कांकेर : माननीय उच्च न्यायालय बिलासपुर के द्वारा दिनांक 19.09.2022 को दिये गये फैसले के अनुसार छत्तीसगढ़ राज्य आरक्षण अधिनयम 2012 अमान्य हो गया है। इस फैसले से छत्तीसगढ़ राज्य में आज छ ग सर्व आदिवासी समाज के आह्वान पर पूरे छत्तीसगढ़ प्रान्त के सभी विकासखंडो को बंद कर रैली आंदोलन, धरना प्रदर्शन कर महामहिम राष्ट्रपति महोदया, महामहिम राज्यपाल महोदया , मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़, मुख्य सचिव, अध्यक्ष अनुसूचित जनजाति आयोग , अपने अपने क्षेत्र के सांसद व विधायक के नाम ज्ञापन सौपा गया।
छत्तीसगढ़ प्रदेश में हाईकोर्ट के फैसले से आदिवासी समाज के 32% आरक्षण कम होकर 20% हो गया इस फैसले से प्रदेश में शैक्षणिक (मेडिकल, इंजीनिरिंग, लॉ, उच्च शिक्षा) एवं नए भर्तियों में आदिवासियों को 12% का नुकसान हो रहा है। राज्य बनने के साथ ही 2001 से आदिवासियों को 32% आरक्षण मिलना था परंतु नहीं मिला। केंद्र के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के द्वारा जारी 5 जुलाई 2005 के निर्देश अनुसार जनसंख्या अनुरूप आदिवासी 32%, एससी 12%, और ओबीसी के लिए 6% को c और d ग्रुप के पदों के लिए जारी किया गया था | छत्तीसगढ़ शासन को बारंबार निवेदन आवेदन और आंदोलनों के बाद आरक्षण अध्यादेश 2012 के अनुसार आदिवासियों को 32%, एस सी 12% एवं ओबीसी को 14% दिया गया, अधिनियम को हाई कोर्ट में गुरू घासीदास दास साहित्य अकादमी रायपुर द्वारा हाइकोर्ट बिलासपुर में अपील किया गया छत्तीसगढ़ शासन द्वारा जनजाति समुदाय की सामाजिक आर्थिक शैक्षणिक स्तर की संख्यातमक डेटा एवम् विधिक सही तथ्य नहीं रखने से हाईकोर्ट ने आरक्षण अध्यादेश 2012 को अमान्य कर दिया। अभी तक छत्तीसगढ़ शासन द्वारा कोई ठोस पहल आदिवासियों के लिए नहीं किया गया इसके विपरीत छत्तीसगढ़ शासन द्वारा सभी भर्तियों एवं शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश एवम भर्ती के लिए हाईकोर्ट के फैसले के अनुसार आदेश जारी करने लगा । छतीसगढ़ में 60% क्षेत्रफल पांचवी अनुसूचित क्षेत्र के तहत अधिसूचित है, जहां प्रशासन और नियंत्रण अलग होगा । अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासियों की जनसंख्या 70% से लेकर 90% से ज्यादा है और बहुत ग्रामो में 100% आदिवासियों की जनसंख्या है। अनुसूचित क्षेत्रो में ही पूरी संपदा ( वन, खनिज और बौद्धिक) है। छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज शैक्षणिक, आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक रूप से पिछड़ा हुआ है। संवैधानिक प्रावधान के बाद भी आदिवासी बाहुल्य पिछड़े प्रदेश में आदिवासियों को आरक्षण से वंचित करना प्रशासन की विफलता और षड्यंत्र है।
सर्व आदिवासी समाज कांकेर जिला के युवा प्रभाग अध्यक्ष योगेश नरेटी ने कोया टूडे को बताया कि छत्तीसगढ़ में आरक्षण के लिए आवेदन के साथ लोकतान्त्रिक तरीके से आंदोलन करने के लिए समाज बाध्य होगा। साथ ही आदिवासी समाज कि आवश्यक मांगे है –
01 पेशा कानून नियम में ग्राम सभा का अधिकार कम न किया जाये ।
02 बस्तर एवं सरगुजा में तृतीय एवं चतुर्थ वर्ग की भर्ती 100 प्रतिशत स्थानीय किया जाये ।
03 केंद्र के द्वारा वन अधिकार संरक्षण अधिनियम 2022 को लागू न किया जाये ।
04 हसदेव आरण्य क्षेत्र में आदिवासी एवं पर्यावरण संरक्षण हेतु कोल खनन बंद किया जाये ।
05 प्रदेश के मुख्य सचिव के रूप में आपसे आग्रह है छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के लिए अतिशीघ्र 32%
आरक्षण लागू किया जाए ताकि आदिवासियों का शैक्षणिक, आर्थिक, सामाजिक विकास हो सके ।
सर्व आदिवासी समाज बस्तर संभाग के संभाग अध्यक्ष प्रकाश ठाकुर ने बताया कि राज्य में जनजाति समुदाय आरक्षण 32% से 20% करने तथा अनुसूचित क्षेत्रों की ग्रुप सी एवं डी के पदों पर स्थानीय भर्ती को भी अपास्त किया गया है । हाईकोर्ट के फैसले को सर्व आदिवासी समाज बस्तर संभाग द्वारा सुप्रीम कोर्ट में स्टे लेने हेतु याचिका दायर कर दी गई है ठाकुर ने आगे बताया कि उनकी याचिका सुप्रीम कोर्ट में केस डायरी में दर्ज हो गई है आगामी दिनों में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई करेगा।
छत्तीसगढ़ प्रांत के सभी विकासखंडों में आज आंदोलन किया गया जिसमे समाज प्रमुखों, जन प्रतिनिधियों, आदिवासी समुदाय के महिला पुरूष व युवा- युवतियों, अधिकारियों एवं कर्मचारी आरक्षण बचाओ आंदोलन में अधिक से अधिक संख्या में सम्मिलित हुए । ख़बर है कि आज का आंदोलन पूरे राज्य के साथ ही बस्तर संभाग के कांकेर कोंडागांव सुकमा दंतेवाड़ा नारायणपुर बीजापुर बस्तर जिले के सभी ब्लॉक में भी व्यापक जन आक्रोश के साथ प्रदर्शन किया गया है। वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री सर्व आदिवासी समाज के पदाधिकारियों के साथ चर्चा के दौरान समाज को आश्वस्त किया है कि आगामी 17 अक्टूबर की मंत्रिमंडल की बैठक में अनुसूचित जनजाति समुदाय के आरक्षण को लेकर समाज हित में फैसला लिया जाएगा अब देखने वाली बात यह है कि 17 तारीख को राज्य सरकार द्वारा क्या फैसला लिया जाता है और राज्य में आरक्षण का आंदोलन सर्व आदिवासी समाज किस ओर ले जाती है विदित हो कि छत्तीसगढ़ राज्य में विधानसभा चुनाव होने के लिए मात्र 1 वर्ष है और राज्य में सरकार बनाने हेतु आदिवासी समाज की 29 विधानसभा क्षेत्र आरक्षित हैं। छत्तीसगढ़ राज्य में सरकार बनाने में आदिवासी समाज की हमेशा से निर्णायक भूमिका रही है