झारखण्ड -: झारखंड में पदों और सेवाओं की रिक्तियों में आरक्षण (संशोधन) विधेयक 2022 शुक्रवार को राज्य विधानसभा में पारित हो गया, जिसमें एसटी, एससी, ईबीसी, ओबीसी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण का कोटा वर्तमान 60 फीसदी से बढ़ाकर 77 फीसदी कर दिया गया है।
हालांकि, विधानसभा के एक विशेष सत्र द्वारा पारित किया गया विधेयक इस चेतावनी के साथ आया है कि यह अधिनियम भारत के संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल होने के बाद प्रभावी होगा। जहां आरक्षित वर्ग के समर्थक लोगों ने नए कानून का जश्न मनाते हुए स्वागत किया, वहीं आलोचकों ने इसे कई आरोपों और धमकियों का सामना कर रही हेमंत सोरेन सरकार की राजनीतिक नौटंकी बताकर आलोचना की है।
क्या हैं आरक्षण के नए प्रावधान?
प्रस्तावित आरक्षण में अनुसूचित जाति (SC) समुदाय के स्थानीय लोगों को 12 फीसदी, अनुसूचित जनजाति (ST) को 28 फीसदी, अति पिछड़ा वर्ग (EBC) को 15 फीसदी, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 12 फीसदी का कोटा मिलेगा और अन्य आरक्षित श्रेणियों के लोगों को छोड़कर ईडब्ल्यूएस (EWS) के लिए 10 फीसदी कोटा तय किया गया है।
अभी तक यह थी स्थिति
वर्तमान में झारखंड में एसटी को 26 फीसदी आरक्षण मिलता है, जबकि एससी को 10 फीसदी और ओबीसी को 14 फीसदी आरक्षण मिलता है। झारखंड द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए आरक्षण, हाल ही में दिए गए सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद अपनाया गया है। बता दें कि पिछले विधानसभा चुनाव में राज्य में आरक्षण बढ़ाना सभी मुख्यधारा की पार्टियों का चुनावी वादा था, जिसमें सत्तारूढ़ यूपीए के सहयोगी झामुमो, कांग्रेस और राजद शामिल थे।
क्या हैं आरक्षण के नए प्रावधान?
प्रस्तावित आरक्षण में अनुसूचित जाति (SC) समुदाय के स्थानीय लोगों को 12 फीसदी, अनुसूचित जनजाति (ST) को 28 फीसदी, अति पिछड़ा वर्ग (EBC) को 15 फीसदी, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 12 फीसदी का कोटा मिलेगा और अन्य आरक्षित श्रेणियों के लोगों को छोड़कर ईडब्ल्यूएस (EWS) के लिए 10 फीसदी कोटा तय किया गया है।
अभी तक यह थी स्थिति
वर्तमान में झारखंड में एसटी को 26 फीसदी आरक्षण मिलता है, जबकि एससी को 10 फीसदी और ओबीसी को 14 फीसदी आरक्षण मिलता है। झारखंड द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए आरक्षण, हाल ही में दिए गए सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद अपनाया गया है। बता दें कि पिछले विधानसभा चुनाव में राज्य में आरक्षण बढ़ाना सभी मुख्यधारा की पार्टियों का चुनावी वादा था, जिसमें सत्तारूढ़ यूपीए के सहयोगी झामुमो, कांग्रेस और राजद शामिल थे।
भाजपा विधायकों ने किया विरोध
हालांकि, विधेयक को भाजपा विधायकों के विरोध के बीच पारित किया गया, जिन्होंने इस पर बहस की मांग की थी। भाजपा विधायकों ने झामुमो के नेतृत्व वाली सरकार पर एक संवेदनशील मुद्दे को उठाकर राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए अनावश्यक जल्दबाजी करने का आरोप लगाया है।