पूरनमल ध्रुव की विषेश लेख: संस्कृति अउ परम्परा के असल मरम का आज हमन समझ पावत हन । संस्कृति ला बचाए के खातिर किसम किसम के उदीम करत हन , फेर उदीम करे के चक्कर म नवा प्रचलन समाज म चला देत हन ।आदिवासी परिधान मा गरबा नाच कहन की राजनीति के चक्कर म पिंवरा गमछा के प्रचलन कहान कई ठन नवा करे के चालू कर डारत हन। आज तो हमर आदिवासी समाज के नर्तक दल मन कोनो भी बुलावत हे उहाॅं पइसा के खातिर चले जावत हे। कोनो नेता ला परघाय बर हो या बरात मा हो चाहे आने मन के धार्मिक कार्यक्रम मा होय ।ऐकर ले हमर आदिवासी कला के मरम घटत हावय अपन जेन नाच गान हा आदिवासी पंडूम आने तीज तिहार परब मा होवत रिहीस तेन हा अब पइसा मा कोनो भी डिगर के कार्यक्रम मा नाच गान दिखावत हे येहा हमर पुरखा मन के कला के अपमान आय।
स्थान विशेष के संस्कृति अउ पहनावा के तो पता नई हे आने क्षेत्र विशेष के संस्कृति के नकल करत हन या भभा जात हन जैसे पिंवरा गमछा पकड़े के चालु कर दे हन काबर जेन अच्छा लागथे तेन काम करत हन ऐमा कोनो दोष नई हावय लेकिन अपन क्षेत्र के संस्कृती के कब प्रतिनिधित्व करबो काबर जइसन परिस्थिक तंत्र में अगर एक जीव खतम होते ता प्राकृति के संतुलन बिगड़ जाते वइसने एक स्थान विशेष के संस्कृति ला बचना भी जरूरी हे ।पहिली अपन अपन क्षेत्र के संस्कृति ला अपनाव बचाव बाप रही तभी तो बेटा के महात्व हे l कोनो स्थान विशेष के संस्कृति कोनो स्थान विशेष में हावी नहीं होना चाहिए।जइसन बगिया मा एके रंग के फूल रही ते अच्छा हरे की रंग बिरंगी फूल रही ते अच्छा हरे।
एक उदाहरण देवत हवं आज ले दस बच्छर पहिली हमर समाज मा पिंवरा पटका अउ पगड़ी के कोनो माहत्व नई रहीस कोनो हमर सियान मन पिंवरा पटका धरत नई रिहीस न कोनो मेर देवी देवता मेर पिला चांवल नई चढ़त रहीस यहां तक समाज मे घलो सादा धोवा चाउर के टीका ले स्वागत सम्मान होवत रहीस हां पिंवरा चांउर के सिर्फ बिहाव अउ मरनी मा उपयोग करत रहीन पीढ़ी पुजई अऊ जातरा मा घलो क्षेत्र अनुसार उपयोग हावय काबर पीढ़ी पुजई अउ जातरा घलो बिहाव के रूप हरे जेमा देवता के बिहाव करे जाथे।
हर क्षेत्र के रीति रिवाज़ के पीछे अलग अलग रहस्य हे अलग अलग मरम हे वोला जाने समझे ला पढ़ी नहीं तो संस्कृति ला फैशन बनबो ते असने होत रही संस्कृति फैशन या दिखवा के चीज नोहे एमा एहसास जुड़ना जरूरी हावयl
हर घर परिवार, हर गोत्र हर आदिवासी समाज के नेग नियम म अंतर हावय वो पहचान ला बरकरार रखना जरूरी हे साथ ही वोकर मरम ला परोसना जरूरी हे ।
काकरो यहां सिरीफ सादा चलते काकरो यहां सिंगार ये अपन अपन घर के अपन व्यवस्था रथे
भुंजिया सामाज म सादा ही चलते शादी होय के बाद माता मन सादा रंग ही पहिरथे कोई सिंगार नइ करय ।अब अईसन म वोला पिंवरा चाउंर के टीका लगा देबो ता उकर घर के नियम के खिलाफ नइ हो जाहि। अइसने अइसने हमर सामाज के रीति रिवाज के मरम खतम होत हे। आदिवासी समाज प्राकृति के पुजारी हरे शक्ति के पुजारी हरे जेन प्रकृति ला अर्पित करते जेन देव शक्ति म अर्पित करते उही ला अपन ग्रहण करते अपन उपयोग करते ।अब सवाल उठते की पिंवरा चाउंर कोनो देवी देवता मा नई चढ़े ना कोनो प्रकृति के नेग नियम मा हे, ता फेर पिंवरा रंग के टीका लगाय के रिवाज कहां ले समाज मा खुसर गे हावय।
अब पिंवरा रंग के बारे में बहुत से आज नवा जमाना के बुद्धिजीवी जानकार मन कथे की पिंवरा रंग हा प्रकृति के रंग हरे , सूरज के पहली किरण पिंवरा रंग के रथे, माॅं के दुध मा घलो पिउंरा पन रथे। साथे साथ पिंवरा रंग हा उत्पत्ति के रंग आय येकरे सेती पिंवरा रंग के पटका पगड़ी के माहत्व आय, ये उकर तर्क हरे फेर येमा कतका सहीं हे में तो नई जानव।
येकर वैज्ञानिक तथ्य ला देखतन की कितना सही हावय जईसन तर्क देते की सूरज के पहिली किरण पिंवरा रंग हरे जबकि विज्ञान के अनुसार पहिली रंग लाल रंग हरे दुसरा माॅं के पहिली दुध मा पिउंरा पन रथे ये सही हरे लेकिन सादा रंग के भाग जादा रथे कहि सकथन मूल सादा रंग ही हरे ।
फेर येमा मोर ये तर्क हावय की पिंवरा रंग अगर हमर मूल पहचान आय येहा आदिवासी मन के प्रकृति के रंग आय ता येला हमर पुरखा मन काबर नई धरत रिहीस ना कोनो देवी देवता मा पिंवरा रंग के ध्वजा नई चले। येला देखत हमला जादा दिन नई होय हावय। मेहा दस साल के उमर ले समाज मा मोर सियान मन सन जावत हंव फेर कभु पिंवरा पटका धरे कोनो सियान मन ला नई देखेंव फेर आज पिंवरा पटका समाज मा पूरा फैल गे हावय गोंडवाना के रंग हरे कर के अउ पिंवरा चाउर के टीका के प्रचलन सबो जगह होगे हावय। हमर मध्य छत्तीसगढ़ मे पुरा बगर गे हावय, फेर संस्कृति के गढ़ बस्तर अउ सरगुजा संभाग मा आज भी सादा पागा के स्थान हावय इही ले सिध्द होवत हे की हमर मूल रंग पागा सादा आय धोवा चाउंर के कुढ़ी बुढ़ा देव के साथ जम्मो देवता मन के सादा ध्वजा बताते की सादा पागा अउ सादा चाउंर के का माहत्व हावय।
हमर बैरक जेन ला डांग कहीथें अहु हा मात्र तीने रंग मा ही मिलथे सादा लाल करिया। हमर देवी देवता मा भी तीने रंग के ध्वजा चढ़ते सादा ,लाल अउ करिया।
हमर समाज के पहचान मूल देवता बुढ़ा देव ले हावय बुढ़ा मतलब पक्का चुदीं वाले ढोकरा हमर बाप के बाप जेमा सादा ध्वाजा सादा चाउंर चढ़ते सादा मतबल सच ईमानदारी, न्याय, शांती के प्रतिक आय। जेन गुन हमर प्रकृति के आय उही गुण हमर आदिवासी समाज के आय ।
वइसे हमर संस्कृति म तीन रंग के माहत्व हावय जेन रंग के ध्वजा हमन अपन पेन पुरखा देवी देवता मा देखथन पहिली रंग सादा जेन ला हमन हमेशा देवता मा देखथन घर के दुल्हादेव (बाप) , बुढ़ा देव ,दलिहा देव अउ कोनो भी देव मानता होही गांव मा इसर देव, साड़हा देव ,ठाकुर देव ,भईसासूर अउ किसम किसम के देवता ।
दूसर रंग हावय हमर लाल रंग जेन हा हमर देवी दुल्ही दाई(माता), काकरो काकरों यहां बुढ़ी माई में घलो लाली रंग चढ़थे, घर अउ गांव के बाई माता, शीतला दाई, गवरा माता अउ कोनो भी माता जेन हा जोड़ी मा रथे (देवी अउ देवता)।
तिसरा रंग करिया रंग हरे जेन हा हमेशा घर के माहटी परछी अउ गांव के सरहद या प्रवेशद्वार मे रथे जईसे कली कंकालिन मौली किसम किसम के ।
अब बात करथों मेहा ये तिनो रंग सादा, लाली, करिया ये हा प्रकृति के रूप ला बताते जईसे प्रकृति के तीन रूप हावय पालक, पोषक, नाशक।
पालक सादा रंग सृजन (उत्पत्ति) करईया के पिता के रूप् माने गए हावय, पोषण लाल रंग जिये बर जेन- जेन आवश्यक जिनिस हे वो हवा, पानी, भोजन देने वाला येला माता के रूप् माने हावय। नाशक करिया रंग नाश करने वाला अउ सुरक्षा करने वाला दोनो आय ।आना हे ता जाना लगे हे ये प्रकृति के नियम आय येला कलि कंकालिन माता के रूप् मानते जेहा हमर घर के माहटी मा रथे जेन हा बैरी ला घर मा आन नई दे वईसने गांव मा शीतला माता के माहटी मा रथे अउ आने आने गांव म क्षेत्रीय देवी रथे जेन हा गांव के सरहद या माहटी मा रथे बैरी ला गांव मा घुसन नई देवय जेन मा करिया ध्वजा चड़ते ।
जईसन प्रकृति के तीन रूप हावय सिरजन करना, पोषण करना, नाश करना उही हमर देवी देवता हमर रिती रिवाज मा दखेबर मिलते इकरे सेती हमन ला प्रकृति के पुजारी कथें।
अब में ये तीनो रंग के प्रकृति दर्शन का हरे कईसे ऐला वैज्ञानिक ढंग ले कईसे पहिचानबोन, जइसन बाप के सादा रंग कथन ता वइसने बीज (विर्य) के रंग सादा रथे जेकर ले उत्पत्ति होथे। माॅं के रंग लाल कथन नारी के जब महवारी आथे जेन लाल रथे उही हा वोकर माॅं बने के लक्षण आय जेन माता के ऐमा गड़बडी रते वो माॅं बन नई सकय इही रक्त हा जब बीज के संचार कोख मा हो जथे ता आना रूक जथे ताकि भ्रूण के पोषण हो सके। येहा पुरा प्रकृति के देन हरे।
एक अउ वैज्ञानिक दर्शन ये हरे की हमर शरिर मा दू परकार के लहु रथे पहिली लाल जेकर से पोषण मिलते उर्जा मिलते एक होते सादा लहु जेन हा हमर सुरक्षा करथे कोनो परकार के चोंट लग जथे ता इही सादा खून के काम रथे घाव भरे के ये हमर शरिर म रोग-प्रतिरोधक क्षमता के काम करथे ये तो दिखाई नई देवय।
अब बतावव की सादा हा सिरजन उत्पत्ति के रंग आय की पिउंरा रंग हा । बाप के रंग के सम्मान करव बाप के रंग ला सर मा स्थान देथे इकरे सेती सादा के पागा अउ सादा चाउंर के टीका करे के समाज मा प्रचलन हावय। कोनो ला बुरा लगिस या कोनो गलत लगिस होही ता बने तार्किक ढंग ले समझा देहू।
अब आथव पिंवरा रंग के तरफ पिंवरा रंग हमर बिहाव अउ पुजई जातरा मा प्रयोग होथे लेकिन पागा सादा के रथे जम्मो परिधान सादा मा ही रथे।हल्दी के कई ठन वैज्ञानिक माहत्व हावय येकरे सेती कथे की येकर तीन जगह बस प्रयोग होथे छठ्ठी मरनी अउ बर बिहाव मा काबर की हल्दी हा रोगाणु नाशक आय छठ्ठी मा लईका के जनम होय ले माता अउ लइका दोनो ला रोगाणु किटाणु ले बचाय बर येकर प्रयोग करथे बिहाव मा दुल्हा देव दुल्ही दाई के रूप धरते ता जिनगी के नवा अध्याय शुरू होथे ता रूप रंग ला चमकाय सुघ्घर दिखे बर भी हरदी के उपयोग करे जाथें । परिवार एक दूसरे के रंग मा रंगथे। ऐकर अलावा अउ कोनो प्रकार के पिंवरा रंग के दर्शन मोर नजर म नई दिखय।
अब सवाल उठते की पिंवरा रंग कहा से समाज में घुस में हावय हमन बस्तर म देखतन आज भी रेला पाटा म सदा रंग गमछा अउ पाटा के उपयोग होथे। हमर गरियाबंद जिला के भुंजिया समाज में भी देखथन वोमन पिंवरा रंग ला नई अपनाय हावय। हमर समाज मा दू तीन साल होवत हे जेन मा पिंवरा रंग के पागा बांघत हे ध्रुव गोड़ समाज मा ये अभी अभी प्रचलन में देखा सीखी धरे ला चालु करे हावय कुछ ही क्षेत्र मा, बाकी ज्यादातर क्षेत्र म सफेद पागा के ही प्रचलन हावय।
पिउंरा चाउंर के प्रचलन हा भी जदा पुराना नोहे जब ले गायत्री परिवार मन के दखल समाज म बढ़ीस हे तब ले पिउंरा चाउंर के टीका लग लगाय जाथे जबकी हमर नेग दस्तुर म बिहाव के अलावा कोनो जगह पिंवरा चाउंर क माहत्व नई रहीस हावय।
हमर हर नेग जईसे देवारी तिहार म घलो चाउंर चढ़ाय म सादा चाउंर के उपयोग होथे हमर देव म सादा घोवा चाउंर के कुढ़ी करथे सादा चाउंर ही चढ़ते यहां तक ही देव देवी सिरहा आथे तहू हा सादा चाउंर ही छीतथे ।अब सवाल हावय की बिहाव के छोड़ जम्मो नेग दस्तुर मा सादा चाउंर के उपयोग होथे फेर सियान मन बिना बिचारे कईसन पिउरा चाउंर के उपयोग चालु कर दिन। जबकी समाज ला बुढ़ादेव के रूप माने गे हावय अउ बुढ़ा देव ला सादा घोवा चाउंर चढ़ते ता वईसने समाज म सादा चाउंर के टीका करे के प्रचलन हावय ।
एक रेला गीत के माध्यम ले समझन हमर असल संस्कृति ला
रीरी लोयो रेला रेला रेला रे रेला रेला
जोहर जोहर बुढादेवे, जोहर लागव तोर रे
संगी, जोहर लागव तोर
कच्चा गोरस घोवा चाउर सेवा लागव तोर
छेना में आगी, चिमचिम में धूप
सेवा लागव तोर रे संगी सेवा लागव तोर
रीरी लोयो रेला रेला रेला रे रेला रेला ।।
पूरनमल ध्रुव(प्रांताध्यक्ष) जोहार आदिवासी कला मंच (छ.ग.)