Thursday, January 9, 2025
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आदिवासी समाज के लिए एक महत्वपूर्ण दिन था, 19 मार्च 2012 का 32% आरक्षण का आंदोलन

आर एन ध्रुव,रायपुर:  छत्तीसगढ़ में 19 मार्च 2012 को आदिवासी समाज ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिए एक  महाप्रयास आंदोलन किया गया था । जिसमें 32% आरक्षण को बचाने के लिए संघर्ष किया था ।

इस आंदोलन में अनुसूचित जनजाति शासकीय सेवक विकास संघ छत्तीसगढ़ की अहम भूमिका रही है। पदोन्नति में आरक्षण ,फर्जी जाति प्रमाण पत्र धारीयो के खिलाफ कार्यवाही, दिव्यांगों की भर्ती, 32% के हिसाब से 9 कलेक्टर, 9 एस पी की नियुक्ति, स्थानीय भर्ती सहित विभिन्न संवैधानिक हितों की रक्षा के लिए लड़ी गई थीं। अब लगने लगा है आपसी मतभेद भुलाकर एक बार पुनः एकजुटता दिखाने का समय आ गया है ।

क्या है 19 मार्च 2012 का आंदोलन इसे आज का युवा जरूर पढ़ें

वह 19 मार्च का दिन था , जब आदिवासीयों ने शासक वर्ग को यह चेताया था कि अपने जल, जंगल और जमीन के लिए कुर्बानी को हमेशा तैयार रहते है । उसकी उत्तेजना व साहस को कम न आंका जाय । इस दिन आदिवासीयों ने शासन को अपनी असली ताकत का अहसास करा दिया था।

19 मार्च 2012 का वह एतिहासिक दिन था, जब आदिवासी समुदाय अपने संवैधानिक अधिकारों की मांग के लिये जुलुस के रुप में हजारों, लाखों की संख्या में विधानसभा भवन रायपुर के लिए प्रस्थान किये थे । आदिवासीयों की ताकत देख शासक वर्ग का होश उड़ गया था । बहुत ही शांत प्रिय आदिवासी समाज पारंपरिक नर्तक दल के साथ जुलूस के रूप में गोंडवाना भवन से प्रस्थान किये। वहां से महज 200 गज भी नहीं पहुंचा था कि रायपुर टिकरापारा के सिद्धार्थ चौंक पर पुलिस द्वारा सुनियोजित ढंग से आदिवासीयों के विशाल जुलूस को बेरिकेट एवम् टिन की दीवार खड़ी कर बल पूर्वक रोका गया था ।

इस जुलूस में लाठी चार्ज, पानी के बौछार एवम् आंस्रु गैंस छोड़ा गया था। लौटती जुलूस पर बेतहाशा लाठी चार्ज किया गया । गोंडवाना भवन में घुसकर पुलिस द्वारा युवकों पर लाठियां बरसाई गई । पके हुए भोजन को बर्तन सहित उलट दिये गये । महिलाओं, नृत्य दल को भी नहीं बख्शा गया । एक घण्टे तक बंधक बनाने के बाद, हमारे नेताओं सहित 1100 से अधिक आदिवासीयों को बसों में भरकर केन्द्रीय जेल ले जाया गया । वहां सबका नाम सुचिबद्ध करने के बाद 74 सामाजिक प्रमुखों को जेल के अंदर एक हाल में ठुस दिया गया । बाकी लोगों को छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिला के जेलों के लिए रवाना कर दिया गया, जिसे बाद में छोड़ दिया गया। 

तीन दिनों बाद सामाजिक प्रमुखो की निःशर्त रिहाई तो हुई किंतु बाहर आने पर पता चला कि पुलिस द्वारा कई गंभीर गैर जमानती अपराधिक मामले दर्ज किये गये थे । बिना कुर्बानी के अपेक्षित सफलता हासिल नहीं होती है । इतिहास इसका साक्षी है । इस आंदोलन का ही परिणाम है कि लम्बे संघर्ष के बाद 32 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिला । आरक्षण रोस्टर बदलवानें में हम सफल रहे । 

इस ऎतिहासिक दिवस के योद्धाओं को याद करने के लिए इस दिन इन सबको नमन जरूर करें। जिनके बदौलत आज हमारे समाज के युवा 32% आरक्षण के बदौलत डिप्टी कलेक्टर, डीएसपी सहित कई महत्वपूर्ण पदों में सुशोभित हो रहे हैं। किसी स्वतंत्रता सेनानी ने कहा था, “ऎ सत्ता के मद में चूर मदमस्त हाथियों अभी सिंहो का राजा सोया हुआ है, जब वह नींद से जाग जाएगा तब तुम्हारी खैर नहीं ।”

न्याय मिलता नहीं , उसे छीनकर लेना पड़ता है: 

“ऐसे ही समाज के लोग आपसी मतभेद भूलाकर, राजनैतिक स्वार्थ से परे, समाज को बांटने वाले लोगों से सावधान होकर, पुन: अब जाग जाओ और अपने संवैधानिक अधिकारों को प्राप्त करें ।

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