Tuesday, January 7, 2025
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पर्यावरण संरक्षणः ट्राइबल समुदाय की सहयोग एवं उनके पारम्परिक रीति रिवाज से ही वर्तमान परस्थितियां में सुधार हो सकता है: महेन्द्र सिंह मरपच्ची

Mahendra singh Marpachchi/manendragarh: हर साल 5 जून को मनाया जाने वाला विश्व पर्यावरण दिवस हमें पर्यावरण संरक्षण के प्रति हमारे दायित्व की याद दिलाता है। की हमें अपने प्रकृति के उद्देश्यों के साथ चलना चाहिए सन् 1974 में प्रारंभ हुए इस पर्यावरण दिवस का उद्देश्य वैश्विक स्तर पर पर्यावरणीय मुद्दों के प्रति जागरूकता फैलाना और सकारात्मक पर्यावरणीय कार्यों को प्रोत्साहित करना है। वर्तमान समय में जब जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन होने के कारण आज देश दुनिया के लिए भी गंभीर समस्या बन चुकी हैं इस वर्ष की पर्यावरण दिवस की थीम ‘भूमि पुनर्स्थापन, मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने की क्षमता’ पर है, जिसका नारा है ‘हमारी भूमि। हमारा भविष्य हम #जनरेशन रेस्टोरेशन,’ हैं।

लेखक: महेन्द्र सिंह मरपच्ची
लेखक: महेन्द्र सिंह मरपच्ची

 यह पर्यावरण दिवस महत्वपूर्ण इसलिए भी जरूरी है क्योंकि आने वाले कुछ ही समय में यह धरती सूर्य की ताप में तपने के लिए तैयार है, हमें भारत के पर्यावरण की वर्तमान स्थिति और कुछ ट्राइबल समुदायों की भूमिका के साथ उनके प्राकृतिक एवं पारंपरिक त्योहारों से सबक लेकर पर्यावरण को संरक्षण करने की जरूरत है, मेरा मानना है कि आज भारत में जितने भी जल जंगल और जमीन बची है वह ट्राइबल समुदाय की वजह से ही बच पाया है।

आज भारत में तेजी से हो रहे औद्योगिकीकरण, शहरीकरण के साथ – साथ पेड़ों की अंधाधुन कटाई से हमारे इस सुन्दर धरती की पर्यावरण पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा है। जिसके कारण आज विभिन्न राज्यों में पर्यावरणीय समस्या उत्पन्न होती जा रही हैं, आज महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजिस्थान, उड़ीसा, झारखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार, कर्नाटक दिल्ली जैसे लगभग सभी जगहों के बडे़ शहरों पर प्रदूषण ही प्रदूषण है, कही पर उद्योगों की धुवां से लोग परेशान है, तो कहीं पर अंधाधुन पेड़ों की कटाई से परेशान है, और कही गंदा पानी एवं प्लास्टिक के कचरे से परेशान है । बड़े शहरों में पर्यावरण कि समस्या आज वहां कि वायु, जल प्रदूषण, और आसपास कि जंगलों का अंधाधुन कटाई प्रमुख समस्याएं बन गई हैं। आज तेजी से हो रहे शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण आने वाले दिनों में पर्यावरण को बचाना और भी अधिक समस्या हो जायेगी ।

सदियों से भारत का तीर्थ स्थान कहे जाने वाले गंगा नदी प्रदूषण और वायु प्रदूषण की गहरी चपेट में है, इसी प्रकार किसानों के खेतों में भी आज अनेकों प्रकार के जहरीली रसायनों का उपयोग किया जा रहा है जिससे जमीन की नमी बंजर जमीन में तब्दील हो रहे है । जिससे शहरों के साथ – साथ आज गांवों में भी जल संकट गहराता जा रहा है ।

आप सभी को मालूम होगा की इस वर्ष 2024 में पिछले वर्ष की तुलना करें तो इस वर्ष गांवों में भी अधिक जल संकट देखने को मिला है ।

इस वर्ष 2024 में भारत के विभिन्न राज्यों का तापमान भी चौकाने वाला था, जो पर्यावरण की असंतुलन का सबसे बड़ा उदाहरण है, जो इस वर्ष न्यूनतम 36 डिग्री सेल्सियस से लेकर अधिकतम 47 डिग्री सेल्सियस के बीच बना हुआ था। यह तापमान घटती जलवायु परिवर्तन की प्रभाव को दर्शाता है, जो आगे चलकर और गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है।

एक ऑनलाइन डेटा रिपॉजिटरी, अवर वर्ल्ड इन डेटा द्वारा मिली जानकारी के अनुसार 1990 से 2000 और 2015 से 2020 तक लगभग 98 देशों में वनों की कटाई की प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला गया। जिसमें डाउन टू अर्थ के अनुसार भारत में वनों की कटाई 1990 और 2000 के बीच 384,000 हेक्टेयर से बढ़कर 2015 और 2020 के बीच 668,400 हेक्टेयर हो गई जो बहुत ही अधिक है। भारत की आजादी के बाद से लेकर अब तक हमलोग वन क्षेत्र का काफी बड़ा हिस्सा खो चुके है। जिससे प्रमुख नदियों का प्रदूषण स्तर बढ़ता जा रहा है और शहरी क्षेत्रों की वायु गुणवत्ता में लगातार गिरावट आ रही है। इससे जैव विविधता में भी भारी कमी आई है, जिससे कई प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं।

पर्यावरण के साथ ही भारत के विशाल जल-जंगल और जमीन को बचाने में सबसे बड़ी भूमिका ट्राइबल समुदाय की?

इस पर्यावरण दिवस पर ‘भूमि पुनर्स्थापन, मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने लिए कार्य करने की जरूरत है , और यह तभी सम्भव होगा जब ट्राइबल समुदाय की लड़ाई ‘हमारी भूमि,हमारा भविष्य, हम #जनरेशन रेस्टोरेशन,’ हैं। का सपना स्वीकार होगा । ट्राइबल समुदाय हजारों वर्षों से पर्यावरण के साथ अपने जल, जंगल और जमीन की संरक्षक रहे हैं। उनकी पारंपरिक प्रथाएँ और त्योहार पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनके समर्पण को दर्शाते हैं। जिसमें प्रमुख जनजाति भील, बैगा, गोंड, अगरिया, भारिया, कोल, उरांव, प्रधान, कोरकू, नगेशिया, हल्वा, भतरा, माडिया, सहरिया, कमार, कंवर, लुशाई, महलम, खशिया, भूटिया, मुंडा, संथाल जमनिया समुदाय जैसे अनेकों ट्राइबल समुदाय ने अपने पारंपरिक त्योहारों में वृक्षारोपण कर प्रकृति कि पूजा करते हैं। आज हमें भारत में लगभग दो से तीन करोड़ पेड़ो कि जरुरत है जो कई लोगों कि सोच से भी कहीं ज्यादा है। अगर आज भारत के प्रत्येक घर के लोग अपने आंगन में सिर्फ एक या दो पेड़ ही लगाए तो हमारा भारत फिर से हरा भरा हो सकता है। भारत कि 130 करोड़ कि बड़ी आबादी के लिए हम सभी को एक पेड़ लगाने कि जरुरत है। इस साल तो विश्व पर्यावरण दिवस की थीम है की ‘भूमि पुनर्स्थापन, मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने की क्षमता’ पर है, जिसका नारा है ‘(हमारी भूमि, हमारा भविष्य)’ हम #जनरेशन रेस्टोरेशन,’ हैं। जो की ट्राइबल समुदाय हमेशा से लड़ता ही आ रहा है ।

आज अमेज़ॉन के ट्राइबल और अफ्रीका के मासी ट्राइबल समुदाय भी अपने पारंपरिक तरीकों से पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

पर्यावरण संरक्षण के कुछ जरूरी उपाय जिससे हम अपने आने वाले पीढ़ी को बचा सकते है?

आप सभी को ज्ञात होगा की पर्यावरण संरक्षण के लिए हमें सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है। निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं, इसके लिए हमें सख्त पर्यावरणीय नीतियाँ बनाकर उसका प्रभावी से कार्यान्वयन सुनिश्चित करना चाहिए। इसके अलावा स्कूली स्तर से ही पर्यावरण की शिक्षा को कठोरता से अनिवार्य कर जागरूकता फैलाने की कोशिश करने चाहिए । साथ ही ट्राइबल समुदाय के साथ मिलकर अन्य समुदाय के लोग भी अपना भागीदारी निभाकर पर्यावरण संरक्षण करने का काम में तेजी लाने चाहिए। इसके साथ ही पर्यावरण संरक्षण के लिए नई और उन्नत प्रौद्योगिकियों के लिए वैश्विक स्तर पर सहयोग बढ़ाने की जरूरत है। आज हमें लगातार पर्यावरणीय चुनौतियों के समाधान के लिए संयुक्त प्रयास करने की जरूरत है ।

आप सभी को पता है की यह विश्व पर्यावरण दिवस हमें पर्यावरण संरक्षण के प्रति हमारे दायित्व की याद दिलाता है। हमें ट्राइबल समुदायों के पारंपरिक ज्ञान और प्रथाओं से सीखना चाहिए और उन्हें आधुनिक प्रौद्योगिकी के साथ मिलाकर पर्यावरण संरक्षण के लिए एक समग्र और प्रभावी रणनीति बनानी चाहिए। हमें आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और संतुलित पर्यावरण सुनिश्चित करने के लिए सामूहिक प्रयास करनी चाहिए ।

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