नई दिल्ली! देश के सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि आधार कार्ड को नागरिकता का प्रमाणपत्र नहीं माना जा सकता। राजनीतिक दलों की उस याचिका को न्यायालय ने अस्वीकार कर दिया, जिसमें चुनाव आयोग को यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के उपरांत तैयार बिहार की मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने हेतु आधार कार्ड को नागरिकता के प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जाए।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत एवं न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने यह कहा कि आधार की विधिक स्थिति को उसकी परिधि से आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि आधार केवल सत्यापन के लिए प्रयुक्त दस्तावेजों में से एक हो सकता है, किन्तु यह अपने आप में न तो नागरिकता का प्रमाण है और न ही इसे अंतिम प्रमाणपत्र के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि आधार अधिनियम की धारा 9 में भी यह प्रावधान किया गया है कि आधार संख्या अथवा उसका प्रमाणीकरण किसी व्यक्ति को नागरिकता अथवा निवास का अधिकार प्रदान नहीं करता। इसके अतिरिक्त वर्ष 2018 में पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ मामले में संविधान पीठ ने अपने ऐतिहासिक निर्णय में कहा था कि केवल आधार संख्या के आधार पर किसी व्यक्ति की नागरिकता सिद्ध नहीं की जा सकती।
याचिकाकर्ताओं तथा विभिन्न राजनीतिक दलों की ओर से यह तर्क रखा गया कि चूँकि आधार बायोमेट्रिक पहचान का सशक्त साधन है, अतः उसे मतदाता पंजीकरण में नागरिकता प्रमाण के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए। इस पर न्यायालय ने कठोर रुख अपनाते हुए कहा, “आधार को नागरिकता का अंतिम प्रमाण मानने का आदेश हम नहीं दे सकते। आधार की भूमिका केवल पहचान तक सीमित है।” चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने न्यायालय के समक्ष यह तथ्य रखा कि बिहार के अनेक जिलों में आधार की संतृप्ति दर 140 प्रतिशत तक पहुँच चुकी है, जो इस बात का संकेत है कि फर्जी पहचान पत्रों का बड़े पैमाने पर उपयोग हो रहा है। वहीं केंद्र सरकार ने न्यायालय को अवगत कराया कि किस प्रकार अवैध बांग्लादेशी प्रवासी तथा रोहिंग्या समुदाय के लोग छलपूर्वक आधार कार्ड प्राप्त करने में सफल रहे हैं, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा और चुनावी पारदर्शिता पर प्रश्नचिह्न लग सकते हैं।
न्यायालय ने राजनीतिक दलों को यह परामर्श दिया कि वे अपने जमीनी कार्यकर्ताओं तथा बूथ-स्तरीय एजेंटों को सक्रिय करें, ताकि वे उन वास्तविक मतदाताओं की पहचान कर सकें जिनके नाम प्रारूप मतदाता सूची से अनजाने में विलोपित हो गए हैं। साथ ही उन्हें चुनाव आयोग के बूथ-स्तरीय अधिकारियों के समक्ष दावा प्रस्तुत करने में सहयोग दें, जिससे उन नामों को अंतिम मतदाता सूची में पुनः सम्मिलित किया जा सके। इस निर्णय के पश्चात यह स्थिति पूरी तरह स्पष्ट हो गई है कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाणपत्र नहीं है। मतदाता सूची में नामांकन अथवा संशोधन की प्रक्रिया केवल चुनाव आयोग द्वारा अधिसूचित दस्तावेजों और विधिक प्रावधानों के अनुरूप ही सम्पन्न की जाएगी।