संघर्ष
आदिवासियों का जीवन,
संघर्ष में व्यतीत हो रहा है।
आ रहा फिर संघर्षपूर्ण वक्त,
हालातों से प्रतीत हो रहा है।
जल जंगल जमीन अब,
बस कहने को हमारी है।
कितनों हुए बलिदान मगर,
आज भी संघर्ष जारी है।।
यह सवाल है ज़हन में,
क्या हमारे साथ ठीक हो रहा है।
आदिवासियों का जीवन ,
संघर्ष में व्यतीत हो रहा है
छीना गया जमीन कभी,
विस्थापन के नाम पर।
रोजगार की लालच में,
यू औने पौने दाम पर।।
फिर पुनरावृति अब भी,
हमारा अतीत हो रहा है।
आदिवासियों का जीवन,
संघर्ष में व्यतीत हो रहा है
पन्नों पर दब के रह गए,
हित के कानूनी धाराएं।
कथाकथित हितैषी सरकारें,
धरातल पर तो लाएं।।
कब और कौन समझेगा,
हमें तकलीफ हो रहा है।
आदिवासियों का जीवन ,
संघर्ष में व्यतीत हो रहा है।
सुलझती नहीं समस्याएं ,
आज भी लताड़े जाते हैं।
बंदूक की नोक पर यहां,
जंगल उजाड़े जाते हैं।।
अधिकारों की अवहेलना,
सरकार भी सरीक हो रहा है।
आदिवासियों का जीवन ,
संघर्ष में व्यतीत हो रहा है।
आदिवासी नृत्य महोत्सव,
देखो मनवाने की आड़ में।
दरकिनार हमारी समस्याएं,
सत्ता बचाने की जुगाड़ में।
हमें बहलाने फुसलाने की,
मानों कोई रीत हो रहा है।
आदिवासियों का जीवन,
संघर्ष में व्यतीत हो रहा है।
आ रहा है संघर्षपूर्ण वक्त,
हालातों से प्रतीत हो रहा है।
लेखक -: जीतेन्द्र नेताम, जिला गरियाबंद