महेन्द्र सिंह मरपच्ची
लेखक एवं स्वतंत्र विचारक
आज भारत की जनजातीय समुदाय की संस्कृति अनेकों विविधता और समृद्धि से भरी हुई है। जनजातीय समुदाय मुख्य रूप से खुले इलाकों में रहना पसंद करते हैं जैसे जंगलों, पहाड़ों और दूरदराज के पठारी क्षेत्रों में। इस समुदाय की संस्कृति, रीति-रिवाज, परंपराएँ और धार्मिक मान्यताएँ अन्य धर्मों से बिलकुल अलग होती हैं। जनजातीय समुदाय में बहुत ही विशिष्ट और अनेकों रंग-बिरंगे त्योहार होते हैं। आज भारत में लगभग 705 मान्यता प्राप्त जनजातियाँ निवास करती हैं, जो देश की कुल जनसंख्या का लगभग 8.6 प्रतिशत हिस्सा हैं। भारत के जनजातीय समुदाय की संस्कृति अद्वितीय है। उनके पारंपरिक परिधान, आभूषण, नृत्य, और संगीत दूसरे समुदायों से भिन्न हैं। जनजातीय समुदाय की संस्कृति ही उन्हें मुख्यधारा और समाज से जुड़े रहने की अलग पहचान दिलाती है। जनजातीय समुदाय के हस्तशिल्प और कलाकृतियाँ भी पूरे विश्व में बहुत प्रशंसनीय हैं। वे बांस, लकड़ी, मिट्टी, काश, तांबे, लोहे और चांदी जैसे अनेकों धातुओं से शिल्प कला तैयार करते हैं, उसी प्रकार विभिन्न प्रकार के वस्त्र और घरेलू सामान भी बनाते हैं, जो जनजातीय समुदाय की पहचान और संस्कृति को दर्शाते हैं।
जनजातीय समुदाय में कई त्यौहार और समारोह आज भी मनाए जाते हैं, जिनमें प्रकृति और कृषि का महत्वपूर्ण स्थान होता है। जैसे छत्तीसगढ़ में कर्मा, शैला, सुवा, भोजली जैसे अनेकों त्यौहार को फसल एवं प्रकृति पूजा के रूप में मनाते हैं, उसी प्रकार झारखंड, बिहार और उड़ीसा में कर्मा त्यौहार को कृषि पर्व के रूप में मनाया जाता है, जिसमें पेड़ की पूजा की जाती है। झारखंड और पश्चिम बंगाल में सरहुल पर्व को बड़ी ही धूमधाम से मनाते हैं। इन त्यौहारों को केवल जनजातीय समुदाय ही नहीं बल्कि यहाँ रहने वाले दूसरे समुदाय के लोग भी मिलकर मनाते हैं। इससे पता चलता है कि जनजातीय समुदाय का लगाव प्रकृति और कृषि के साथ जुड़ा हुआ है। जनजातीय समुदाय हमेशा से ही प्रकृति पूजक रहे हैं। वे पेड़, पहाड़, नदियों और जानवरों की पूजा बड़ी ही धूमधाम से करते हैं। उनके धार्मिक अनुष्ठानों में विभिन्न देवताओं और आत्माओं को प्रसन्न करने के लिए नृत्य, संगीत और बलिदान का महत्वपूर्ण स्थान होता है। यह धार्मिक विविधता उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा है और उनके समाज की अनूठी पहचान को बनाए रखती है । भारत में कई प्रमुख आदिवासी जनजातियाँ हैं, जिनमें संताली, भील, गोंड, मुंडा, परधान, उरांव, बैगा जैसे अनेकों जनजातियाँ शामिल हैं। पूर्वी भारत में बसे संताली जनजातीय अपने नृत्य, संगीत और रंगीन त्योहारों के लिए प्रसिद्ध हैं। राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश में रहने वाले भील जनजातीय अपने तीरंदाजी और पारंपरिक चित्रकला के लिए जाने जाते हैं। उसी प्रकार मध्य भारत में बसे गोंड जनजातीय अपनी जीवंत कला, गोंड पेंटिंग्स के लिए प्रसिद्ध हैं। ये जनजातियाँ न केवल सांस्कृतिक धरोहर की रखवाली कर रही हैं, बल्कि भारतीय समाज को विविधता और समृद्धि भी प्रदान करती हैं।
जनजातीय समुदाय की संस्कृति और परंपराएँ बहुत ही समृद्ध हैं, लेकिन आज यह जनजातीय समुदाय कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। उनके पारंपरिक भूमि और संसाधनों पर बाहरी हस्तक्षेप, जैसे कि कृषि, खनन और पर्यटन, उनके जीवन को बाधित कर रहे हैं, जिससे उनकी संस्कृति, रीति-रिवाज और धार्मिक परंपराओं पर गहरा आघात पहुंच रहा है। इसके अलावा, इन जनजातीय समुदाय पर बाहरी संपर्क से बीमारियों का खतरा भी आज बढ़ रहा है, जिनके लिए उनके पास किसी भी प्रकार की प्रतिरक्षात्मक सुरक्षा नहीं होती। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए आज विशेष उपायों की आवश्यकता है ताकि उनकी विशिष्ट संस्कृति और जीवन शैली संरक्षित रह सके।
आप सभी को पता होगा कि 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है। जनजातीय समुदाय के लोगों के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप् में पहली बार संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा दिसंबर 1994 में घोषित किया गया था, जिसे हर साल विश्व भर के जनजातीय समुदाय के लोग बड़ी ही गर्व से मनाते हैं। यह दिन जनजातीय समुदाय के लोगों की आवश्यकताओं और उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता और उनके रीति-रिवाज, संस्कृति और उनके धार्मिक परंपराओं को बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। इस वर्ष 2024 में विश्व आदिवासी दिवस की थीम स्वैच्छिक अलगाव और प्रारंभिक संपर्क में स्वदेशी लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए है। यह थीम इस बात पर जोर देती है कि स्वदेशी लोग, विशेष रूप से वे जो स्वैच्छिक अलगाव में रहते हैं, उनके अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए। ये लोग अपने पारंपरिक जीवन और प्राकृतिक पर्यावरण पर गहरा निर्भर रहते हैं, और उनका अस्तित्व न केवल उनके समाज के लिए बल्कि हमारी सांस्कृतिक और भाषाई विविधता की सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण है। भारत के जनजातीय समुदाय समाज की विविधता और उनकी समृद्ध संस्कृति भारतीय समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उनकी परंपराओं और रीति-रिवाजों का संरक्षण और संवर्धन न केवल उनके अस्तित्व के लिए आवश्यक है, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को भी सुदृढ़ बनाता है। आज जनजातीय समुदाय 09 अगस्त को अपनी संस्कृति के साथ भारत की प्रमुख धरोहर को भी बचाने की कोशिश कर रहा है, हम सभी को मिलकर जनजातीय समुदाय की विशिष्टता और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए प्रयासरत रहना चाहिए, ताकि उनकी अनमोल धरोहर सुरक्षित रह सके।