Saturday, January 11, 2025
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दादा-हीरा सिंह मरकाम-डॉ. मोतीरावण कंगाली जी ने जगाए गोंडवाना समाज का स्वाभिमान :कमरो

बैकुंठपुर (कोरिया) कोया पुनेम गोंडवाना महासभा इंडिया ने गूगल मीट के माध्यम से पेनवासी गोंडवाना रत्न दादा हीरासिंह मरकाम एवं डॉ-मोतीरावण कंगाली जी के पुण्य तिथि पर मुख्य अतिथि कोयतुर मनोज सिंह कमरो राष्ट्रीय अध्यक्ष ,विशिष्ट अतिथि विद्यासागर सिंह श्याम राष्ट्रीय सचिव के विशिष्ट अतिथि में ऑनलाइन वेबिनार का आयोजन कर गोंडवाना के महानायकों को श्रद्धांजलि दिए। मुख्य अतिथि तिरु. कमरो ने कहा कि गोंडवाना आंदोलन में हीरा -मोती की जोड़ी ने गोंडवाना समाज के स्वाभिमान को जगाने का काम किये किये हैं , इन महान विभूतियों के द्वारा किये गए कार्य व समाज में दिए गए योगदान युगों-युगों तक याद किये जायेंगे,उन्होंने कहा कि दादा मरकाम एक किसान परिवार में पैदा हुए थे इनका जन्म 14 जनवरी 1942 को तत्कालीन मध्यप्रदेश राज्य के बिलासपुर जिले व वर्तमान छत्तीसगढ़ राज्य के कोरबा जिले के तिवरता ग्राम में हुआ था, इनकी निधन 28 अक्टूबर 2020 को हुआ ।

उनके पिता जी का देहांत जल्दी हो जाने के कारण उनके उनकी शिक्षा दीक्षा की जिम्मेवारी उनकी माता जी पर आ गई ,खेती बाड़ी सम्हालने के साथ उन्हें 7वीं कक्षा तक उनकी स्कूली शिक्षा चली ,आगे की पढ़ाई ग्रैजुएशन-पोस्ट ग्रेजुएशन उन्होंने व्स्वाध्यायी पूरी की उन्होंने ला की पढ़ाई में इंडिया टॉप किये और शिक्षक बन गए, बतौर शिक्षक ईमानदारी ,लगनशीलता से अपने दायित्वों का निर्वहन करते थे यही कारण है कि उनकी प्रतिष्ठा बढ़ने लगी ,एक अच्छे शिक्षक के रूप में क्षेत्र में चर्चित रहे ।अपने शिक्षकीय दायित्वों का निर्वहन करते हुये उन्होंने छात्र-छात्राओं को निःशुल्क ट्यूशन पढ़ाते थे उनके पढ़ाये हुये लगभग 40स्टूडेंट्स अधिकारी बने इस बात को मुझे (मनोज सिंह कमरो) उनके पढ़ाये बैकुंठपुर में पदस्थ परियोजना अधिकारी ने 2008में दी थी मरकाम जी ने शासकीय सेवा से त्यागपत्र देकर राजनीति में पदार्पण किये व 03बार तानाखार से विधायक चुने गए ।उनके राजनीतिक जीवन में भी सामाजिक आंदोलन चलाई तथा गोंडवाना समाज की दिशा और दशा बदलने के लिये पूरी जीवन झोंक दिए,उनके लंबे राजनीतिक जीवन के केंद्र बिंदु में सामाजिक-सरोकार, सामाजिक आंदोलन ही रहा जैसे -मिर्ची आंदोलन, स्वेत क्रांति, हरित क्रांति, गोंडवाना समग्र विकाश क्रांति आंदोलन ,शराब बंदी, सामाजिक संपदा सामाजिक उत्तरदायित्व निर्वहन, सामुहिक विवाह को प्रोत्साहन,”एक मुठ्ठी चावल से गोंडवाना का महाकल्याण” और वनाधिकार अधिनियम को लेकर 2007 में दिल्ली सांसद भवन का घेराव वनाधिकार अधिनियम को पारित कराने में इस आंदोलन की बड़ी भूमिका थी,।उनके महत्वपूर्ण कथन थे “मानव-मानव एक समान सबको शिक्षा सबको काम, यही है गोंडवाना का पैगाम”। मरकाम जी के सामाजिक आंदोलनों का समाज पर प्रभाव- मरकाम जी के सामाजिक आंदोलनों का गोंडवाना समाज पर व्यापक प्रभाव पड़ा विभिन्न प्रकार के गोण्ड समुदाय अपने-अपने को अलग प्रकार के गोण्ड मानते थे जैसे – राजगोंड, ध्रव गोण्ड, सरगुजिहा गोण्ड, कोडैहा गोण्ड, सिंगरोलिहा गोण्ड इन सभी के आपस में वैवाहिक संबंध नहीं थे यह दादा जी के सामाजिक आंदोलन का ही प्रभाव रहा है कि आज सरगुजा संभाग के विभिन्न जिलों में सरगुजिहा, कोडैहा, सिंगरोलिहा राजगोंड में आज के संदर्भ में सामाजिक एकीकरण हुआ है तथा वैवाहिक संबंध भी स्थापित होने लगे हैं ।साथ ही इससे पूर्व गोण्डवाना समाज के ज्यादातर लोग अपने सरनेम नाम के साथ नहीं लिखते थे परंतु आज ज्यादातर लोग नाम के सरनेम लगाना और लिखने लगे हैं।उपरोक्त तथ्य मरकाम जी के गोंडवाना आंदोलन की सफलता को प्रदर्शित करता है ।यही कारण है कि दादा मरकाम जी को समाजसेवा के क्षेत्र में वेस्ट सिटीजन ऑफ इंडिया अवार्ड (राष्ट्रपति पुरस्कार)भारत सरकार द्वारा दिया गया है ।। डॉ-मोतीरावण कंगाली -कंगाली जी का जन्म 02फरवरी 1949को महाराष्ट्र के नागपुर जिले के रामटेक तहसील के दुलारा नामक गाँव में हुआ था इन्होंने उच्चशिक्षा ग्रहण करने के पश्चात पीएचडी भी की तथा रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया में ब्रांच मैनेजर के रूप में अपनी सेवाएं दी थी,कंगाली जी एक महान साहित्यकार भी थे उन्होंने गोंडी, मराठी हिंदी में कई लेख व किताबें लिखी,साहित्यकार, भाषा विद, भाषा वैज्ञानिक, थे उनकी सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक कोया पुनेम दर्शन व सैंधवी लिपि का गोंडी में उदवाचन रहा जिसने गोंडवाना साहित्य व समाज की आत्मा के रूप में नई दिशा दी है।। सिंधू घाटी की सभ्यता की लिपि को पढ़ने वाले दुनिया के एकमात्र विद्वान-सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि दादा कंगाली जी गोंडी भाषा के माध्यम से पढ़ा था सैन्धवी लिपि के एक-एक चित्रों का अर्थ व सार उन्होंने अपनी किताब”सैन्धवी लिपि का गोंडी में उदवाचन”में उल्लेख किये हैं।। गोंडी भाषा व धर्म के लिए नए युग की शुरुआत डॉ. कंगाली जी के महत्वपूर्ण कार्यों में उन्होंने कोया पुनेम जीवन दर्शन गोंडी धर्म तथा उनके प्रमुख आयाम से गोंडियन समुदाय के सामाजिक जीवन में भाषा संस्कृति ,रीति रिवाज, परंपराओं को शोध कर किताबें लिखी जो गोंडी धर्म, भाषा संस्कृति के मार्गदर्शक तथ्य बने । । आदिम भाषा शोध में राष्ट्रीय पुरस्कार-आदिम भाषा शोध संस्थान भारत सरकार द्वारा उनके दिए गए योगदान के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।। कार्यक्रम का संचालन महासभा के छ.ग. प्रदेश अध्यक्ष राय सिंह श्याम ने किया ,इस अवसर पर प्रदेश सचिव विजय सिंह नेताम ,मनेश आँचला, भोला सिंह नेताम ,समरजीत सिंह डलसु सिंह ,कुँवर सिंह आरमोर, मोहन सिंह परस्ते, मिथलेश सिंह टेकाम, आनंद सिंह सहित अन्य लोग मौजूद थे ।

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