जगदलपुर : नगरनार स्टील प्लांट के नीजिकरण पर रोक लगाने के लिए केन्द्र सरकार को आदिवासी समाज के साथ-साथ बस्तर के विभिन्न संगठनों के द्वारा आवेदन निवेदन किया जाता रहा है। लेकिन केन्द्र सरकार बस्तरवासियों की मुल भावनाओं की अनदेखा करते हुए नव निर्माणाधीन नगरनार स्टील प्लांट को बेचने के लिए आतुर है। संपूर्ण बस्तर संभाग संविधान के पाँचवी अनुसूचित क्षेत्र में आता है। ऐसे में इक्कीसवी सदी के प्रारम्भ में बस्तर के विकास का नया आयाम का नाम लेते हुए सार्वजनिक उपक्रम एनएमडीसी के इस्पात संभाग का इकाई लगाने के नाम पर प्रभावित क्षेत्र से भूमि अधिग्रहण किया गया और अत में विभिन्न समस्याओं का हवाला देते हुए एकाएक बस्तर के मूलनिवासियों का भावनाओं के विपरीत इस्पात संयंत्र को विनिवेश के नाम पर बेचा जा रहा है, तो क्या अब ऐसे स्थिति में प्रभावित क्षेत्रो के ग्रामो से ग्राम सभा से स्वीकृति लेने का प्रावधान संविधान से संशोधित कर दिया गया है। यदि ऐसा है तो वर्तमान केन्द्र सरकार ने पवित्र संविधान की हत्या की है और ऐसा नहीं है? तो सांवैधानिक प्रावधानों की हत्या स्पष्ट दिख रही है। 1947 देश की आजादी के बाद बस्तर जैसे प्राकृतिक संसाधनो से परिपूर्ण क्षेत्र में प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के विशेष पहल से बस्तर के दन्तेवाड़ा जिला में बैलाडीला के पहाड़ियों पर केन्द्र सरकार का उपक्रम एनएमडीसी का विश्व प्रसिद्ध लौह खदान खोला गया खदान के प्रारम्भिक और बस्तर कि वर्तमान मध्यप्रदेश के नजदीक के शहर रायपुर में कम्पनी का मुख्यालय के आवश्यक सुविधाओं और माप दण्ड का हवाला देते हुए दूर आन्ध्रप्रदेश की राजधानी हैदराबाद में एनएमडीसी का मुख्यालय खोला गया। जो आज वर्तमान तक संचालित है। 2001 में मध्यप्रदेश से विघटित हो कर छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद इन 23 वर्षों में लगातार राज्य के राजधानी एवं बस्तर संभाग की राजधानी जगदलपुर में विभिन्न नये आयाम और सुविधाओं की कभी नहीं रहगयी है। इसके बावजूद भी लगातार समाजिक राजनीतिक रूप से एनएमडीसी का मुख्यालय बस्तर लाने का मांग समय-समय पर होता रहा है। इसे भी केन्द्र सरकार आज दिनांक तक दरकिनार करते आ रही है।
पाँचवी अनुसूचित क्षेत्रों में स्थानीय भर्ती नहीं होने से बस्तर जैसे पिछड़ा क्षेत्र के युवाओं को रोजगार का अवसर नही मिल रहा है। हाल ही में छत्तीसगढ़ शासन के व्यापम के माध्यम से 12000 शिक्षकों का भर्ती किया गया, जिसमें बस्तर संभाग के मात्र 245 युवाओ का ही चयन हुआ। वह भी अन्य जिलो से आये हुए उनके बच्चों का चयन हुआ है जबकि बस्तर मूल के एक भी बच्चों का चयन नही हुआ है। ऐसे में बस्तर का शिक्षा व्यवस्था कैसा हो सकता है? संभाग में तीन मेडिकल कॉलेज है, वहाँ भी बस्तर के युवाओं का चयन नही होता ऐसे में बस्तर जैसे अंदरूनी क्षेत्रो का स्वस्थ्य सेवा कैसा हो सकता है। संभाग का शिक्षा व स्वास्थ्य पर आज तक शासन प्रशासन सही ढंग से ध्यान नही दिया, जबकि बस्तर संभाग में खनिज मद से लगभग 12000 करोड़ रुपये सलाना रायल्टी मिलने के बावजूद ग्रामीण शिक्षा व स्वास्थ्य व्यवस्था ठीक नही है। आजादी के 75 वर्षों बाद भी संविधान के निर्माण के प्रारंभिक दौर में भारत जैसे लोक तांत्रिक देश के सभी वर्ग विशेष को समान रूप से (जनसंख्या के आधार पर) लेते हुए मुख्यधारा में जोड़ना और देश का विकास में सम्मिलित करना संविधान की मूल अवधारणा रही है किन्तु आज देश के सभी वर्गों से आवाज उठ रही है कि आजादी के 75 वर्षों में भी देश के सभी वर्गो समान अधिकार नहीं मिल पा रहा है। अर्थात सभी वर्गों का समान भागीदारी आज भी आपेक्षित है। ऐसे में आज देश जातिगत जनगणना सर्वोपरि मान रहा हैं। सर्व आदिवासी समाज बस्तर संभाग एवं छत्तीसगढ़ पिछड़ा वर्ग संगठन के तत्वाधान में उक्त चार सूत्रीय बिन्दुओं मांगों को लेकर रैली व आम सभा का आयोजन किया है। चूंकि वर्तमान में माननीय प्रधान मंत्री के बस्तर प्रवास को देखते हुए प्राथमिकता के साथ दिनांक 02/10/2023 को आम सभा व रैली का आयोजन किए जाने का प्रस्ताव है ।