रायपुर छत्तीसगढ़: प्रदेश में किडनी ट्रांसप्लांट के मरीजों के लिए निजी अस्पताल ही एकमात्र विकल्प बने हुए हैं, जबकि डीकेएस सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में केवल इंतजार और निराशा है। अस्पताल में नेफ्रोलॉजिस्ट और यूरो सर्जन मौजूद हैं, लेकिन जरूरी संसाधनों, उपकरणों और मशीनों की कमी के कारण किडनी ट्रांसप्लांट की सुविधा उपलब्ध नहीं हो पा रही है। राज्य गठन के 23 साल बाद भी कोई भी सरकार इस सुविधा को सरकारी अस्पताल में प्रदान नहीं कर सकी है, जबकि मुख्यमंत्री विशेष स्वास्थ्य सहायता योजना के तहत किडनी ट्रांसप्लांट के लिए फंड निजी अस्पतालों में जा रहा है। जानकारों का कहना है कि ट्रांसप्लांट के लिए जितनी राशि अब तक निजी अस्पतालों को दी जा चुकी है, उससे एडवांस किडनी ट्रांसप्लांट सेंटर खोला जा सकता था।
डीकेएस अस्पताल में किडनी ट्रांसप्लांट की सुविधा शुरू करने की योजना है, लेकिन स्किल्ड नर्सिंग और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी के कारण मरीजों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है, जिससे वेटिंग लिस्ट काफी लंबी होती जा रही है। जरूरतमंद मरीज एम्स और बड़े निजी अस्पतालों का रुख कर रहे हैं। प्रदेश में ऑर्गन डोनेशन पॉलिसी लागू हो चुकी है, फिर भी किसी भी सरकारी अस्पताल में किडनी ट्रांसप्लांट शुरू न होना सरकारी हैल्थ सेक्टर के लिए एक बड़ा सवाल है। डीकेएस अस्पताल को शुरू हुए 6 साल होने जा रहे हैं, लेकिन किडनी ट्रांसप्लांट की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
स्टेट ऑर्गन ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन (सोटो) के पास 20 से ज्यादा किडनी ट्रांसप्लांट के आवेदन हैं। अधिकारियों ने आचार संहिता के कारण डीकेएस में उपकरणों की खरीदी और स्टाफ की भर्ती नहीं हो पाने का हवाला दिया था। विधानसभा और लोकसभा चुनाव की आचार संहिता खत्म होने के बाद भी इस दिशा में कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया है। डीकेएस अस्पताल में स्किन ट्रांसप्लांट के पांच से ज्यादा केस हो चुके हैं और यह प्रदेश का पहला सरकारी अस्पताल है जहां स्किन बैंक की सुविधा है। अधीक्षक डॉ. क्षिप्रा शर्मा ने बताया कि किडनी ट्रांसप्लांट के लिए जरूरी स्टाफ और उपकरणों की कमी को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए भी विशेषज्ञ की भर्ती की जाएगी।