Friday, August 29, 2025
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भारत-जर्मनी विज्ञान सहयोग को नई उड़ान डॉ. जितेंद्र सिंह और मार्कस सोडर की ऐतिहासिक मुलाकात

नई दिल्ली: विज्ञान और तकनीकी कूटनीति का एक अहम अध्याय तब लिखा गया जब जर्मनी के बवेरिया राज्य के मंत्री-राष्ट्रपति डॉ. मार्कस सोडर ने भारत के केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह से नई दिल्ली में मुलाकात की। इस उच्चस्तरीय बैठक ने भारत और जर्मनी के बीच वैज्ञानिक सहयोग को नई दिशा देने की नींव रखी।

डॉ. जितेंद्र सिंह और डॉ. सोडर के बीच हुई द्विपक्षीय बैठक के बाद प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता में कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम टेक्नोलॉजी, ग्रीन हाइड्रोजन, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी, बायोटेक्नोलॉजी और स्वच्छ ऊर्जा जैसे प्रमुख क्षेत्रों में साझेदारी को आगे बढ़ाने पर सहमति बनी। डॉ. जितेंद्र सिंह ने अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत द्वारा अपनाई गई मिशन-मोड नीति का ज़िक्र करते हुए कहा, “हम विज्ञान और तकनीक के माध्यम से टिकाऊ समाधान चाहते हैं, और जर्मनी इस राह का स्वाभाविक भागीदार है।”

भारत-जर्मनी का ‘2+2 सहयोग मॉडल’—जिसमें शिक्षाविदों और उद्योगों की साझेदारी शामिल है—को डॉ. सिंह ने नवाचार-आधारित वैश्विक समाधान का भविष्य बताया। उन्होंने कहा, “यह सहयोग मॉडल दोनों देशों को मिलकर नवाचार, सह-विकास और व्यावसायिक समाधान के जरिए वैश्विक चुनौतियों से निपटने में सक्षम बनाता है।” उन्होंने बायोटेक क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों को रेखांकित करते हुए बताया कि देश में 3000 से अधिक बायोटेक स्टार्टअप हैं और भारत विश्व का सबसे बड़ा वैक्सीन उत्पादक बन चुका है। साथ ही हाल ही में घोषित बायोई3 नीति का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि यह नीति ऊर्जा, अर्थव्यवस्था और रोजगार को विज्ञान के ज़रिए गति देने का प्रयास है।

भारत के अंतरिक्ष और परमाणु क्षेत्रों में हाल ही में आए सुधारों को लेकर डॉ. सिंह ने कहा कि अब ये क्षेत्र निजी भागीदारी के लिए खुले हैं, जिससे भारत-जर्मनी के बीच सहयोग की असीम संभावनाएं पैदा हुई हैं। उन्होंने भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम की मजबूती का उल्लेख करते हुए बताया कि भारत अब यूनिकॉर्न की संख्या के लिहाज़ से दुनिया में तीसरे स्थान पर है।डॉ. सिंह ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि भारत और जर्मनी के शैक्षणिक संबंधों में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। जर्मन विश्वविद्यालयों में 50,000 से अधिक भारतीय छात्र अध्ययन कर रहे हैं, जिनमें से अधिकांश एसटीईएम (STEM) विषयों से जुड़े हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि आने वाले वर्षों में भारत में अध्ययन करने वाले जर्मन छात्रों की संख्या में भी इज़ाफा होगा, खासकर प्राच्यविद्या, भारतीय संस्कृति और पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों के क्षेत्र में।

उन्होंने बर्लिन की अपनी हाल की यात्रा का ज़िक्र करते हुए बताया कि भारतीय संस्कृति और भोजन को वहां जिस तरह अपनाया जा रहा है, वह इस आपसी संबंध की गहराई का प्रतीक है। इस बैठक में भारत की ओर से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ. अभय करंदीकर, अंतरराष्ट्रीय सहयोग प्रमुख डॉ. प्रवीण सोमसुंदरम और जैव प्रौद्योगिकी विभाग की वरिष्ठ सलाहकार डॉ. अलका शर्मा भी शामिल रहे। वहीं, जर्मन प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व मंत्री-राष्ट्रपति डॉ. मार्कस सोडर ने किया, जिनके साथ भारत में जर्मन राजदूत डॉ. फिलिप एकरमैन और अन्य देशों वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद रहे।

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