लेखक//आर एन ध्रुव (धमतरी, मोबाइल नंबर 9826667518)
दिसम्बर 1920 ई. के नागपुर अधिवेशन में असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव पारित होने के बाद नगरी-सिहावा अंचल में सबसे पहले जंगल सत्याग्रह किया गया। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान देश को गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए नए-नए तरीकों का प्रयोग किया जा रहा था। ताकि अंग्रेजों की दासता से देश को मुक्ति मिल सके। नगरी सिहावा अंचल में श्यामलाल सोम के नेतृत्व में किया गया, जंगल सत्याग्रह पूरे देश में अपने तरह का एक अनूठा कार्यक्रम था। पंचम ठाकुर, मुंडरा ठाकुर, आनंदराम, हरखराम सोम, विशम्भर पटेल, शोभाराम साहू, चाली ठाकुर उनके प्रमुख सहयोगी थे। नगरी-सिहावा अंचल के वीर-सपूतों ने अन्याय और शोषण का विरोध करने के लिए नगरी से 15 कि.मी. दूर लखनपुरी जंगल में जंगल कानून का उल्लंघन कर, सत्याग्रह किए। जो इतिहास के पृष्ठों में नगरी-सिहावा जंगल सत्याग्रह के नाम से अंकित है।
नगरी-सिहावा अंचल में आदिम जातियों की जनसंख्या 80-90 प्रतिशत रही। आज भी कई गाँवों में शत प्रतिशत आदिम जातियों के लोग निवास करते हैं। जिनकी जीविकोपार्जन का प्रमुख साधन वन एवं वनोपज रहा है। वन एवं वनोपज सदियों से आर्थिक एवं सामाजिक सांस्कृतिक जीवन का आधार रहा है। जिसे अंग्रेजों द्वारा औपनिवेशिक नीति के अंतर्गत सम्मिलित कर दोहन किया गया। लोगों को जंगल से लकड़ी लाने न देना, वनोपज एकत्रित करने पर प्रतिबंध लगाना, बेगारी करवाना, झूठे आरोप लगाकर दंडित करना, कई प्रकार से उन्हें परेशान करना आदि। अंग्रेजों द्वारा उनके परम्परागत अधिकारों का हनन किया जा रहा था। जिससे लोगों में अंग्रेजी शासन के खिलाफ नाराजगी थी। असंतोष व्याप्त था । इसे चिंगारी की आवश्यकता थी जिसे लगाने का कार्य श्यामलाल सोम और उनके साथियों ने किया।
सत्याग्रह करने के लिए योजना बनाई गई। शासकीय कूप (आरक्षित वन) में घास या लकड़ी काट कर जंगल की सुरक्षा के लिए जो कानून अंग्रेजों ने बनाया है, उसका उल्लंघन करेंगे। क्योंकि शासकीय (आरक्षित वन) में साधारण जनता के जाने पर प्रतिबंध था। सत्याग्रह करने की जानकारी स्थानीय अधिकारियों को दे दी गई। स्थानीय अधिकारियों ने उच्च अधिकारियों को दी। योजना के अनुसार 21 जनवरी 1922 ई. को प्रातः लोगों की भीड़ ने जुलूस के रूप में नारा लगाते, जयघोष करते लखनपुरी के जंगल की ओर प्रस्थान किया। जहाँ घास-काटकर कानून का उल्लंघन किया गया, दूसरे दिन भीड़ उमड़ पड़ी। जिससे प्रशासन के कान खड़े हो गए। सत्याग्रहियों की बढ़ती भीड़ और उत्साह को देखते हुए तीसरे दिन रायपुर जिले का पुलिस कप्तान आई.सी.एस. बेली उपनाम, जनार्दन प्रसाद धमतरी का सर्किल इंस्पेक्टर तथा सब इंस्पेक्टर श्री रामदुलारे, सिहावा आरक्षी केन्द्र का सब इंस्पेक्टर, दर्जनों कांन्स्टेबल, विशेष कांन्स्टेबल बंदूक आदि हथियारों से लैस होकर उमरगाँव पहुँचे। पहुँचते ही सत्याग्रहियों की धर-पकड़ शुरू कर दी। लोगों के घरों की तलाशी ली। सत्याग्रहियों के अलावा सामान्य घरों की भी तलाशी ली गई। घरों में रखी हुई जलाऊ लकड़ियों को बाहर निकालकर गाँव में ही उन पर अदालती कार्यवाही की गई। जिसमें 29 सत्याग्रहियों को बेंत की सजा देकर डंडे से उनकी पिटाई की गई। कई लोगों को कठोर कारावास की सजा सुनाई गई और हथकड़ी लगाकर पैदल धमतरी और धमतरी से रायपुर ले जाकर सेंट्रल जेल में डाल दिया गया। हथकड़ी पहने सत्याग्रही जब धमतरी पहुँचते थे, तब धमतरी में बाबू-छोटेलाल श्रीवास्तव के नेतृत्व में महिलाएँ आरती लेकर, तिलक लगाकर फूल-माला पहना कर बिदाई करती थीं। इससे प्रशासन की बौखलाहट और बढ़ जाती थी। नगरी से धमतरी घना जंगल था। कई सत्याग्रहियों को मार-पीट कर घने जंगल के बीच में छोड़ दिया जाता था। वहीं बंदी बनाए गए सत्याग्रहियों को कई प्रकार से प्रलोभन दिया जाता था। उन्हें माफी माँगने के लिए कहा जाता था, परन्तु आजादी के दीवाने ये योद्धा अडिग रहते थे। झुकने के लिए बिलकुल तैयार नहीं हुए। पुलिस बल के द्वारा बर्बरता पूर्वक दमनचक्र चलाया गया। जो व्यक्ति जहाँ मिलता उसकी वहीं पिटाई करते और अमानुषिकता पूर्वक व्यवहार करते थे। स्वयं पुलिस कप्तान बेली चाबुक और हंटर से पिटाई करते थे। कांन्स्टेबल घरों में घूँसकर सामानों को फेंक देते थे, और महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार करते थे। पुलिस प्रशासन बर्बरतापूर्वक कार्यवाही करने के बाद भी संतुष्ट नहीं हुई। गाँव में तीन महिने तक पुलिस बल तैनात कर रखा गया। जिनके द्वारा ग्रामवासियों को जर्बदस्ती परेशान किया जाता था। चल-अचल संपत्ति पर टैक्स की वसूली की गई। बर्बरता का जो तांडव गाँव में किया गया, लोग उससे विचलित नहीं हुए। विदेशी हुकूमत को कड़ी चुनौती देते हुए सत्याग्रहियों ने प्रशासन को हिलाकर रख दिया।
जंगल सत्याग्रह जब प्रारंभ हुआ, तक तहसील के सभी वरिष्ठ नेता अखिल भारतीय कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने के लिए अहमदाबाद गए हुए थे। अधिवेशन से भाग लेकर जब वापस आए, तब उन्हें जंगल सत्याग्रह के बारे में जानकारी मिली। पं. सुंदरलाल शर्मा, नारायणराव मेघावाले, नत्थूजी जगताप, मास्टर मोहम्मद अब्दुल करीम, स्थानीय स्वयंसेवकों के साथ तत्काल नगरी गए। स्वयंसेवकों में शिवबोधन प्रसाद, गिरधारीलाल तिवारी, सेठ रामलाल अग्रवाल, बलदेवसिंह ठाकुर, शोभाराम देवांगन, नोहरसिंह यदु, लालजी साहेब, रामगोपाल चौबे, बिहारीलाल तिवारी, मोहन लाल मेहता तथा राष्ट्रीय विद्यालय के विद्यार्थी प्रमुख थे। नगरी पहुँचते ही इन नेताओं को बेंत, जुर्माना और कारावास की सजा देने में प्रशासन ने कोई कमी नही की। तहसील के नेताओं के पहुँचने के दूसरे दिन पं. रविशंकर शुक्ल भी नगरी पहुँचे। उन्होंने अंग्रेजी प्रशासन के द्वारा की गई बर्बरता पूर्वक कार्यवाही की कड़ी निंदा की। पीड़ितों से मुलाकात कर संवेदना व्यक्त की। तहसील एवं जिले के नेताओं के नगरी पहुँचने से लोगों का मनोबल बढ़ा, उनके उत्साह में वृद्धि हुई। नेताओं ने परामर्श दिया कि प्रांतीय एवं अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की स्वीकृति तक सत्याग्रह स्थगित रखें। उन्हें आश्वासन दिया गया कि बहुत जल्द स्वीकृति प्राप्त हो जाएगी। इस प्रकार का आश्वासन इसलिए दिया गया, क्योंकि यह सत्याग्रह कांग्रेस समिति की अनुमति के बिना ही शुरू कर दिया गया था। इसके लिए नेताओं ने पत्र व्यवहार किया। वहीं अहमदाबाद कांग्रेस अधिवेशन में एक प्रस्ताव के अनुसार सत्याग्रह करने के लिए आदेशित करने का अधिकार केवल गाँधी जी को ही दिया गया था।जंगल सत्याग्रह अनुमति प्राप्त होते तक स्थगित कर दिया गया था। परन्तु पुलिस बल के साथ ये नेता भी डटे रहे। गाँव-गाँव में घूम-घूमकर लोगों को समझा रहे थे। जनता पर किए जा रहे दमन नीति की आलोचना कर रहे थे। ऐसी स्थिति में मई 1922 ई. को नारायणराव मेघावाले को गिरफ्तार कर 8 माह और पं. सुंदरलाल शर्मा को 1 साल की सजा सुनाई गई। क्योंकि ये गाँवों में जाकर अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित करते थे। अंग्रेजी प्रशासन की चारों तरफ विरोध को देखते हुए अंग्रेजों को अपनी नीति में परिवर्तन करना पड़ा। बेगार प्रथा पूर्णतः बंद कर दी गई। जनता को और भी कई प्रकार की सुविधाएँ प्रदान की गई।
इस प्रकार नगरी-सिहावा जंगल सत्याग्रह के द्वारा अंग्रेजों की अन्याय- शोषण और बर्बरता पूर्ण नीति का जोरदार विरोध किया गया। इस सत्याग्रह में उमरगाँव के पंचमसिंह की बड़ी भूमिका रही। जिनके कारण गाँव के लोगों ने सत्याग्रह में भाग लेकर अंग्रेजी शासन का विरोध किया और यातनाएँ सहन की।
नगरी-सिहावा जंगल सत्याग्रह जिस स्थान पर हुआ था, वह ग्राम लखनपुरी गाँव की सीमा से लगी हुई है। जहाँ शासकीय कूप था। वह स्थान उमरगाँव से लगभग 5 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शोभाराम साहू ने अपनी पांण्डुलिपि में उमरगाँव जंगल सत्याग्रह लिखा हुआ है, परन्तु यह लखनपुरी गाँव की सीमा से लगी हई है। जहाँ-जंगल कानून का उल्लघन कर सत्याग्रह किया गया। जिसमें अंचल के विभिन्न गांवों के स्वयंसेवक सम्मिलित हुए। स्थानीय लोग उस स्थान को झण्डा-भरी के नाम से जानते हैं। चूकि लखनपुरी गाँव सीमा से लगी हुई शासकीय कूप में कानून का उल्लंघन कर सत्याग्रह किया गया, इसलिए इसे लखनपुरी जंगल सत्याग्रह कहा जाना चाहिए। इतिहास के सुनहरे पृष्ठों में इसका उल्लेख नगरी- सिहावा जंगल सत्याग्रह के नाम से किया गया है। लगभग 10 साल पहले तक राष्ट्रीय पर्व 15 अगस्त और 26 जनवरी के दिन स्थानीय लोग वहाँ जाकर झण्डा वंदन करते थे। सीतानदी अभ्यारण्य वन क्षेत्र होने के कारण उस क्षेत्र में अधिकारियों द्वारा प्रवेश निषिद्ध कर दिया गया है।
स्व. श्री शंकरलाल सेन जो धमतरी अंचल के जनकवि थे। लोक भाषा में कविताएँ लिखा करते थे। उन्होंने जंगल सत्याग्रह और स्व.श्री श्यामलाल सोम के बारे में कविता लिखी थी। उस कविता की कुछ पंक्तियाँ निम्नानुसार है।
सत्याग्रह सब जेल भरिन सब, बाइस नगरी के मैदान ।
जंगल सत्याग्रह में भैया, नौकरशाह भये परेशान ।।
श्यामलाल जी सोम डटे जहाँ लोगन तितर-बीतर नहीं जाये।त
न-मन-धन सब अर्पण करके, एक आवाज बुलंद कराये ।।
का गति बरनौं आंदोलन के, दाई-बहिनी तक कोड़ा खाये । कतको झन ल जेल में भेझिन, लाठी मार गने नहीं जाये ।।
उपर्युक्त पंक्तियों से स्पष्ट पता चलता है कि नगरी-सिहावा के जंगल सत्याग्रह से अंग्रेजी शासन परेशान हो गई थी। सत्याग्रह में महिलाओं ने भी बढ़-चढ़ कर भाग लिया था, परन्तु वे गुमनामी के अंधेरे में खो गई है।
जंगल सत्याग्रह में भाग लेने के कारण आई.पी.सी. 379/109 के तहत् दिनांक 26/01/1922 के एस.डी.एम. धमतरी मि. आर.जे. बैद की अदालत के द्वारा निम्नांकित 29 सत्याग्रहियों को बेंत व कारावास की सजा सुनवाई गई । 1 नाथू पिता जुगरू गोंड़ उमरगाँव,25 अर्थदण्ड, 2 लोकनाथ पिता पंडित उमरगाँव 25 अर्थदण्ड, 3 कालू पिता हगरू गोंड़ उमरगाँव 30 बेंत , 4 कोन्दू गोंड़ उमरगाँव 30 बेंत, 5 रतन पिता देवसिंह उमरगाँव 80 रु अर्थदण्ड, 3 माह कठोर कारावास, 6 पण्डो पिता नाथू गोंड़ उमरगाँव 60 रु, तीन माह कठोर कारावास, 7 धान्धू पिता दुरू गोंड़ 20 बेंत, 8 भोंदू गोंड़ उमरगाँव 30 बेंत ,9 धानू पिता उमेंदी गोंड़ उमरगाँव 20 बेंत,10 पुसऊ पिता विश्राम गोंड़ 25 रू अर्थदण्ड, 11 दोरा पिता जुगरू 30 बेंत, 12 शोभा पिता रामू गोंड़ 25 रू अर्थदण्ड, 13 भीखू पिता डेमो गोंड़ 25 रू अर्थदण्ड, 14 लक्ष्मण गोंड़ 20 बेंत,15 भूरवा मरार उमरगाँव 10 बेंत,16 पकला गोंड़ 25 बेंत, 17 मेंदा गोंड़ 25 बेंत,18 नरसिंह राऊत 10 बेंत,19 सुखरू गोंड़ 27 बेंत, 20 दुकालू गोंड़ 27 बेंत,21 लक्षन पिता पंडो उमरगाँव 20 बेंत, 22 धरम गोंड़ पाल्टी 27 बेंत, 23 सोमारो पिता कोछेला गोंड 20 बेंत, 24 लमसेना पिता दूना गोंड़ 30 बेंत, 25 भोण्डा पिता थाटा गोंड़ 30 बेंत, 26 मंगलू पिता कोझा गोंड़ 25 बेंत, 27 शोभा पिता मनसई गोंड़ 30 बेंत, 28 पकलू पिता चंदर उमरगाँव 15 बेंत ,29 शोभा राम
75 रू. अर्थदण्ड, 3 माह कठोर कारावास
उपर्युक्त सत्याग्रहियों को बेंत की सजा एवं अर्थदण्ड के अलावा जंगल सत्याग्रह के जो नेता थे, जिनके नेतृत्व एवं मार्गदर्शन में झण्डा-भररी का जंगल- सत्याग्रह हुआ था। उन्हें निम्नानुसार अर्थदण्ड एवं कारावास की सजा सुनाई गई। मि.आर.आई. बेली द्वारा दिनांक 30/01/1922 को निर्णय दिया गया।1 श्यामलाल सोम पिता राजाराम नगरी 3 माह कारावास, 200 रू अर्थदण्ड, 2 विशम्भर पटेल पिता द्वारू नगरी 3 माह कारावास,3 आनंदराम पिता मिलाप नगरी 3 माह कारावास, 125 रू अर्थदण्ड, 4 श्रीराम पिता मायाराम गोंड़ नगरी 3 माह कारावास,125 रू अर्थदण्ड, 5 पंचम पिता अमोली उमरगाँव 3 माह कारावास, 125 रू. अर्थदण्ड 6 सहदेव पिता समारू गोंड़ उमरगाँव 15 बेंत,7 समयदास पिता ईवधन 15 बेंत, 8 सुखरू पिता धिराजी राऊत उमरगाँव 15 बेत, 9 लोहरू पिता रतिराम हल्बा 25 रू अर्थदण्ड, 10 रामधर 15 बेंत, 11 लेड़गा पिता बीरसिंह गोंड़ 15 बेंत,12 विश्राम 15 बेंत, 13 सरखो / मनराखन 15 बेंत
झण्डा-भरी नगरी-सिहावा जंगल सत्याग्रह में ग्राम डोंगरडुला के बुलबुल गोंड़ की सहभागिता रही है। बुलबुल गोंड़ स्वतंत्रता आंदोलन की प्रत्येक गतिविधियों में भाग लेने जाते थे। वे कांग्रेस के सक्रिय स्वयंसेवक थे। सत्याग्रह में ऐसे ही अनेक स्वयंसेवकों की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। जिनमें महिलाऐं भी शामिल थीं।
स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास में यह नया कार्यक्रम था, जिसका प्रारंभ नगरी-सिहावा अंचल से हुआ। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान व्यापक पैमाने पर प्रयोग किया गया। राष्ट्रीय स्तर के नेताओं ने भी सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान जंगल सत्याग्रह करने की अनुमति प्रदान की थी। नगरी सिहावा अंचल का ऐतिहासिक अनुशीलन की लेखिका इतिहास विद डॉ. श्रीमती हेमवती ठाकुर प्रोफेसर बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव महाविद्यालय धमतरी बताती है कि इतिहास में अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले इन महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को जो स्थान मिलना चाहिए वह नहीं मिल पाया है ।