लेखक : अनिल मरावी
आज धूप थी खिली खिली,
पर ना जाने कहां से बरसात आ गई,
मौसम भी लगने लगी सुहानी,
और बहार आ गई,
कुछ भूल गए थे हम,
वो मीठी बातें याद आ गई,
होती थी छुपकर घंटो बातें,
वो छुपने की हुनर याद आ गई,
वो रूठना और मनाना,
कभी ख्वाबों में जगाना ,
अनदेखी अनजानी की,
वो तस्वीर याद आ गई,
बड़ी ख्वाहिश थी उनसे,
बस एक मुलाकात की,
बंद तो थी वो कमरें
जहां कुछ भी न मीठी बात की,
ना जाने वो कैसा अहसास था,
मेरे बस में नहीं वो खुशी का अंदाज था,
कुछ समझ न पाया,
जाने वो कैसे चमन को महका गई,
कमबख्त वो दिन ढल गया,
और काली रातें आ गई,
आज किसी ने हमें याद की,
फिर वो कहानी याद आ गई।