Gariyaband,chhattisgarh/ छत्तीसगढ़ के दूरस्थ आदिवासी अंचल गारियाबंद से निकले एक संवेदनशील युवा तुमलेश कुमार नेटी ने कैमरे को केवल एक यंत्र नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव का औज़ार बना लिया है। आज वह बिहार के जमुई ज़िले में मुसहर समुदाय की जीवन-यात्रा पर आधारित एक प्रभावशाली डॉक्यूमेंट्री फिल्म बना रहे हैं, जिसका नाम है – ‘ईंट भट्ठी से स्कूल तक’। यह फिल्म Green Hub Fellowship (2024–25) के अंतर्गत उनके इंटर्नशिप प्रोजेक्ट का हिस्सा है और इसका उद्देश्य है उस हाशिए पर खड़े समाज की आवाज़ बनना, जिसकी लड़कियाँ कभी ईंट भट्ठों में श्रमिक बनकर दिन गुज़ारती थीं, लेकिन आज अपने हाथों में किताबें और सपने लिए शिक्षा की ओर बढ़ रही हैंवहीं तुमलेश कहते हैं कि मैंने गारियाबंद में रहते हुए प्रकृति और समुदाय के बीच के रिश्तों को बहुत गहराई से महसूस किया है। इसी जुड़ाव ने मुझे एक संवेदनशील दृष्टिकोण दिया, जिसे मैं अब देश के दूसरे कोनों तक लेकर जा रहा हूँ। बिहार के जमुई में मुसहर बेटियों की यह कहानी केवल बिहार की नहीं, बल्कि पूरे भारत की एक नई उम्मीद की कहानी है। डॉक्यूमेंट्री को ‘समग्र सेवा संस्था’ के सहयोग से बनाया जा रहा है, जो वर्षों से मुसहर समुदाय में शिक्षा, बाल संरक्षण और सामाजिक पुनर्वास के क्षेत्र में कार्य कर रही है। फिल्म के माध्यम से यह दिखाने का प्रयास है कि कैसे शिक्षा, आत्म-सम्मान और अवसर किसी भी बंद समाज की दिशा बदल सकते हैं ।
फिल्म मुसहर समुदाय की उन बेटियों के इर्द-गिर्द घूमती है, जिनका बचपन ईंट भट्ठियों की तपती ज़मीन पर बीता लेकिन आज वे सरकारी स्कूलों और बालिका छात्रावासों में पढ़ रही हैं, प्रतियोगिताएं जीत रही हैं और अपने गांव की अगली पीढ़ी के लिए प्रेरणा बन रही हैं।
कई पहलुलों से जुड़ चुका है तुमलेश का कैमरा
तुमलेश ने इससे पहले Adivasi Lives Matter जैसे डिजिटल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म और Tata Steel Foundation’s Tribal Leadership Program में सक्रिय भागीदारी की है। उनकी कहानियों में जलवायु परिवर्तन, आदिवासी अधिकार, भूमि विवाद, और समुदाय की सांस्कृतिक विरासत जैसे विषय प्रमुख रूप से शामिल रहे हैं। उनकी फिल्मों की ताकत यह है कि वह कैमरे को स्थानीय भाषाओं, रंगों और स्वरों से संवाद करने के लिए प्रशिक्षित करते हैं। वह कैमरे से पूछते नहीं, दर्शाते हैं – एक आदिवासी समाज की अंदरूनी आवाज़ को दुनिया के सामने लाते हैं, वह भी उस संवेदनशीलता और सम्मान के साथ, जो अक्सर मुख्यधारा मीडिया से छूट जाता है।गारियाबंद के युवाओं के लिए बना प्रेरणा का चेहरा
तुमलेश की यह यात्रा गारियाबंद जैसे अंचलों के युवाओं के लिए एक जीवंत प्रेरणा है। यह दिखाता है कि सीमित संसाधनों और ग्रामीण पृष्ठभूमि में रहते हुए भी अगर लक्ष्य स्पष्ट हो और दृष्टिकोण सशक्त हो, तो एक साधारण कैमरा भी असाधारण बदलाव की शुरुआत कर सकता है। उनका यह प्रयास न सिर्फ एक फिल्म निर्माण है, बल्कि यह दस्तावेज है उस परिवर्तन का जो अदृश्य रहता है – उस मेहनत, उस उम्मीद और उस सामाजिक चेतना का जिसे वर्षों तक दबाया गया। ‘ईंट भट्ठी से स्कूल तक’ केवल एक डॉक्यूमेंट्री नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक दर्पण है – जो यह दिखाता है कि भारत के सबसे वंचित समुदायों में भी बदलाव की लहर उठ रही है। और इस लहर को दिशा दे रहा है गारियाबंद का एक युवा, जो अपनी मिट्टी की संवेदना को देश की धड़कन से जोड़ रहा है। आज जब भारत विविधता और विकास की बात करता है, तो ऐसे युवाओं की कहानियां राष्ट्रीय विमर्श का हिस्सा बननी चाहिए – क्योंकि बदलाव वहीं से शुरू होता है, जहां सबसे कम रोशनी पहुंची हो। तुमलेश की फिल्म वहीं रोशनी बन रही है।