Thursday, January 9, 2025
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किसानों और गांवो का प्यारा भैंसा” (केबीसी व्दारा विशेषण किया गया बेहतरीन लेख ))

#भैंस/भैंसा #Buffalo ????

#ऐरमी /अड़मी 

भैंसा #Buffalo???? जो सदियों से उपेक्षित रहा है ।

भैंसा ???? जो खलनायकों का प्रतीक बनाऐ जाता रहा है ।

भैंसा ???? जो रंग भेद नस्ल भेद का शिकार रहा है ।

भैंसा???? जो सर्वगुण सम्पन्न होते हुए भी भेदभाव का शिकार हुआ ।

भैंसा ????भारतीय उपमहाद्वीप के परिस्थितियों में आलराउंडर होते हुए भी हमेशा उपेक्षित किया गया ।

भैंसा ????जो हर गांव में पुजनीय होते हुए भी बाहरी ग्रंथों में हमेशा दुश्मन/खलनायक बनाया गया ।

   “जबकि यह किसानों और गांवो का प्यारा भैंसा”

भैंसा ????ने गाँवों की स्थापना करने में, नगरों की स्थापना करने में, मानव के विकास में, कृषि के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है ।

           इसे समझने के लिए धीरे धीरे नीचे पढ़ते जाते हैं ?

???? हम जानते हैं कि सभी सभ्यताओं का विकास नदियों के किनारे हुआ है ।

????हर बड़ी नदियों के सहायक नदी होते हैं

????सहायक नदियों में भी सैकड़ों छोटी नदियों का जाल होता है ।

????इन छोटी नदियों से हजारों नाले जुड़े हुए रहते हैं

????इन नालों से लाखों जल सरंचना “कोहड़ा ” जुड़े हुए होते हैं ।

????किसी स्थान पर इन जलीय संरचनाओं व जल की वर्षभर उपलब्धता को देखकर ही कोयतोर/Indigenous मानव बस्तियाँ बसाया करते थे ।

…………………………

????बस्तियों की जनसंख्या बढ़ने के साथ ही कृषि उत्पादन बढ़ानी जरूरी थी इसलिए खेतों को गहरी जुताई…. व जंगल कटने के बाद, ???? वृक्षों के बचे हुए ठुट, जड़ों को खेत से निकालनी जरूरी थी इसलिए इस कार्य के लिए मजबूत भैंसों की जरूरत थी ।

???? इसलिए मजबूत भैंसों को पालतू बनाया गया ।

????मजबूत भैंसों ने कृषि में क्रांतिकारी विकास किया ।

????मजबूत भैंसों से संगठित गांवों का निर्माण हुआ ।

????भारतीय उपमहाद्वीप में कृषि मानसून पर निर्भर है, मानसून में बरसात के बीच कृषि जुताई के लिए भैंसा आवश्यक हो गया क्योंकि भारी वर्षा में बैल ????उपयूक्त नहीं होते हैं ।

????अपनी मोटी चमड़ी से घने जंगलों, कटिली झाड़ियों में भी चलने में अनुकुलित था ।

????बरसात के चार महीनों में खुले में चराने के लिए परेशानी ना होना, 

????भारी मालवाहक भैसागाड़ी को उबड़खाबड़, दलदली रास्तों पर भी गाड़ी निकालने में सक्षम होना ।

????किचड़ो से भरे धान के खेतों के लिए तो भैंसा बहुत ज्यादा जरूरी हो गया ।

इसलिए हर संगठित गाँव में भैंसा ???? पुजनीय हो गया ।

इसलिए हर संगठित गाँव में #भैंसासूर स्थापित होने लगा ।

इसलिए हर संगठित मूल गाँव में भैंसासूर आज तक है ।

पीछले पोस्ट पर लिखा था कि हमारे लिए गाय???? बैल ????भैंस बकरी सभी महत्वपूर्ण है…. प्रजाति गत भेदभाव नही है ।

जिन इलाकों में नदियों और नदियों के जलीय संरचना का आभाव था उन प्रदेशों- देशों में गाय???? ज्यादा विकसित हुआ ।

जिन प्रदेशों पानी ज्यादा उपलब्ध है उन क्षेत्रों में भैंस ज्यादा विकसित हुआ ।

और हम जानते हैं कि भारतीय उपमहाद्वीप में नदियों का जाल है सिंधु_गंगा_ब्रह्मपुत्र_नर्मदा_गोदावरी_कृष्ण _कावेरी.. .. . 

इन सभी नदियों ने गाँव-कस्बा-नगर खुब बसाया दुनिया के सबसे सघन जनसंख्या को पैदा किया… और इन सबके पीछे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी भैंसा ने भैंसों की दो प्रजाति होती है एक पानी भैंसा ????Water River buffalo????

दुसरा किचड़ भैंसा (swamp buffalo ) 

पानी भैंसा अकसर पानी में तैरकर नहाकर अपनी गर्मी???? को नियंत्रित करती है इस पानी वाले भैंसा River buffalo????की जैविक उत्पत्ति भी भारतीय उपमहाद्वीप को, ही माना जाता है ।

जबकि किचड़ भैंसा चीन थाइलैंड इंडोनेशियाई देशों में दलदली इलाकों में पाई जाती है जिसे किचड़ पर लोटना बहुत जरूरी है इस प्रजाति के भैंसा को चाइना और थाइलैंड की मूल प्रजाति माना जाता है ।

भैंसा पालने के ऐतिहासिक साक्ष्य भारतीय उपमहाद्वीप में लगभग-7000 साल पहले की मिलती है भैंसा भारतीय उपमहाद्वीप की मूल प्रजाति है.. विभिन्न शैल चित्रों में???? इसके 30000 वर्ष पुरानी राक पेंटिंग मिलती है. भारत में दुनिया में सबसे अधिक भैंसा पाया जाता है…. वैज्ञानिक विश्लेषण में गाय के दुध मे सभी सामान्य तत्वों की सघनता गाय के दुध से ज्यादा होती है…. पर बाहर से आऐ हुए दुध पर निर्भर जातियों ने अपनी दुध बेचने के लिए भैंस के दुध को हमेशा कमतर दिखाने की साजिश सदियों से रचते रहे ।

आधुनिक व्यवसायिक गाय डेयरियो की भी कुटनीति भैंस के दुध को कमतर दिखाने की ही रही है.. (टेबल में दोनों के दुध का तुलनात्मक अध्ययन देख सकते हैं) 

इस व्यवसायिक प्रतिद्वंद्विता के कारण भैंसा को हमेशा बदनाम किया गया.. काले रंग के होने के कारण भैंसा???? को रंगभेद का भी सामना करना पड़ा…. अनेक ग्रंथों में खलनायक पात्रों की रचना किया गया और उसे भैंसा के साथ जोड़ा गया है ।

???? यह इसलिए हुआ कि इससे भारतीय गांवों के किसानों की आत्मविश्वास व आत्मनिर्भरता खत्म हो… 

????गांवों की आत्मनिर्भरता खत्म होने पर गावों में घुसकर उसके इकोनॉमी और संस्कृति को नष्ट किया जा सके 

 अब हम गोंडी लैग्वेज में वैज्ञानिक तरीके से अध्ययन करते हैं

    भारतीय जलीय भैंसा आपको कहीं भी पोखर, नदियों में नहाते हुए देखा जा सकता है…. अर्थात इन भैंसों को नहाना जरूरी होता है….. पानी जरूरी होता है

बड़ी नदी को गोंडी लैग्वेज में “#कुऐर्र ” कहते हैं ।

और पानी???????? को गोंडी में ” #ऐर्र ” कहते हैं ।

और भैंसा को गोंडी में ” #एर्रमी”/अरमी/अड़मी कहते हैं ।

और आश्चर्य करेंगे नहाने को गोंडी में “#ऐर्रमियाना ” कहते हैं ।

मतलब ऐसे पशु जिनको रोज नहाना आवश्यक है… ऐसे जीव को सबसे प्राचीन गोंडी लैग्वेज में नाम दिया गया है “#एर्रमी “…इसी तरह कालांतर में तमिल भाषा में यह #इरूमई #Erumai हो गया ।

अब इस जल भैंसा की प्रजाति का मूल जंगली भैंसा है जिसका वैज्ञानिक नाम wild water buffalo (Bubalus arnee) इसमें Arnne शब्द उसके मूल तत्व का घोतक है ।

अब हम जानते हैं कि ????पानी ???? की उपलब्धता देखकर गांव बने….. इसलिए गांव को गोंडी लैग्वेज में… “नार्र”  कहा गया… ना +ऐर्र / बड़े नदियों के किनारे बड़े बस्तियाँ बसे,  बड़े नदी मतलब “कुऐर “

इन बस्तियों को===>> नग + ऐर् ==> नगेर ===>#नगर

 कहाँ गया..

नगरो के इतिहास पर हम अगले कुछ आलेखों में लिखेंगे

यहाँ “अरमी ” पर फोकस करते हैं

नार्र हुजाड़ / ग्राम व्यवस्था

ग्राम व्यवस्था में हम जानते हैं कि देश के सभी प्राचीन गाँव लगभग समान रूप से डिजाइन किऐ हुए हैं…. हर गांव में ग्राम शक्ति केन्द्र लगभग समान है…. लगभग हर गांव में भैसासूर पेन स्थान भी है 

इन जंगली भैंसों को गाँव में स्थायी पालन करने आकर्षित करने के लिए हर गांव में तालाब बनाना जरूरी हो गया 

ऐसे तालाबों को ऐसे जलीय तंत्र पर बनाया जाता था कि वहाँ पानी???? साल भर ठहर सके ।

जिन गांवों में प्राकृतिक रूप से ऐसे जलस्त्रोत थे जहाँ वर्ष भर पानी रहता हो उन गांवों में वही पर भैंसा सूर स्थापित किया जाता था ।

इन विशिष्ट तालाब/झिल/पोखर को, भैसासूर तालाब /झिल कहाँ गया… ऐर बर्रे तालाब/झिल कहाँ गया

भैंसा सूर तालाबों में आज भी जून के महीनों तक पानी रहता है ।

भैंसा सूर तालाबों में आज भी भैंसों को तैरते नहाते देखें होंगे ।

भैंसा सूर तालाबों में ही गर्म महीनों में जीव जंतु पशु पक्षी अपनी प्यास बुझाते है ।

भैसासूर तालाबों में ही मछली व अन्य जलीय जीवों का जीवन चक्र पुरा होता है अगले मानसून तक जीवन चक्र को सतत् रखता है ।

हर गांव में भैंसा सूर को कृषि सिचाई संबंधित जलीय तंत्र का देवता माना जाता है ।

इसलिए भारत देश के हर प्राचीन बसाहट वाले गाँव का किसान भैंसासुर को पुजता है ।

इन भैसासूर तालाबों जल स्त्रोतों में सार्वजनिक नहाने वगैरह पर प्रतिबंधित रहता है ।

हर 12 साल में एक बार खेतों के मिट्टी को पुरी तरह पल्टा जाता है ।

हर 12 साल में भैंसा सूर /ऐर्र बर्रे को मिट्टी में सेवा दिया जाता है ।

भैंसा गाँव की शान है, किसानों की जान है

भैंसा को सम्मान मिलना था वह कुछ साजिशों के तहत नहीं मिला

भैंसा और भैसासूर/एर्रबरे पेन के बारे में विस्तृत अध्ययन हम अगले आलेखों में करेंगे ।

लेखक Narayan Markam

Boom_Gotul_University_Bedamamar

नीचे चित्र में भैंसा नहाते हुए, टेबल पर विभिन्न पशुओं के दुध में पाऐ जाने वाले तत्व

पुनश्च… वर्तमान में दुनिया में सबसे अधिक भैंसा???? भारत में है, दुनिया में सबसे अधिक भैंसा मांस का निर्यात भारत करता है लगभग 1,175,869.13 MT( सन 2022- 2023)  दुनिया में सभी गौवंशीय मांस निर्यात के मामले में भी इस वर्ष टाप पर पहुँच गया है और उसमें भी उत्तर प्रदेश देश में टाप पर है अब और ज्यादा मत सोचिए ।

क्योंकि गाँव भैंसा को मांस के दृष्टिकोण से कभी नहीं पालता है यह तो उन्ही बाहरी प्रजाति के लोगों का कमाल है जो अब आधुनिक डेयरी वाले कहलाते हैं और उसी डेयरी इकोनॉमिक्स के सिद्धांत के अनुसार हमारे प्यारे लाडले आलराउंडर भैंसा को मांस के निर्यात के नाम पर कटना पड़ता है…… जबकि गांवों में आज भी आप लोगो ने बुजुर्ग भैसों को भी उसी तरह प्यार से चराते पालते जरूर देखा होगा…. और यदि भैंसा???? पर बच्चपन में बैठकर सवारी की होगी…. या भैसों के साथ नदी तालाब में नहाया होगा तो जरूर बताइऐगा….. और यह भी जरूर बताइये कि आपके गाँव में भैंसासूर पेन स्थल है? 

एक बार पुन : सभ्यता के विकास में #ऐरमी भैंसा???? के योगदान को याद करिये ।

कुऐर===> बड़ी नदी

ऐर????===> पानी

ऐरमियाना===> नहाना

भैंसा==> ऐरमी

गाँव==> नार्र = ना + ऐर्र 

नगर ===> नग +ऐर्र

महान Indigenous लैग्वेज गोंडी लैग्वेज में हम देश के इतिहास को सही तरीके से समझ सकते हैं… नहीं तो वर्तमान मुख्य भाषाओं के शब्दजाल तो देश के लिए बहुत ही घातक बनते जा रही है ।

#ऐरमी ???? और #भैसासूर_एर्रबरे पेन को नमन.. . . सेवा जोहार????????

(फोटो दीपक जुर्री , कृषना शोरी व KBKS Discover team के द्वारा प्रदत्त)

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