Monday, August 25, 2025
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आज धूप थी खिली खिली,पर ना जाने कहां से बरसात आ गई

लेखक : अनिल मरावी 

आज धूप थी खिली खिली,

           पर ना जाने कहां से बरसात आ गई,

मौसम भी लगने लगी सुहानी,

        और बहार आ गई,

कुछ भूल गए थे हम,

       वो मीठी बातें याद आ गई,

होती थी छुपकर घंटो बातें,

      वो छुपने की हुनर याद आ गई,

वो रूठना और मनाना,

       कभी ख्वाबों में जगाना ,

 अनदेखी अनजानी की,

       वो तस्वीर याद आ गई,

बड़ी ख्वाहिश थी उनसे,

      बस एक मुलाकात की,

बंद तो थी वो कमरें

         जहां कुछ भी न मीठी बात की,

ना जाने वो कैसा अहसास था,

        मेरे बस में नहीं वो खुशी का अंदाज था,

 कुछ समझ न पाया,

       जाने वो कैसे चमन को महका गई,

कमबख्त वो दिन ढल गया,

        और काली रातें आ गई,

आज किसी ने हमें याद की,

          फिर वो कहानी याद आ गई।

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