होचले वड्डे कोंडागांव :- यह लेख हिंदी मे है क्योंकि मुझे गोंडी नही आती यह मेरे लिए दुखद है की अपनी मातृभाषा को बोलने मे या लिखने के लिए कोई साधन नही है ऐसा क्यों है ? सबके तर्क अलग है ,नई पीढ़ी को गोंडी भाषा की जानकारी नहीं है और आने वाली पीढ़ी को हो भी नही पाएगी क्योँकि यह भाषा तेजी से लुप्त होती जा रही है। गोंडी, ओरांव, मल-पहाडिय़ा, खोंड और पारजी जैसी कुछ आदिवासी भाषाएं ऐसी भाषाएँ हैं जो अपने-आप में अनूठी हैं और इन्हें किसी भाषा परिवार के अंतर्गत नहीं रखा जा सकता है। भाषा का लुप्त होना किसी बड़ी त्रासदी से कम नहीं है। भाषा के लुप्त होने के साथ न सिर्फ उस भाषा के बोलने वाले खत्म हो जाते हैं, बल्कि उनका गौरवपूर्ण इतिहास भी खत्म हो जाता है। विद्वानों का मानना है कि जिस देश की संस्कृति खत्म करनी हो या देश को खत्म करना हो तो उसकी भाषाओं को खत्म कर दो। संस्कृति स्वत: खत्म हो जायेगी। आज भारत में आदिवासियों की भाषाएं खत्म की जा रही हैं, जबकि भाषा का प्रश्न उनकी अस्मिता से जुड़ा हुआ है। उनकी 600 भाषा/बोलियां है, जिनमें से 90 में साहित्य लिखा जा रहा है। दुनिया के किसी भी देश में इतनी भाषाओं में साहित्य नही लिखा जा रहा है। ये गर्व की बात है या चिंता की, क्योंकि आदिवासी 600 भाषाओं में सिर्फ 90 मे ही साहित्य लिखा जा रहा है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 350 ए में यह प्रावधान किया गया है राज्य छात्रों को उनकी मातृभाषा में ही प्रारंभिक शिक्षा दें। वही संविधान में 2 आदिवासी भाषा संथाली और बोड़ो को ही 8वीं अनुसूची में रखा गया है,छोटा बच्चा अपनी मातृभाषा में सोचता है,,इसलिए मातृभाषा बच्चे के जीवन का अभिन्न अंग और अविस्मरण निधि होती है। बिना किसी बहस के बच्चे की शिक्षा का माध्यम उसकी मातृभाषा ही होनी चाहिए।अब यहाँ मातृभाषा से संदर्भ ये है कि उसके परिवार मे बोली जाने वाली भाषा उसके कुल में बोली जाने वाली भाषा । आदिवासियों की विभिन्न भाषाओं को बचाने का एकमात्र तरीका यही है कि आदिवासी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा उनकी मातृभाषा के माध्यम से दी जाय। यदि इन बच्चों को प्राथमिक स्तर तक मातृभाषा में शिक्षा देना अनिवार्य कर दिया जाए तो इन भाषाओं का भविष्य सुरक्षित रह सकता है। फिर भी आदिवासियों की शिक्षा को उनकी अपनी मातृभाषा में न देकर प्रदेश की राज्य भाषा में दिया जा रहा है। राष्ट्रीय एकता और अखंडता को मजबूत करने के नाम पर शिक्षण के दायरे से आदिवासी भाषाओं को बहिष्कृत रखा गया। आज दक्षिण के सभी राज्यों में आदिवासियों की भाषाएं गायब हो रही हैं। उनकी संस्कृति और अस्मिता लुप्त होने की कगार पर हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ के संस्कृतिक संगठन यूनेस्को की रिपोर्ट Atlas of world largest language in danger-2009 में कहा गया है कि मौजूदा सभी भाषाओं में से तकरीबन 90 फीसदी भाषाएं अगले 100 वर्षों में अपना वजूद खो सकती हैं। जिन देशों की भाषाएं खतरे में हैं उनमें भारत शीर्ष पर है। यहां 196 भाषाएं मिटने की कगार पर हैं। दुनियाभर में बढ़ रहे आर्थिक और बौैद्धिक साम्राज्यवाद के चलते अंग्रेजी या दूसरी वर्चस्व वाली भाषाएं तेजी से विकास कर रही हैं, जो भाषाएं सीधे तौर पर आर्थिक रूप से जुड़ी हैं और शासन-सत्ता को प्रभावित करती हैं। वे अपना विकास तेजी से कर रही हैं। वहीं जो भाषाएं कमजोर वर्गों के समुदायों की हैं, वे नष्ट हो रही हैं, क्योंकि उनमें रोजगार की कोई गारंटी न होने के कारण उस समुदाय के लोग भी भाषाई पलायन करके उस भाषा का दामन थाम रहे हैं, जिनमें रोजगार की सुरक्षा मिलती है। भाषा एक सामाजिक संपत्ति एवं सामूहिक विरासत है। इसलिए किसी भाषा की मौत एक जाति, समुदाय उसके इतिहास, सास्कृतिक मूल्य और सौंदर्य चेतना का अंत है, जिसके निर्माण में सदियां बीत जाती हैं, उसे बचाएं रखना हमारा कर्तव्य है। मौजूदा परिस्थिति यह है क़ी आपको गोंडी ना आती हो किन्तु आप अपने बच्चों को या अभी नई पीढ़ी को प्रेरित करे कि वह गोंडी भाषा को सीखें बोले। इसलिए नही की गोंडी को बचाना हैं बल्कि अपने अस्तित्व को बचाना है। गोंडी भाषा बोलने में जितनी सुंदर है उतनी ही सुनने और लिखने में भी है। गोंडी भाषा बोलने मे लिखने गर्व होना चाहिए कि एक ऐसी भाषा जिसके मापदंड को प्रकृति के स्वरो से मापा जाता है उसकी गुणवत्ता कितनी उच्च होगी।
इस दिशा में छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर संभाग में आधुनिक शिक्षा के साथ गोंडी भाषा युक्त पठन पाठन स्कूल का संचालन जंगो रायतार समाज सेवी संस्था सरोना कांकेर के द्वारा किया जा रहा है। गोंडी भाषा की विलुप्ति के लिए गोंड समाज के सामाजिक कार्यकर्ता बुद्धिजीवी ही जिम्मेदार हैं क्योंकि पठन पाठन स्कूल शिक्षा माध्यम तैयार करने की ठोस कार्य योजना का अभाव दिखाई देता है। वर्तमान में भी यदि समाज के बुद्धिजीवी जंगो रायतार समाज सेवी संस्था के द्वारा संचालित स्कूल के साथ समन्वय बनाकर भाषा के संरक्षण संवर्धन में काम करें तो अवश्य ही इस देश की सबसे प्राचीन गोंडी भाषा को संरक्षित किया जा सकता है ।

होचले वड्डे
मुरनार, लंकाकोट
[url=https://spectehnika.co.ua/]Cпецтехніка[/url]
Будь-яке виробництво в течение сучасному світі безграмотный обращаться сверх використання технічних засобів. Для виконання вузькоспеціалізованих видів течение сокіт існують машини і механізми, якожеі об’єднані язык велику групу – спецтехніка.
Cпецтехніка