हक की लड़ाई
हां दिखावे की होड़ में,
क्या-क्या ढोंग रचाते हैं।
आज तो हक की लड़ाई है,
देखना कितने लोग आते हैं।
समझ लो जिनके चेहरे यहां,
आज नजर नहीं आएंगे।
क्या समाज के हितेषी हैं वो,
क्या खाक समाज को बचाएंगे।
“स्वार्थ के गर्म तवे पर,
रोटियां सेके जाते हैं।
आज तो हक की लड़ाई है,
देखना कितने लोग आते हैं।
समाज पर अगर आंच आए तो,
अरे खून में उबाल आता है।
जिम्मेदार सामाजिक प्राणी हो,
तो ज़हन में खयाल आता है।
“जिसका जिंदा हो जमीर,
वही तो आवाज उठाते हैं।
आज तो हक की लड़ाई है,
देखना कितने लोग आते हैं।
लड़ाई जिंदा लोगों की है,
वो खुद चलकर आएगा।
कौन झूठा कौन सच्चा ,
आज यह वक्त बताएगा।
“देखना बिल में कितने,
विभिषण रह जाते हैं।
आज हक की लड़ाई है,
देखना कितने लोग आते हैं।।
हां दिखावे की होड़ में,
क्या-क्या ढोंग रचाते हैं।
आज तो हक की लड़ाई है,
देखना कितने लोग आते हैं।

लेखक
जीतेन्द्र नेताम
जिला गरियाबंद