नई दिल्ली/ देश के उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने सोमवार को राजनीतिक दलों और उनके नेताओं से सार्वजनिक मंचों पर मर्यादित भाषा का प्रयोग करने की अपील करते हुए कहा कि भारत की लोकतांत्रिक संस्कृति आपसी सम्मान, सौहार्द और संवाद की मांग करती है। उन्होंने कहा कि राजनीति में विचारों का मतभेद हो सकता है लेकिन संवाद का स्तर ऐसा होना चाहिए जो भारतीय सभ्यता और संस्कृति की गरिमा के अनुरूप हो। श्री धनखड़ ने कहा, “मैं राजनीतिक जगत के सभी लोगों से अपील करता हूँ कि कृपया परस्पर सम्मान रखें। टेलीविज़न पर या किसी भी पार्टी के नेतृत्व के विरुद्ध अभद्र भाषा का प्रयोग न करें। यह संस्कृति हमारी सभ्यता का सार नहीं है। हमें अपनी भाषा का ध्यान रखना होगा और व्यक्तिगत आक्षेपों से बचना होगा।” उपराष्ट्रपति ने स्पष्ट रूप से कहा कि अब समय आ गया है जब राजनेताओं को एक-दूसरे को गालियाँ देना बंद कर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता अन्य दलों के वरिष्ठ नेताओं को अपशब्द कहते हैं, तो यह न केवल अशोभनीय होता है बल्कि हमारी लोकतांत्रिक संस्कृति और भारतीय सभ्यता के लिए भी घातक है। श्री धनखड़ ने यह भी कहा कि हमारी राजनीति में मर्यादा और परस्पर सम्मान की पूर्ण भावना होनी चाहिए, क्योंकि यही हमारी सांस्कृतिक परंपरा की मांग है। उन्होंने कहा कि यदि हमारे राजनीतिक संवाद का स्तर ऊंचा होगा, यदि विभिन्न विचारधारा के नेता अधिक बार मिलते-जुलते रहेंगे और व्यक्तिगत स्तर पर विचारों का आदान-प्रदान करेंगे, तो न केवल आपसी समझ बढ़ेगी बल्कि राष्ट्रहित में भी बेहतर निर्णय लिए जा सकेंगे।
उन्होंने कहा कि हमें आपस में लड़ने की बजाय सहयोग की भावना को बढ़ावा देना चाहिए। हमारे भीतर शत्रुओं की तलाश करना उचित नहीं है। उन्होंने विश्वास जताया कि भारत के प्रत्येक राजनीतिक दल और हर सांसद अंततः एक राष्ट्रवादी भावना से प्रेरित होता है। सभी नेता राष्ट्र की प्रगति और समृद्धि में विश्वास रखते हैं। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि लोकतंत्र का स्वभाव ही यही है कि सत्ता परिवर्तन होता रहता है। यह परिवर्तन कभी राज्य स्तर पर, कभी पंचायत या नगरपालिका स्तर पर होता है और यह एक सामान्य लोकतांत्रिक प्रक्रिया है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि विकास की निरंतरता और हमारी सभ्यतागत परंपरा की निरंतरता बनी रहे। यह तभी संभव है जब हम लोकतांत्रिक संस्कृति का सम्मान करें और संवाद की मर्यादा बनाए रखें। उपराष्ट्रपति ने अंत में राजनीतिक नेतृत्व से आग्रह किया कि वे अपने आचरण और संवाद के माध्यम से देश को दिशा देने का कार्य करें, ताकि भारत एक सशक्त, समावेशी और सौहार्दपूर्ण लोकतंत्र के रूप में अपनी पहचान और मजबूती के साथ आगे बढ़ सके।