Koytur times/ गोंडवाना उदय न्यूज, जिले के दक्षिणी सरहदी हल्का ग्राम मुगुम में गोंडवाना महासभा सामाजिक चिंतन समारोह का आयोजन किया। जिस कार्यक्रम में तकरीबन 70 गांव के हजारों गोंड समुदाय के लोगों ने शिरकत किया। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य गोंड समाज में बढ़ती सामाजिक कुरीतियां देखा देखी गैर परंपराओं को अपनाने जैसे कई अहम मामले शामिल थे।जिस दौरान समाज में प्राचीन काल से चली आ रही सामाजिक प्रथाओं में छठी, बरही, मरनी तथा शादी जैसे कार्यों में अनावश्यक व्ययों को रोकने के लिए तथा वर्तमान में जन्मदिन मनाने की रिवाजों को लेकर महासभा में कड़ी आपत्ति के साथ व्यापक चर्चा की गई। तथा सामाजिक रूप से पुरखों के द्वारा चलाए गये कम खर्चों में प्राचीन रीति रिवाज के मुताबिक तथा वर्तमान दौर में अनावश्यक सामाजिक धन की बर्बादी को रोकने तथा समाज में आर्थिक स्वावलंबन के साथ शिक्षा की स्तर को तेजी से बढ़ाने को लेकर गहन विचार विमर्श किया गया। समाज द्वारा आयोजित इस एक दिवसीय कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में शिक्षा और साहित्य के विषय में अपने आसंदी से बोलते हुए गोंडवाना उदय न्यूज के संस्थापक एवं संपादक डॉ एल एस उदय सिंह ने कहा कि हम अपना साहित्य का विकास करना चाहते हैं इसका मतलब यह नहीं कि हम दूसरे के साहित्य से घृणा, यदि हम अपने मां से ममता रखते हैं तो यह कैसे हो सकता है दूसरे के मां से घृणा, हम तो बस यही चाहते हैं कि हमारे गोंडी भाषा साहित्य संस्कृति का विकास हो। उन्होंने कहा अंग्रेजी भी किसी जनजाति भाषा से निकली है मगर आज अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। इसलिए हमें अपनी भाषा को बचाना है। डॉ उदय ने जोर देकर कहा यदि हम अपनी भाषा संस्कृति से विमुख होंगे तो जड़हीन काई की तरह पानी में इधर से उधर तैरते फिरते रह जाएंगे, वहीं हमारा अस्तित्व मिट जायेगा। उन्होंने कहा यदि भाषा मरती है तो उसके साथ पूरी संस्कृति मर जाती है।
गोंडवाना साम्राज्य की साहित्य को लेकर डॉ उदय ने जो व्यक्ति अपना इतिहास नहीं जानता सिर झुका लेता है। कहा अब समाज के विद्वानों को गोंड राजवंश के इतिहास का अध्ययन करना चाहिए। ईस्वी सन 1493 में कोलंबस ने अमेरिका का खोज किया जिस समय गोंड राजाओं का पराक्रम शुरू हुआ तब संसार में अमेरिका का पता नहीं था। जो आज दुनियां का सुपर पवार बन गया वहीं गोंडवाना अपने अस्तित्व के लिए एक चुनौती बन गया है। उन्होंने इतिहास को बताते हुए कहा सन 1667 में गोंडवाना के चौरागढ़ की लड़ाई में गोंडो ने लड़ना और मरना और विजय करना सीखा था, झुकना नहीं, दुर्भाग्य का युद्ध 1780 में दम लिया। और गोंड राजवंश का दीपक भभक भभक कर बुझ गया। आजाद भारत में 1956 में उड़िया पंजाबी मराठी भाषा बोलने वालों को उनका भाषाई राज्य दिया गया पर 20 करोड़ गोंडी भाषी लोगों को एक तिनका नहीं क्या अन्याय नहीं है। आज आदिवासी समाज बिन पतवार की नाव की भांति अपना जीवन यापन कर रहे हैं। जिनके जीवन का कोई लक्ष्य नहीं, एक हवा की झोंको की भांति इधर से उधर गिरती पड़ रही है। डॉ उदय ने शिक्षा के क्षेत्र में उन माता पिता को सम्मानित किया जिन्होंने अपने बच्चों को शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान दिलाया है। उन्होंने कहा आज समाज में केचुली चढ़ गया है लोग दिशाहीन क्षेत्रों में दौड़ रहे हैं। तथा समाज में बढ़ती नशाखोरी बेहद चिंता जताते हुए कहा ऐसे लोगों ने समाज की मनोबल को तोड़ा है। इसलिए समाज में हरहाल में शराब जैसे मादक पदार्थों पर अंकुश होनी चाहिए। और समाज के लोगों से कहा कम पेट भले ही खा लें लेकिन अपने बच्चों अवश्य उच्च शिक्षा की ओर अवश्य ले जाएं।