हीरा सिंह मरकाम वैसे तो राजनैतिक व्यक्तित्व के तौर पर जाने पहचाने जाते हैं लेकिन उनकी पहचान गोंडवाना क्षेत्र में एक सांस्कृतिक और धार्मिक चेतना लाने वाले महापुरुष और समाज सेवी के रूप में विकसित हुई है. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के जनजातीय बाहुल्य क्षेत्रों में उन्हें देवता की तरह पूजा और चाहा जाता है.
मीडिया में उनको बस गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में और पूर्व विधायक के रूप में ही जाना समझा गया है . दादा मरकाम छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में जनजातियों के लिए वही काम कर रहे हैं जो काम उत्तर प्रदेश में मान्यवर कांशीराम ने अनुसूचित जातियों के लिए किया था . हजारों लोगों से उनके बारे में कहानिया और बाते सुनने को मिलती हैं लेकिन मीडिया और साहित्य में वो कहीं नहीं दिखते.
मुझे जान कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि समाज में इतना अधिक परिवर्तन ले आने वाला व्यक्ति और समाज सेवी आज मुख्य धारा की मीडिया में कहीं नहीं दिखता. जो कुछ भी कहीं थोड़ा बहुत लिखा गया है बस राजनैतिक व्यक्तित्व के हवाले से लिखा गया है.
ऐसे व्यक्तित्व पर तो फिल्में बनायीं जा सकती है और कई किताबें लिखी जा सकती हैं. मैंने जितना भी जाना मुझे लगा कि इस व्यक्ति को समाज और दुनिया के सामने लाना चाहिए . कैसे इतना बड़ा परिवर्तन एक मुट्टी चावल के आन्दोलन से लाया जा सका?
आज कोइतूर समाज में जो भी राजनीतिक, सांस्कृतिक और धार्मिक चेतना उभरी है वो सब इस महान व्यक्तित्व के कारण संभव हुई हैं वरना कोइतूरों की सांस्कृतिक पहचान तो बिलकुल ख़त्म हो चुकी थी.मैं
ने राष्ट्रीय और प्रादेशिक स्तर पर उनके बारे में जानने समझने के लिए खोज बीन की लेकिन कहीं कुछ आधिकारिक और प्रामाणिक तौर पर कुछ भी नहीं लिखा गया है। जो कुछ भी लिखा है वह थोड़ा बहुत उनकी रैलियों और राजनीतिक समाचारों के हवाले से है। उनके बारे में किसी भी राष्ट्रीय या राज्य स्तर के न्यूज़ पोर्टल पर कोई विशेष सूचना उपलब्ध नहीं है और न ही ब्राह्मणवादी मीडिया ने कभी ऐसे महान व्यक्तित्व के बारे में कोई अच्छी बात लिखी है। मैं ब्राह्मण वादी मीडिया को ही क्यूँ कोसूँ उनकी पार्टी और उनके चाहने वालों ने भी कभी उनको दुनिया के सामने लाने के बारे में नहीं सोचा, न बोला, न लिखा ||