो के लिए शहीद हुए ।लिंगो ने अपने युग में गढ़ व्यवस्था की रचना की। पेनजीवांग मतलब टोटेम हर एक को एक पंक्षी, एक वनस्पति , एक जानवर , एक पेंड की संरक्षण का जिम्मेदारी दिया गया। कुल 750 गोत्र गणचिन्ह हुए। इसी के आधार पर सामाजिक संरचना की शुरूआत हुई।  आगे चलकर जंगो रायतार दाई ने गोटूल की स्थापना की। गांव गांव में गोटूल का निर्माण हुआ। गोटूल वह स्थान जहां सभी प्रकार के ज्ञान अर्जित किए जाते है। कोयतुरों के संपूर्ण विकास की समुचित व्यवस्था गोटूल में होती थी।
क्योंकि सत्ता का केंद्र सतपुड़ा था  यहां हमारे पेन शक्तियो का था जो पेन्कमढ़ी कहा जाता था। पेन्कमढ़ी मतलब वो स्थान जहां पेनो का ठाना हो। इस पावर हाउस को चलाने वाले हमारे सयमुठौली मुठवा क्रमशः नारायणसुर गोंगो,  कोला सुर गोंगो, हीराज्योति , मान्को सुंगाल , तुरपोराय गोंगो थे। सभी गतिविधियां मुठवा चलाते थे।
गोंडवाना ते गोंडी गण्डजीवाना बेड़ा ।
नारनोट मावा  मंदा कांडा कांडीना मावा गोटूल बाड़ा ।
काड़ा कांडी ना अदु करीताना रोन।
मुठवा माने मायाना कुपार लिंगो।।
यह तो हुई हमारी इतनी सुंदर व्यवस्था तो हम आगे बढ़ते है। और हम पूछते है अमोट बोर  आंदन ? पर हम अपनी व्यवस्था भूल गये।
हमारी भाषा विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है जो संभूसेक के डमरू गोएंदाड़ी से निकली ।  किंतु हम आज अपनी भाषा भूल गये। यह भूलना ही हमारे विनाश का कारण बनी। भाषा मां होती है  । यह कोयताड़ दाई हमारी मां है। किंतु मां व्यथित है  कारण हमें भाषा नहीं आती।
जबकि भाषा वो तिजोरी है जिसमे संस्कृति व इतिहास संरक्षित होती है। 
इसलिए भाषा पर काम करने की आवश्यकता है। मैने भाषा सीखने का प्रण लिया है आप भी प्रण ले। कहें कि मै अपनी भाषा सीखुंगा। अगर हम दाई के सच्चे नत्तूर है तो हमे भाषा आनी बहुत जरूरी है। सभी गड़बड़ी भाषा से शुरू हुई है।
 भाषा को सीखे और सिखाएं
भाषा न होने से अर्थ का अनर्थ हो रहा है। उदाहरण स्वरूप समझते है। –
भीमाल को यदि भीमा कह दिया जाए तो वह आज का अर्जुन वाला हीरो का चित्र नजर आएगा । जो कि अमिताभ बच्चन है। जबकि एक  हमारा भीमाल पेन है।जो कि शक्ति शाली पुरखा है जिसे हम भीमाल लिंगो या कुंवार भिमाल पेन कहते है।  तो ये गड़बड़ी सिनेमा मे हो रही है।
दूसरा उदाहरण है – सतपूड़ा हमारा सत्ता का केंद्र है और पेनो की शक्तिकेंद्र पेन्कमढ़ी।। और संभूसेक की अठ्ठासी पीढ़ी के अंतिम संभू पार्वती की जोड़ी जिनको षड़यंत्र पूर्वक शंकर पार्वती बना दिया इधर पेन्कठाना को हिमालय में शिफ्ट किया। संभूसेक को विष पिलाया और सबकुछ अपने अंडर मे कर लिया नतीजन पेंन्क ठाना खण्डित हुआ। इसी तरह अगर हम हमारी व्यवस्था को छोड़कर गैर की व्ववस्था अपनाएंगे तो नुकसान तो होना ही है।
सब कुछ ठीक था । किंतु आक्रांताओ के कारण हमारा गौरवशाली इतिहास आज हमारा न रहा। 
 गोंडवाना में मातृसत्तात्मक संरचनाओं का पवित्र सिस्टम था
सर्वप्रथम गोटूल की स्थापना करने वाली दाई जंगोरायताड़ दाई  मातृशक्तियां थी जिन्हे जागृति की  दाई मानते  हैं।
इसी तरह जितने भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां या कार्य हुए वो सभी मातृशक्तियां ही थी जिन्होनै  महान कार्य समाज मे किए। जैसे पंडरी माई, पुंगार माई, मुंगुर माई, कुशार  और खेरो दाई।  ये सभी दाईयां । कुंवार भिमालपेन की बहने थीं। जिन्होने गांव बसाए , अन्नभंडारण किया ,, मेढ़ बनाए। खेरो दाई ने जड़ी बूटी वैद्य की व्यवस्था ,गावं गोसाइन की व्यवस्था सम्हाली । तो मेरा ये कहना है कि जब प्राचीन समय मे मातृशक्तियां इतनी एक्टिव है तो आज की मातृशक्तियां घर पर क्यों? उन्हे भी समाज मे प्रतिनिधित्व करना चाहिए। कोया पुनेम गोंडवाना महासभा का राष्टीय पहल  है  कि मातृशक्तियायों  का  एक अलग विंग्स है। इसलिए आप सभी महासभा से जुड़े। आपकी अपनी भाषा ,है ,संस्कति है गौरवशाली सभ्यता है । आपके अपने पेन पुरखा है इसके लिए आप अपनी व्यवस्था को जाने।
इस तरह आपने अपनी बात दस्सी मत्तोना नेंग पंडूम की बधाई देते हुए समाप्त की कार्यक्रम का समापन मुख्य अतिथि मनोज सिंह कमरो ने किया ।
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