Sunday, April 20, 2025
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जनजतीय समुदाय के पास खगोल-विज्ञान का विशाल भंडार है ,रिसर्च में हुआ खुलासा

महाराष्ट्र :- कबीलाई सुर्य ग्रहण को ऐसे भापे जाते है, वैज्ञानिक लोग दूरबीन, एक्सरे फिल्म की कतरन का प्रयोग करते हैं । जबकि जनजतीय समुदाय के पास खगोल-विज्ञान का विशाल भंडार है ,रिसर्च में हुआ खुलासा हुआ है ।मध्ययुगीन इतिहास भले ही मध्य भारत की ट्राइबल समुदायों के सांस्कृतिक और राजवंशीय विरासत को रेखांकित न कर पाया हो लेकिन अब इसे सहेजने का प्रयास किया जा रहा है। संबंधित शोध अध्ययन में ट्राइबल जनजातियों के खगोलीय ज्ञान का लोहा माना जा रहा है। मुंबई की टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की ओर से किए गए एक शोध अध्ययन में वैज्ञानिकों ने माना है कि ट्राइबल समुदाय के पास खगोल-विज्ञान का विशाल भंडार था। उसका लाभ आज भी वैज्ञानिक उठा सकते हैं। संस्था ने इस अध्ययन के लिए मध्य भारत की चार प्रमुख जनजातियों का चयन किया था, जिसमें गोंड, बंजारा, कोलम और कोरकू का समावेश था। विशेष यह कि नागपुर में इन जनजातियों के खगोलीय ज्ञान पर अध्ययन किया गया है।

पीढ़ी दर पीढ़ी ज्ञान का हस्तांतरण

इंडिया साइंस वायर के मुताबिक यह विस्तृत शोध चार साल तक किया गया। वैज्ञानिकों ने पाया कि ये सभी जनजातियां खगोल-विज्ञान के संबंध में आम लोगों से कहीं अधिक और महत्वपूर्ण जानकारी रखती हैं। खास बात यह है कि यह ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होता है। इस ज्ञान को मौखिक ढंग से अब तक जिंदा रखा गया है। रिसर्च के माध्यम से इसे लिखित रूप में सहेजने में मदद मिली।

नागपुर के प्लेनेटोरियम में परीक्षण

शोध के दौरान इन जनजातियों के सदस्यों से उनके पारंपरिक खगोलीय ज्ञान की जानकारी जुटाई गईं। नागपुर के प्लेनेटोरियम में बुलाकर खगोलीय ज्ञान का परीक्षण किया गया। इस दौरान कम्प्यूटर सिमुलेशन के जरिए साल भर आकाश की विभिन्न स्थितियों की जानकारी ली गईं और गोंड जनजाति के सदस्यों के साथ साझा किया गया। उसके बाद यह निष्कर्ष निकाला गया।

मंगल और शुक्र का भी ज्ञान

यह खगोलीय ज्ञान मूलतः सप्तऋषि, ध्रुवतारा, त्रिशंकु तारामंडल, मृगशिरा, कृतिका, पूर्व-भाद्रपद, उत्तर-भाद्रपद नक्षत्रों और वृषभ, मेष, सिंह, मिथुन और वृश्चिक राशियां आकाश की स्थितियों पर केंद्रित है। मई से अक्टूबर तक तारों के कम दिखाई देने के कारण यह जनजातियां आम तौर पर नवंबर से अप्रैल तक तारामंडलों की स्थितियों पर ध्यान रखती हैं। इनके खगोलीय ज्ञान को आधुनिक खगोल विज्ञान की तरह ही पाया गया। मंगल और शुक्र ग्रहों की स्थितियों का उन्हें अच्छा ज्ञान है।

मिथकों का भी जिक्र

आकाशीय पिंडों को लेकर इनकी अपनी-अपनी अवधारणाएं हैं। गोंड जनजाति का खगोलीय ज्ञान सबसे सटीक पाया गया। खगोलीय ज्ञान को लेकर जनजातियों के भीतर फैले मिथकों का भी जिक्र शोध में हुआ है। इसमें गोंड समेत अन्य जनजातियों ने आकाशगंगा को मोक्ष का मार्ग बताया। नक्षत्रों, राशियों और तारामंडलों को लेकर इनके बीच दंत कथाएं भी खूब प्रचलित हैं। खगोलीय पिंडों को ये अपने-अपने देवी-देवताओं से जोड़ते हैं।

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