अंतागढ़ :- ग्रामसभा के दस्तावेजों को समझने का प्रयास किया और शाम 7 बजे पांच गांव की ग्रामसभा में शामिल होकर ग्राम सरकार को जाना, वहीं ग्रामसभा वन प्रबंधन को समझने की प्रक्रिया ग्राम सभा सक्षम, ग्रामसभा में 50 प्रतिशत से अधिक उपस्थिति होती है। पांचगांव को वन संसाधन अधिकार पत्र प्राप्त वर्ष 2012 में मिला है, उसके बाद से ग्रामसभा ने जंगल का प्रबंधन किया।
इस कारण जंगल का प्रत्येक व्यक्ति 18 वर्ष पार कर चुका है। ग्राम सभा में पंजीयन के बाद 12 माह में ग्रामसभा स्वयं कई प्रकार के रोजगार उपलब्ध करा रहे हैं। सरकार से कुछ भी बजट नहीं ले रहे हैं बल्कि जंगल के संसाधन से लाखों के बजट ग्राम सभा को मिल रहे हैं। स्थानीय संसाधन से ही टिकाउ रोजगार मिल रहा है, जिसमें ग्रामसभा द्वारा दैनिक मजदूरी 400 से 500 रुपए कर दिया जा रहा है। जिससे गांव में सभी लोग खुश होंगे और ग्रामसभा ने 115 नियम बनाए गए हैं जिसको सभी पालन करते हैं सबको समानता का अधिकार प्राप्त है, सबको समान मजदूरी मिलती है। ग्राम सभा स्वयं सरकार है। बहुचर्चित नारा मावा नाटे मावा राज को साकार होते अंतागढ़ के युवाओं ने पहली बार देखा। वन अधिकार मान्यता कानून 2006 के अधिकारों को समझाया। वहीं पांच गांव के लोगों से कहा गया कि वन प्रबंधन गांव की पारंपरिक तकनीक को साथ लेकर शुरू किया गया था। यह काम ठेंगा विधि द्वारा किया गया इससे जहां जंगलों की सुरक्षा हुई और गांव के लोग अपनी जिम्मेदारी को समझने लगे और आज जंगल में कई जंगली जानवरों के सघनता धीरे धीरे बढ़ रही है। इन्हें देखकर ग्राम सभा की सक्रियता भी बढ़ गई है। अंत में संस्था प्रमुख केशव सोरी ने बताया कि पांच गांव के ग्राम सभा के सदस्यों द्वारा वन प्रबंधन और ग्राम सभा को लेकर बताए गए तरीकों को अब आने वाले दिनों और कांकेर जिले में अपनाया जाएगा। इस वन प्रबंधन अनुभव यात्रा में नरसिंह मंडावी, अजय दीपक, सूरज नेताम, विशाल उसेंडी, लालसाय नूरेटी, संतप्रसाद उईके, नरसिंह करंगा, रायसिंह कुमेटी, दिलीप दुग्गा, महेश नुरेटी, संध्या कौडों सुशीला नुरेटी, अनिता, उर्मिला, सोनवारीन, मोहन दर्रों आदि मौजूद थे।