Saturday, April 19, 2025
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ईसर गवरा मंडमिंगना मिजान पर विशेष – पुनेम क मार्ग ही अंधकार से मुक्ति दिलाएगा और  प्रकाश की ओर ले जाएगा

अम्बिकापुर ~ कोयतुर संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है।यह संस्कृति मानव विकास के प्रारंभिक अवस्था से लेकर आज भी संरक्षित है। हमें गर्व है कि हम अपने प्रकृति प्रदत्त पाबुन पंडूम की व्यवस्था को संजोकर रखे है। कोया पुनेम का जीवन दर्शन पाकर हम धन्य हैं जिसे हमारे मुठवालपोय पहांदी पारी कुपार लिंगों ने दिया है। जिसे हम आज हीरा और मोती स्वरूप पाबुन और पंडूम के रूप में मना रहे है। आप सभी को प्रकृति प्रदत्त पुनल बंजी पंडूम दियाड़ी/ देवारी /फसल उत्सव की एवं  संभूसेक ईसर गवरा मंडमिंगना महोत्सव की ढेरों शुभकामनाएं। यह पंडूम अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने का पुनेम मार्ग है।  इस महापर्व में हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम अपनी भाषा ,संस्कृति, नेंग-सेंग, रीति -रिवाज , सगा सामुदायिक व्यवस्था , मेढ़ो पर्रो जिसे हम भूलते जा रहे उसे पुनः जागृति कर कोया पुनेम का सत्यमार्ग स्थापित करेंगे। तभी इसकी सही सार्थकता होगी।
जैसा कि हम सब जानते हैं कि सर्वप्रथम मुठवालपोय पहांदी पारी कुपार लिंगों ने हमें खेती का दर्शन दिया। और सर्वप्रथम धान की खेती करना सिखाया । यही खेती का मिजान हमसभी  मानव जीवन के लिए जीवन का आधार बना । आज हमारा देश कृषि प्रधान देश है। इसका श्रेय  समूचे कोयतूर समुदाय को जाता है। अभी हम सियारी फसल के पक जाने पर कटने को तैयार है इसके स्वागत में पूनल बंजी सियारी /सुरहोती /दियारी/डिहवारी पंडूम मना रहे हैं।
डीह डिहवार अर्थात कोठा और वारी अर्थात फसल मतलब फसल उत्सव 
धान के आगमन की खुशी का उत्सव है। क्योंकि हम प्रकृति के उपासक है जब खुशियां आती है समृद्धि आती है तो हम प्रकृति का धन्यवाद करते है। वर्षा का अवसान बीत चुका है शीत का आगमन हो रहा । एक फसल पककर तैयार है । दूसरा फसल की तैयारी है ।खेत हमारे लहलहा रहे। झूमती हरी -हरी  धान की बालियां अठखेलियाँ कर रही है। गेंदा की सुरभित पुष्पों की महक से मन प्रफुल्लित है । गांव की गलियों में कोयतुर समुदाय प्रकृति के सम्मान में अपने गांव के ईष्ट पेनशक्तियों को नैवैद्य चढ़ाने को आतुर हैं। सामूहिक श्रम मूल्य अर्पित करने का समय है।  समस्त बैगा भूमका गायता  अपने जड़ी बूटियों का संग्रह कर अपने गुरू  धन्वंतरि  लिंगो जो कि समस्त जड़ी बूटियों के गुरू  मुठवा है उनको  सम्मान देने  को आतुर हैं इस रात अपने तांदरी जोग जगार करने  हेतु ललायित है। अपने नार में खेरो दाई ,खीला मुठवा ,भिमालपेन आदि पेन पुरखों को जीवाभाव हेत एवं उनके योगदान का मूल्य श्रद्धा अर्पित कर सम्मानित करते है। दशों दिशाओं की शक्तियों का संगम महाजगार गोंगो प्रकृति का सम्मान यही हम कोयतुरों का शुद्ध सत्य मार्ग है।
यही हमारा कोयतुरो का प्रकृति मार्ग है। जब घरों में खुशहाली आ जाती है। धन धान्य से परिपूर्ण होने पर हम आज के ही दिन ईसर गवरा को प्रतीक मानकर ईसर गवरा मंडमिग करते हैं। यह प्रक्रिया सामूहिक रूप से होती है। बड़ी ही विधि विधान से संपन्न किए जाते हैं जिनमें ईसर गवरा के जितने भी कोड़ियार मंडमिंग के नेंग सेंग होते है सभी संपन्न किए जाते हैं। जैसे वास्तविक शादियां होती है वैसे ही ईसर गवरा के नेंग निभाए जाते हैं। इसमें सुवा पाटा गायन भी शामिल है। एवं ईसर गवरा के पाटा भी शामिल हैं। सभी कोयतुर झांझ , मांदर टिमकी ,हुलकी ,बंसुरी  मोहरी ,तुतरी ,गुदुम लेकर ईसर गवरा पाटा गाते हैं शक्तियों को जगार करते है पाटाओं की गूंज से प्रकृति का स्वागत करते हैं। जो इस प्रकार हैं।
            ईसर जागे मोर गवरा जागे 
            जागे ओ दुनियां के लोग।
            बइगा जागे  मोर बइगिन जागे 
            जागे ओ मोर कोयतुर लोग ।।1।।
          बाजा जागे मोर बजइया जागे 
           जागे वो गवइया लोग
         सेवक जागे अऊ सेवकाई जागे 
         देखे ओ देखइया लोग।
         सेऊक जागे करे सेवकाई 
          देखे ओ देखइया लोग ।।2।।
इस तरह सभी गायता भूमका प्रकृति के कण कण मे समाहित सभी दशों दिशाओं की शक्तियों का आवाहन कर ग्राम /नार /गुड़ी के पेन पट्टाओ व शक्तियों को आमंत्रित कर पेन सुमिरनी सेवा सत्कार करते है। और इधर पेन पाटा सत्कार आरंभ रहता है।
      जोहर जोहर मोर ठाकुर देवति सेवारी लागौं मैं तोर 
      जोहर जोहर मोर ठाकुर देवता सेवारी लागौं मैं तोर ।
      ठाकुर देवता के मढ़िया छवइले 
      झूले ओ परेवना के हंसा 
      का चारा चरथे मोर हंसा परेवना 
      हंसा चरथे मोर मूंगा मोती 
      फूले ओ चना के दार 
      जोहर जोहर मोर बुढ़ादेव ला 
      सेवारी लागों मैं तोर .।
      
      जोहर जोहर मोर भंइसा सुर ला 
       सेवारी लागों मैं तोर ..
      जोहर जोहर मोर शीतला दाई 
      सेवारी लागों मैं तोर ..
      शीतला दाई के मढ़िया छवइले 
       झूले ओ परेवना के हंसा ..
      हंसा चरथे मोर मूंगा मोती 
      फुले वो चना के दार 
      जोहर जोहर मोर कली कंकालिन 
     सेवारी लागों मैं तोर ..
     कंकालिन दाई के मढ़िया छवइले 
     झूलै वो परेवना के हंसा ..
     फोले वो चना के दार …।
    जोहर जोहर मोर गांव गोंसाइन 
     सेवारी लागों मैं तोर ..
    हंसा चरथे मोर मूंगा मोती 
   फोलें वो चना कई दार  
    जोहर जोहर मोर बिसरे भूलै 
      सेवारी लागों मैं तोर ..
     जोहर जोहर मोर ठाकुर देवता 
     सेवारी लागौं मैं तोर …
      ठाकुर देवता के मढ़िया छवइले 
      झुले वो परेवना के हंसा ।।
      हंसा चरथे मोर मूंगा मोती 
      फोले वो चना के दार … जोहर जोहर….।।
ईसर गवरा के मंडमिंगना में सब आते हैं तब सभी नेंग होते हैं जिनमें  माटी लाने की प्रक्रिया होती है गाजे बाजे के साथ कोयतुर समुदाय की मातृशक्तियां चयनित स्थान से मिट्टी लाती है गायता भूमका पहले से पहुंचे होते है और मातृशक्तियों के पहुंचने पर मिट्टी खोदकर महिलाएं उस मिट्टी को आंचल में लेती हैं । यह प्रक्रिया शादी में हम देखते है।
 फूल कुंचरनी नेंग ,गवरा पाटा गायन के संग संग राजा ईसर और रानी गवरा की प्रति मुर्ति बनाते हैं। और सजा धजाकर गायन सुमिरन चलता है। गोंडवाना के वरिष्ठ साहित्यकार बी. एल .कोर्राम साहब आज ही बता रहे थे कि हमारे राजनांदगांव में सभी अपने अपने घरों से सोहारी बनाकर घट में सर पर रखकर गाजे बाजे के साथ लाती हैं जिसे चढ़ाया जाता है। ये महिलाएं भी गाती है ” गवरा जागे मोर मोर ईसर जागे जागे वो कोयतुर लोग ..
फुल कुंचरनी नेंग करते समय मातृशक्तियां सात बार चावल और फूल गावर गुड़ी में चढ़ाती है तब … गाती हैं 
 इक पतरी  रइनी झयनी ओ 
राय रतन ओ गवरा देवी 
तोर शीतल छांव ,चौकी चंदन पीढ़ली 
गवरा के होवय मन ,जइसे गवरा ओ मान तुम्हारे 
तइसे कोरवन के डार 
करसा आसन डोहडू , परसा आसन छितराय 
तइसे गवरा मय देखय आयेंव महामाई के दुवार 
महामाई के लोग लरिका कोरवन सुहान 
पाने ला खइथें ओ फूल पहिरथें 
खेलैं सगुरी के पार।। 
इस प्रकार सभी मातृशक्तियां दाई से गुहार करती है। और सुख समृद्धि मांग करती हुई  सात बचन लेती हैं –
वे कहती है – कि हे गवरा दाई हम तुम्हे पतरी भर घर से बनाकर रूखा सूखा परोस रही हैं हमारा कुछ भी नहीं है जो है सब तुम्हारा है ये अन्न धन्न राज रजउटी  सब आपका दिया है। यहा तक कि सरदी ,हवा ,पानी, गरमी ,शीतल छांव ,प्यारा गांव सब कुछ .. इसलिए हे गवरा दाई आप इस चंदन की पीढ़ली में विराजैं।।
आप मातृशक्तियां कहती हैं कि हे गवरा  दाई आप दयालू हैं  ममता की मूरत है हमारा घर आंगन में खुशियों की बरसात करें , हमारी सुनी कोंख संवार दें, जैसै आपने महामाया को दिया है मै उनके दुवारी देख कर आई हूं उनके बच्चे बड़े सुहावन लग रहे हैं ऐसी कृपा हम पर भी बरसाओ दाई ..
इस तरह कार्यक्रम सतत चलता रहता है कोयतुरों द्वारा ईसर गवरा गोंगो संपन्न किया जाता हैयह गोंगो गांव के बइगा , भूमका, गायता , सिरहा , मुठवा लोग कराते हैं।
बिल्कुल शादी का माहौल होता है पारंपरिक गाजे बाजे होते हैं  सभी महिलाएं तैयार होती हैं तो गाती हैं…  हंसी ठिठौली , होती है
 दे तो वो दे तो वो दीदी मोला  दही बासी वो 
अखरा के फेर देख आहूं वो दीदी 
अखरा के फेर सीख आहूं वो दीदी ..
 अखरा धववत बाबू बड़ा तोर जुझगे वो 
पैदा लेवत बापू बापे तोर जुझगे 
अखरा धवन झनि जाबै रे बाबू .।
दे तो वो दीदी दही मोला बासी 
अखरा धवन महु जाहू ओ दीदी
बड़ा ला मोर मुक्ताहूं ओ दीदी 
पुरखा के नाव जगाहु ओ दीदी..
नई तो माने हरेक बाबू 
न ई तो मानस बरजे ले गा 
अखरा के देव फुरमानुख रे बाबू 
क इसेक देव मनाबे रे बाबू 
इकलौता भाई झनि जाबे रे भाई।
दे तो वो दीदी सोने के रूपइया 
अखरा बर बोकरा बिसाहूं ओ दीदी 
अखरा के देव ला मनाहूं वो दीदी..
पुरखा के नांव जगाहूं वो दीदी।
अखरा के गुन फेर सीख आहू वो दीदी।।
इस तरह बड़े धूमधाम से ईसर गवरा का बारात निकाला जाता है और पूरे कोयतुर समुदाय में आंनंद का माहौल होता है सभी बराती गांव होते हुए गवरा गुड़ी तक फहुंते हैं इसमे पूरा कोयतुर समुदाय शामिल होता है। दो कुंवारी लड़कियां अपने सर पर ईसर गवरा की प्रतीक को लेकर आगे चलती हैं । बिल्कुल बारात की तरह। सभी ईसर राजा ना सेवा सेवा , गवरा दाई ना सेवा सेवा का नारा लगाते है। जहां जहा बरात गुजरती है वहां के सगा लोग पुष्प अक्षत से स्वागत करते है।गाजे बाजे के साथ जब बरात गवरा गुड़ी पहुंचती है तो सभी खुशियों से झूम उठते है।बांसुरी, मोहरी की सांसे धौंकनी की तरह चलने लगती हैं । इन गीतो में गोंडवाने की शानोशौकत का जिक्र भी करती है। इन पाटाओं में सतखण्डा में गढ़ा हिड़ोलना जो सोने की है उसका जिक्र होता है मोतियों की झालर, गोंड राजाओं के  ऐश्वर्य वैभवशाली ऐतिहासिक प्रमाण इन पाटाओं में सुनने को मिलते हैं। गवरा जगार ,गोंडवाना के राजमहल की अट्टालिकाओं को चूमती मस्ती में झूमती , रंग महलों की चहार दीवारिओ से बाहर झांकती हैं  और अखरा तक पहुंच जाती है जंहां ईसर राजा अखरा के रहस्यमय फेर और बंद का आनंद ले रहे हैं ईसर राजा को समर्पित ये गीत
काकर करसा मोर रिगबिग सिगबिग वो 
काकर करसा सिंहासन गा भइया ।
काकर करसा सिंहासन गा  भईया ।।।
गवरा के करसा मोर रिगबिग रिगबिग .।
ईसर के करसा सिंगार गा भइया ।।
ये काकर नांदिया चारा ला चरि अइथे 
काकर कपिला धुर्रा ला चाट अइथे। 
ईसर के नंदिया , चारा ला चर अइथे 
गवरा के ग इया धुर्रा ला चाटि अइथे। 
काकर करसा मोर रिगबिग सिगबिग वो..
यह संस्कार बेहद अलौकिक, विलक्षण और विशिष्ट संस्कार समेटे हुए हैं।इस तरह बाते बहुत हैं बताने को  यह ईसर गवरा मंडमिग का मिजान हमारी आस्था का अटूट प्रतीक है जिसके प्रतिबिंब में हम अपने जीवन का मार्ग उकेरने का प्रयास करते हैं। गवरा कछुआ में सवार संदेश देती है कि मैं सगा सामुदायिक व्यवस्था के अंतर्गत छः देव की आती हूं  ईसर राजा नांदिया मे सवार है गवरा का  मुख मंडल दमक रहा है  प्रकाश स्तंभों में धान की बालियां झूल रही हैं गोंदा चंदैनी रंग बिरंगे फूल सुशोभित हैं। लाल लाल परसा के फूल मदमा रहे है। वो भी ईसर राजा के बारात मे आनंदित है। इस प्रकार बड़ी धूमधाम से मंडमिंगना होता है। फिर दूसरे दिन समापन होता है हभी लोग एकत्र होते है और विधि विधान से किसी नदी या झील पर जाकर विदाई लेते है।सभी लोग ईसर गवरा से अपने सुख समृद्धि वैभव खुशहाली एकता सौहार्द की कामना करते है। यही से सभी अपने अपने  बच्चो के लिए शादी विवाह हेतु योग्य वर ढूंढना आरंभ करते हैं मेला मड़ई आरंभ होता है सभी सगा समुदाय वहां मेले में जाते हैं वहां भी सभी पेनों के उपस्थिति में अपने बच्चों के लिए योग्य वर ढूढ़ते हैं। ये सब संवैधानिक तरीके से गावं के पेन पुरखों के सानिध्य मे होता है।
 दिमिक दिमिक मोर बाजा बाजै
 कहंवा के बाजा तो आय गा । 
 दिमिक दिमिक मोर बाजा बाजै
मेला मड़ाई के बाज आय ओ।
तो सगाजनों आप सभी को पुनः ईसर गवरा मंडमिंग महोत्सव की ढेर सारी शुभकामनाएं व बधाई। अनंत शक्ति ईसर गवरा आप सबकी मनोकामना पूर्ण करें।आपके जीवन में सुख समृद्धि आए । कोया पुनेम को अपनाकर समाज अंधकार से प्रकाश के मार्ग पर चलने लगे।
इधर सूरकोट के गोटूल में बच्चियों ने सामूहिक संकल्प लिया अपनी भाषा संस्कृति और सभ्यता से आंगन करेंगे रोशन
,
जहाँ एक तरफ दिवाली /देवाड़ी/ दियाड़ी,पर लोग घरों को रोशन करने मे लगे हैं वहीं हमारे गोटूल की बच्चियां अपनी भाषा और संस्कृति और सभ्यता सीखने में लगी है। वे कहती हैं हम अपनी भाषा और संस्कृति सीखकर अपने घरों के आंगन में नई रोशनी लाएंगी। आज दिया हम जलाएंगी किंतु अपनी मातृभाषा के नाम दीप जलाएंगी। हमारे गोटूल से हमे नई ऊर्जा और ताकत मिल रही है। हम अपनी भाषा और संस्कृति जानकार गर्व महसूस कर रही है। इस ज्ञान को पाकर हमारे जीवन मे नई रोशनी आ रही है। इसके स्वागत में हम दीप जलाएगे।
ग्राम अजिरमा के गोंडवाना भवन में हम सबका पांचवा वरूक कोया पुनेम सगा गोटूल मांदी क्लास पूरा हुआ।सर्वप्रथम हम सबने गोटूल क्लास में भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी  गोंड राजे बाबूराव पुल्लीसुर शेडमाके का शहीद दिवस मनाया और उनको श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके जीवनी के बारे में जानकारी प्राप्त की । साथ ही हमने तेलंगाना के क्रांतिकारी वीर कुमराम भीमू के जन्मदिन के अवसर पर उनकी भी जानकारी प्राप्त की । तत्पश्चात गोटूल क्लास आरंभ किया ।आज गोटूल क्लास मे स्वर व्यंजेन की उत्पत्ति कैसे हुई इसकी जानकारी मिली । साथ ही हम सभी बारी बारी से उनको पढ़ा। उसके बाद हमने शारीरिक मजबूती हेतु सामूहिक पीटी किया। और गोंडी पाटा का अभ्यास किया। हम सबको गोटूल क्लास करना अच्छा लगता है। गोटूल क्लास हम सबका प्राण बन चुका है। हम गोटूल क्लास नियमित लग रहा है। इस गोटूल क्लास में रायताड़ लक्ष्मी मराबी , आदिम मित्रा मराबी , नीलम मराबी , सुषमा सेवता धमतरी , लक्ष्य मराबी , राधिका पोर्ते , नेहा सिंह टेकाम ,अनिता सरूता , रागिनी सरूता उपस्थित थी।
     बुद्धम श्याम 
 नरकासुर ता सेवा सेवा 
 बोदालपेन ता सेवा सेवा
 महिषासुर ता सेवा सेवा 
 बुढ़ालपेनता सेवा सेवा
 ईसर गवरा ना सेवा सेवा
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