नई दिल्ली :- सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली स्थित एम्स अस्पताल को इस मामले में एक मेडिकल बोर्ड गठित करने का आदेश दिया है, जो ये देखेगा कि गर्भपात से महिला के जान को कोई ख़तरा तो नहीं है । साथ ही, अदालत ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) संशोधन अधिनियम, 2021 के प्रावधानों की स्पष्ट व्याख्या करने को लेकर केंद्र सरकार को नोटिस भी जारी किया है, जिसपर अगली सुनवाई 2 अगस्त को होनी है । इससे पहले याचिकाकर्ता को दिल्ली हाई कोर्ट ने ये कहते हुए गर्भपात की मंज़ूरी नहीं दी थी कि गर्भपात क़ानून में अविवाहितों के लिए कोई प्रावधान नहीं है ।
हाई कोर्ट के फ़ैसले को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) संशोधन अधिनियम, 2021 के प्रावधानों का दायरा अविवाहित महिलाओं तक बढ़ाते हुए कहा कि इस क़ानून की व्याख्या केवल विवाहित महिलाओं तक सीमित नहीं रह सकती है ।
जानकारी के मुताबिक़, इस मामले की याचिकाकर्ता एक लिव-इन रिलेशनशिप में थी और सहमति से बने संबंधों से गर्भवती हुई थी. अब यहां ये जानना ज़रूरी है कि सुप्रीम कोर्ट का ये फ़ैसला भविष्य में इस तरह के अन्य मामलों में महिलाओं के लिए राहत भरा हो सकता है ।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस एएस बोपन्ना की तीन सदस्यीय पीठ ने अपने फ़ैसले में कहा कि एक अविवाहित महिला को सुरक्षित गर्भपात कराने की इजाज़त न देना उसकी निजी स्वायत्तता और आज़ादी का उल्लंघन होगा ।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि एमटीपी एक्ट में संशोधन के ज़रिए मंशा अविवाहित महिलाओं को भी इसके दायरे में लाने की रही होगी. इसलिए संशोधित क़ानून में ‘पति’ की जगह ‘पार्टनर’ शब्द जोड़ा गया है ।
कोर्ट ने ये भी कहा कि महिला को इस क़ानून के तहत मिलने वाले लाभ से केवल इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि वो शादीशुदा नहीं है। कोर्ट के आदेश में ये कहा गया है कि बच्चे को जन्म देने या न देने की मर्ज़ी महिला को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले निजी स्वतंत्रता के अधिकार का भी अभिन्न हिस्सा है. न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अगर महिला को गर्भपात की मंज़ूरी नहीं दी गई तो ये क़ानून के उद्देश्य और भावना के विपरीत होगा । हाई कोर्ट के फ़ैसले को अनावश्यक प्रतिबंध बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि क़ानून को 20 सप्ताह तक के गर्भ को ख़त्म करने तक सीमित नहीं रखा जा सकता, क्योंकि ऐसा करने से अविवाहित महिलाओं के साथ भेदभाव होगा ।
गर्भ निरोध के लिए क्या-क्या करते थे लोग और क्या है गर्भपात क़ानून?
दरअसल, 1971 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी एक्ट बनाया गया. इसमें 2021 में संशोधन किया गया और गर्भपात करवाने की मान्य अवधि को कुछ विशेष परिस्थितियों के लिए 20 हफ़्ते से बढ़ाकर 24 हफ़्ते कर दिया गया । पुराने एक्ट में ये प्रावधान था कि अगर किसी महिला को 12 हफ़्ते का गर्भ है तो वो एक डॉक्टर की सलाह पर गर्भपात करवा सकती है. वहीं 12-20 हफ़्ते में गर्भपात करवाने के लिए दो डॉक्टरों की सलाह अनिवार्य थी । लेकिन संशोधित क़ानून में 12 से 20 हफ़्ते में गर्भपात कराने के लिए एक डॉक्टर की सलाह लेना ज़रूरी बताया गया है. इसके अलावा अगर भ्रूण 20 से 24 हफ़्ते का है, तो इसमें कुछ श्रेणी की महिलाओं को दो डॉक्टरों की सलाह लेने के बाद ही इजाज़त दी जाएगी ।
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