Sunday, April 20, 2025
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जिसने पहचान दिलाई उसी को भुला बैठे आदिवासी, संविधान पुरुष ठाकुर रामप्रसाद पोटाई

कांकेर -: जिसने पहचान दिलाई उसी को भुला बैठे आदिवासी, संविधान पुरुष ठाकुर रामप्रसाद पोटाई गोंडवाना गौरव, महान स्वतंत्रता सेनानी, कांकेर अंचल के जमींदार, संविधान सभा के प्रारूप समिति के सदस्य, संविधान में आदिवासियों के हित प्रहरी के रूप में कार्य करने वाले, अधिवक्ता, प्रथम सांसद, विधायक, कांकेर जनपद सभा के प्रथम अध्यक्ष, भारतीय रियासतों के विलीनीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले, संविधान सभा में रियासत के प्रतिनिधि, बस्तर के गांधी, ‘‘संविधान पुरुष ठाकुर रामप्रसाद पोटाई जी’’ की पुणयतिथि पर शत् शत् नमन

इन्हे बस्तर (छत्तीसगढ़) का गांधी कहा जाता है। इनकी तीव्र ज्ञान और दूरदर्शिता से प्रभावित होकर पं. नेहरू ने उन्हे भारतीय संविधान सभा का सदस्य बनाया। जहां उन्होंने आदिवासियों की अधिकारों के लिए संविधान निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कैबिनेट मिशन योजना के तहत भारतीय समस्या के निराकरण के लिए चुने गए थे।

कांकेर जिले के प्रख्यात गांधीवादी नेता ठाकुर रामप्रसाद पोटाई का जन्म कन्हारपुरी गाँव में 1920 में हुआ था। इनके पिता घनश्याम पोटाई कांकेर अंचल के संपन्न मालगुजार थे। आप के बचपन का नाम फरसों था।

शिक्षा

ठाकुर रामप्रसाद पोटाई की आरम्भिक शिक्षा कांकेर रियासत के कॉफर्ड हाईस्कूल में हुई। प्राइमरी शिक्षा तक उनकी रुचि अध्ययन के प्रति नहीं थी। प्राइमरी साला में अनुत्तीर्ण होने के कारण इनके पिता घनश्याम सिंह उन्हें पढ़ाने के पक्ष में नहीं थे। उनके चाचा जी उन्हें पढ़ाने के पक्ष में रहे। उन्ही के प्रयासों के कारण वे उच्च शिक्षा प्राप्त कर सके। उच्च शिक्षा के अंतर्गत उन्होंने बी.ए. एवं एल एल.बी. की डिग्री मोरिस कॉलेज नागपुर में प्राप्त की। इस अंचल में प्रथम आदिवासी थे जिन्होंने एलएलबी की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। उस समय नागपुर मध्य प्रांत की राजधानी होने के साथ राजनीतिक गतिविधियों का प्रसिद्ध केन्द्र भी था। धमतरी तहसील के सिहावा तथा राजनांदगाँव के बदराटोला आदि सत्याग्रहों में इन्होंने कांकेर रियासत के किसानों के शिक्षित नवयुवकों को प्रशिक्षित कर भाग लेने हेतु तैयार किया था। विद्यार्थी जीवन में अच्छे खिलाड़ी थे। राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में भी उन्होंने भाग लिया और मेडल प्राप्त किया था। रामप्रसाद पोटाई इंग्लैंड से पढ़ कर आए थे।

राष्ट्रवादी गतिविधियों का संचालन

उनका स्थान छत्तीसगढ़ के स्वाधीनता संग्राम सेनानियों के मध्य अग्रणी है। ब्रिटिश छत्तीसगढ़ की रियासतों में जनता द्वारा तीसरे दशक में सामंतशाही एवं ब्रिटिश शासन के विरुद्ध संघर्ष चल रहा था, जिसका नेतृत्व ठाकुर प्यारे लाल सिंह कर रहे थे। श्री रामप्रसाद पोटाई इस संघर्ष में कांकेर रियासत में जनता को अपना सक्रिय नेतृत्व दे रहे थे। श्री पोटाई द्वारा रायगढ़ एवं राजनांदगाँव आदि रियासतों में चल रहे संघर्ष की भाँति बस्तर एवं कांकेर रियासतों में भी जनजातियों को संघर्ष हेतु प्रेरित किया गया।

श्री पोटाई ने 1939 में कांग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन में भाग लिया। वे सुभाष चन्द्र बोस के समर्थक थे, किन्तु कांग्रेस से उनके त्यागपत्र के पश्चात् वे पुनः कांग्रेस के लुधियाना अधिवेशन में गांधीजी से मिलने गये। गांधीजी से प्रेरित होकर वे ‘रियासती कृपक प्रजा परिषद्’ के गठन की दिशा में सक्रिय हो गये। 1939-45 के द्वितीय विश्व-युद्ध के समय, कांकेर रियासत भी जनता से बेगार, पट्टानवीसी तथा नजराना वसूलने के लिए उनका उत्पीड़न कर रही थी, के विरुद्ध श्री पोटाई ने किसानों को विनम्र प्रतिरोध हेतु संगठित किया। वे 1939 में कांकेर नगरपालिका के नामजद सदस्य भी रहे। इस मध्य उन्होंने जगदलपुर, धमतरी, रायपुर आदि के प्रतिनिधियों के सहयोग से रियासतों में आदिवासियों के विकास हेतु अपना कार्य जारी रखा।

1942-1946 के मध्य उन्होंने, कांकेर, नरहरपुर तथा भानुप्रतापपुर में युवकों के साथ, गांधीवादी राष्ट्रीय वाचनालय तथा खद्दर प्रचारक क्लब की स्थापना करके राष्ट्रवादी गतिविधियों का संचालन किया। जगदलपुर के पत्रकार तथा रायपुर के क्रान्तिकारी निरन्तर, गुप्त रूप से उनसे मिलते रहते थे। दिसम्बर, 1946 में, सी.पी. एंड ओरिसा रियासती लोक परिषद् से मध्यप्रांत देशी राज्य लोक परिषद् अलग हो गया जिसके अध्यक्ष ठाकुर प्यारे लाल सिंह बने। 1946 में कांकेर रियासत-किसान सभा का गठन हुआ। वे किसानों एवं ग्रामीण युवकों को रियासत के विलय हेतु सक्रिय आन्दोलन चलाने, संगठित करने लगे। अगस्त 1947 में देश की आजादी के साथ ही भारत की अन्य रियासतों की भाँति, कांकेर रियासत को भी, वहाँ के नरेश ने स्वतंत्र घोषित कर दिया था जिसके विरोध में सितम्बर 1947 में कांकेर स्टेट कांग्रेस का संगठन हुआ। यह संगठन किसान सभा के बदले स्थापित हुआ था जिसके अध्यक्ष राम प्रसाद पोटाई बने थे।

रियासती विलय का मसला

ठाकुर राम प्रसाद पोटाई ने रियासती विलय के मसले को संविधान सभा में प्रखरता से उठाया था जिसके फलस्वरूप मध्य प्रांतीय रियासतों का प्रांतीय जिलों में विलय करने का मसला राष्ट्रव्यापी मुद्दे के रूप में सम्मिलित किया गया था। इन्हीं दिनों छत्तीसगढ़ की नांदगाँव, सक्ती तथा रायगढ़ रियासतों में जन आंदोलन प्रबल होने लगा था. ठाकुर राम प्रसाद पोटाई (कांकेर) तथा पं. सुंदर लाल त्रिपाठी (बस्तर) के प्रयासों से इन जिलों की रियासतों में भी जन आंदोलन उग्र हो उठा था। ऐसी स्थिति में रियासत विभाग के प्रमुख मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल 15 दिसम्बर, 1947 को नागपुर पहुंचे जहाँ मध्य प्रांतीय रियासतों की विलीनीकरण वार्ता आयोजित की गयी। ठाकुर रामप्रसाद पोटाई तथा किशोरी मोहन त्रिपाठी ने मध्य प्रांत की रियासतों के विलीनीकरण की माँग हेतु ‘मेमोरेंडम’, सरदार पटेल को सौंपा था।

राजनीति

1948 में भारतीय संविधान समिति के सदस्य के रूप में मनोनीत किए गए। संविधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या 389 निश्चित की गई थी. जिनमें 292 ब्रिटिश प्रांतों के प्रतिनिधि, 4 चीफ कमिश्नर क्षेत्रों के प्रतिनिधि और 93 अलग-अलग रियासतों के प्रतिनिधि थे.

रामप्रसाद पोटाई संविधान मामलों के विद्वान थे। उन्हें रियासत के प्रतिनिधि के तौर पर चुना गया था। प्रारूप समिति के सदस्य के रूप में उन्होंने भारतीय संविधान की रचना में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। उन्होंने आदिवासियों के लिए संविधान सभा में आवाज उठाई। 1950 में वे कांकेर के प्रथम सांसद मनोनीत हुए थे। बाद में भानुप्रतापपुर के प्रथम विधायक भी रहे। कैबिनेट मिशन योजना के तहत भारतीय समस्या के निराकरण के लिए चुने गए थे। वे भारतीय संविधान सभा में रियासत की जनता का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। बहुत सारे प्रावधान उस समय लागू हुए। खास तौर से पोटाई जी ने आदिवासियों के उत्थान के लिए काम किया। आज जिस सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक न्याय की बात विभिन्न संगठन करते हैं, उसे 70 साल पहले रामप्रसाद पोटाई ने कहा था। रामप्रसाद पोटाई श्रम कानून के जानकार थे। वो चाहते थे कि यहां के मजदूरों को उनके श्रम का वाजिब मूल्य मिले। रामप्रसाद पोटाई संविधान सभा के सदस्य बने थे, तब गांववाले बेहद खुश हुए थे। जब विधायक बने तब भी लोगों ने किसी त्योहार की तरह जश्न मनाया था।

समाजिक कार्य

1948 के रियासती विलीनीकरण के उपरांत जमींदारी उन्मूलन एवं भूदान आंदोलन से पोटाई निरंतर जुड़े रहे। उन्होंने आदिवासी एवं गैर-आदिवासी कृषक, खेतिहरों को सामाजिक उत्थान एवं राष्ट्र सेवा में समर्पित होने हेतु प्रेरित किया।

अधिवक्ता बनने के बाद उन्होंने गांव के बच्चों को अध्ययन हेतु प्रेरित किया। वकालत पेशे से उन्हें जो आय होती थी उसका उपयोग उन्होंने गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए करते थे। पढ़ाई के नाम से उन्होंने गरीब बच्चों को पुस्तकें और आर्थिक मदद प्रदान की। उस दौर में पढ़ाई कर रहे गांव के ग्रामीण सुदर्शन कहते हैं कि, पूरे क्षेत्र में इकलौता मीडिल स्कूल कन्हारपुरी में था. जहां 15 से ज्यादा गांव के बच्चे पढ़ने आते थे। रामप्रसाद पोटाई शिक्षा को काफी महत्व दिया करते थे। उन्होंने उस दौर में हेड मास्टर के लिए अलग से मकान बना के दिया था, ताकि बच्चों को पढ़ाई में कोई दिक्कत न हो।

6 नवंबर 1962 की अल्पायु में उनका देहांत हो गया। रामप्रसाद पोटाई (1920-1962) ने अपने 42 साल के छोटे से जीवनकाल में आदर्श विद्यार्थी, सामाजिक नेता, सफल वकील, विधायक और संविधान सभा के सदस्य के रूप में कई बड़ी उपलब्धियां प्राप्त की, लेकिन उनकी स्मृति को अमर बनाने और नई पीढ़ी को प्रेरणा देते के लिए सरकार कोई पहल नहीं कर रही है।

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