Monday, June 9, 2025
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आदिवासी कुम्भ नहीं पेन जतरा : समक्का-सारालम्मा जतरा

Bastar/  तेलंगाना में वारंगल से 100 किमी दूर मेडारम नामक स्थान पर आदिवासियों की माता-पुत्री देवियों, समक्का-सारालम्मा के प्रति श्रद्धा और स्मृति के लिए विशाल जातरा (मेला) चल रहा है।यह जातरा हर दूसरे वर्ष आयोजित होता है। इस साल यह जात्रा 5 से 8 फरवरी तक अयोजित है। यह दक्षिण भारत का सबसे बड़ा आयोजन है। यहां कुम्भ के बाद सर्वाधिक संख्या में सेवक सम्मिलित होते हैं। इस साल लगभग 1करोड़ 30 लाख सेवादारों की यहां सम्मिलित होने का अनुमान है।

इसका इतिहास लगभग 600 – 700 वर्ष पुराना है। 13 वीं शताब्दी में इस क्षेत्र में जब कोया आदिवासी जंगल मे शिकार पर थे, उन्हें वहां एक बच्ची मिली जिसे वे अपने साथ ले आये। उनके मुखिया ने उस बच्ची को पाला और नाम दिया समक्का। युवा होने पर समक्का अपने कबीले का नेतृत्व करने लगी। उसका विवाह पगिदिद्दा राजू के साथ हुआ जो वारंगल की काकतीय सेना में आदिवासी टुकड़ी का नायक था। उनके दो लड़कियां, सारालम्मा और नागुलम्मा और एक पुत्र जम्मपन्ना हुए। इसी समय अकाल पड़ा। गोदावरी तक मे पानी कम हो गया था। इस स्थिति में तत्कालीन काकतीय राजा प्रतापरुद्रदेव ने कर बढ़ा दिया। इसका कोया समुदाय ने विरोध किया, फलस्वरूप राजा ने अपनी सेना भेजी। कोया आदिवासियों और काकतीय सेना का संघर्ष हुआ। कोया समुदाय को मां समक्का, उसकी पुत्री सारालम्मा और पुत्र जम्पन्ना ने लीड किया। इस युद्ध में जम्पन्ना मारा गया और इसी मेडारम गांव के पास गोदावरी के प्रवाह में वह डूब गया! यह स्थान आज जम्पन्ना वागू कहलाता है जहां श्रद्धालु स्नान करते हैं। आज यह केदारनाथ के बाद सर्वाधिक विजिट किये जाने वाला स्थान है। इस संघर्ष में समक्का और सारक्का की भी मृत्यु हो गई। इस घटना के बाद कोया समुदाय द्वारा समक्का – सारलम्मा देवी की याद में प्रति दो वर्ष में इस जातरा का आयोजन किया जाता है। जहां यह देवियां स्थापित हैं, वह स्थान गद्दे कहलाता है। यहां इन मां-बेटी देवियों को गुड़ अर्पित किया जाता है।

 piyush kumar सर के वाल से

आगे कोयतोड़ दर्शन में वेन(भौतिक काय/मानव) से पेन (दैवीय/पुरका पेन) में स्थापित होने की सिद्धान्त

दर असल कोयतोड़ कोया समुदाय में इस सयुंग दीप/जलरंग दीप/सिंगार दीप की उत्पत्ति के समय से ही माटी पर उत्पत्ति कली से हुई है। कली एक कोशिकीय प्राक जीवन इकाई है। इस प्राक कोशिश के रूप में कवक, शैवाल पैरामिशियम अमीबा जैसे जीव उत्पन्न हुए। यही सरल जीवों की उत्तरोत्तर जैविक विकास से बहुकोशिकीय जीवों का प्रादुर्भाव हुआ। अर्थात पृथ्वी पर जल व भूमि के संयोग में तत्वों की निश्चित मात्रा के संयोजन समुचित ताप दाब के कारण जीवन की उत्पत्ति हुई। कोयतोड़ जीवन दर्शन कोया पुनेम में पीटो पाटा में इस जीवन की उत्पत्ति को कलि के द्वारा बताया जाता है। यही कली के द्वारा कंकाल अर्थात जीवन का ढांचा बनाना बताया गया है इसलिए कोयतोड़ कली कंकालिन नाम की याया को पृथ्वी पर जीवन की जन्मदात्री के रूप में मानते हुए सेवा अर्जी किया जाता है। कोया पुनेम दर्शन के अनुसार कली कंकालिन याया की सेवा अर्जी आदि पेरी द्वारा किया गया। पहांदी पारी कुपार लिंगो महान प्रकृति वैज्ञानिक की गुरु याया जंगो रायतार ने विश्व की प्रथम पाठशाला कच्चे मटा वर्तमान कचार गढ़ की गोटुल में बूम(पृथ्वी)की उत्पत्ति तथा जीवन(कली) की उत्पत्ति की शिक्षा प्रदान की। इसका विस्तार कुपार लिंगो द्वारा इसके बाद ही कोयतोड़ समुदाय में किया गया। तब से गोंडवाना दीपा के जनजाति समुदाय में कली कंकालिन याया की सेवा अर्जी परम्परागत रूप से किया जाता है।

कोयतोड़ समुदाय दर्शन सल्लागंगरा सिद्धान्त के अनुसार निर्मित संचालित होता है। इस दर्शन के अनुसार धन ऋण उर्जा शक्ति के मूलाधार पर विश्व संचालित हो रहा है। इसमें कोई एक शक्ति नहीं है। विश्व की भौतिक,रासायनिक व जैविक तत्वों में भी धन ऋण मौजूद होती है। कोयतोड़ कि पुरखोती ज्ञान के अनुसार मानव जीवन के भी दो रूप होते हैं भौतिक काय को वेन तथा भौतिक काय की क्षरण हायना(मृत्यु) अर्थात पदार्थों के अपघटन के फल स्वरूप ऊर्जा निकलती है। इस उर्जा के दो स्थिति निर्मित होती है पहला विमुक्त ऊर्जा का पृथ्वी पर मिलना दूसरा वेन के अपघटन से उर्जा का एक संघनन(cloud) स्वरूप। हायना के बाद उर्जा का संघनन रूप को ही कोयतोड़ वेन कहते हैं।इस उर्जा से पेन रूप का जन्म होता है। इस रूप की भी जीवन भौतिक काय के विभिन्न रूपों के समान ही है। प्रत्येक वेन से पेन नहीं बनते। इसके पीछे हायना नेंग के बाद उर्जा की संयुक्त व विलगाव अवस्था तथा वेन के द्वारा जीवन काल में प्रकृति व समुदाय की पुनेमि ज्ञान पर निर्भर करती है। वेन से पेन बनने की क्रिया को कोयतोड़ विभिन्न परम्परागत नेंग नीति के अनुसार जान कर पेन पुरखों की ठाठ बनाकर करसाड़ जतरा बनाकर स्थापित करते हैं। इसी करसाड़ जतरा को ही पेन की गुण के अनुसार एक ,दो, तीन, पांच व सात साल के अंतराल में उस पेन के सभी सगा सम्बन्धियों को डोंडा माल भेजकर नेवता दिया जाता है। यह जतरा ललेंज की एक निश्चित तिथि के अनुसार ही आयोजित किया जाता है। सम्मका सरलम्मा याया की जतरा मा बेटी व बेटे की पेन की जतरा है। चूंकि कोयतोड़ याया पेनों की स्तुति में सबसे प्रिय वस्तु हरंगी लासा (धूप), गाय घीव या गुड़ है। इसलिए समक्का सरलम्मा याया के लिए सेवादार या अनुग्रहित लोग गुड़ भेंट किया जाता है। मेडारम की जतरा कोयतोड़ जतरा ही है परंतु अप्रत्याशित भीड़ व प्रशासन की हस्तक्षेप के कारण नेंग दस्तूर में बदलाव आ रहा है जो कि भविष्य के लिए ठीक नहीं है। प्रसंस्कृतिकरण के कारण याया की पेन ठाना में स्थित कसी पेड़ मर गया। आगे और क्या क्या हास हो सकता है इसका अनुमान कसी पेड़ से लगा सकते हैं….

समक्का सरलम्मा याया न सेवा सेवा…. जम्पन्ना वागु बाबो न सेवा सेवा….

लेखक: कोसोहाड़ी लंकाकोट

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