सरगुजा/ आदिवासी युवा छात्र संगठन छत्तीसगढ़ ने सरगुजा आयुक्त को ज्ञापन सौंपते हुए कहा है कि छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति वर्ग को उनका संवैधानिक अधिकार दिलाने के लिए स्थानीय समुदायों की आवाज बुलंद हो रही है। सरगुजा सहित पाँचवीं अनुसूची क्षेत्रों में अनुसूचित जनजाति समुदाय की अधिकतम जनसंख्या होने के बावजूद आरक्षण के लाभ सीमित हो रहे हैं। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने आरक्षण को राज्य और केंद्र स्तर पर अनुसूचित जनजाति की औसत जनसंख्या के अनुपात में सीमित कर दिया है, जिससे सरगुजा जैसे जिलों में, जहाँ अनुसूचित जनजाति की आबादी 80 प्रतिशत से अधिक है, उन्हें सिर्फ 32 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है। देश में 1993 से लागू पंचायती राज व्यवस्था के तहत, पाँचवीं अनुसूची क्षेत्रों में पेसा कानून के जरिए जनप्रतिनिधियों को 50 प्रतिशत आरक्षण और प्रमुख पद (सरपंच, जनपद एवं जिला पंचायत अध्यक्ष) अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित किया गया। यह व्यवस्था इस आधार पर बनाई गई कि इन क्षेत्रों में अनुसूचित जनजाति की आबादी बहुसंख्यक है। स्थानीय समुदायों का आरोप है कि सरकारी विभागों द्वारा ठेकदारी और संविदा आधारित नौकरियों में आरक्षण नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है। यह स्थिति आदिवासी युवाओं के रोजगार और उनके संवैधानिक अधिकारों पर प्रश्नचिह्न खड़ा करती है।
स्थानीय नेताओं और संगठनों ने माँग की है कि पाँचवीं अनुसूची क्षेत्रों में होने वाली सभी भर्तियों में स्थानीय जनसंख्या के आधार पर आरक्षण लागू किया जाए। इसके लिए अलग से कानून बनाकर इसे संविधान की 9वीं अनुसूची में जोड़ा जाए, ताकि इसे किसी न्यायालय में चुनौती न दी जा सके। साथ ही, पेसा कानून की तर्ज पर आरक्षण रोस्टर में पहला पद अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों के लिए आरक्षित करने की व्यवस्था की जाए। सरगुजा के आदिवासी समुदायों का मानना है कि इस पहल से क्षेत्र में शांति और सुशासन को बढ़ावा मिलेगा। साथ ही, स्थानीय आदिवासी युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित होने से क्षेत्र का सर्वांगीण विकास संभव होगा। ज्ञापन सौंपते वक्त आदिवासी युवा छात्र संगठन छत्तीसगढ़ के पदाधिकारियों के साथ स्थानीय ग्रामीणजन भी उपस्थित थे ।