सम्मानित स्नेहिल सगाजनों । आप सभी को मेरा हृदय से सेवा जोहार। जैसा कि आप सभी जानते है कि हम सभी कौन हैं? गोंडी पानापारसी भाषा में कहते है नना/अना कोयतुड़ आंदन।। यही हमारी हमारी असली शुद्ध पहचान है।क्योंकि हमारी कोयतुड़ दाई ने हमें यह पहचान दी है यही हमारी मातृभाषा है यही हमारी विरासत है इसी में हमारा स्वाभिमान और अस्तित्व है । हमें विकल्प ढूंढने की आवश्यकता ही नहीं। आजकल दुकानों में विकल्प बेचे जा रहे है हमारी मातृभाषा का मातृभुमि को बेचा जा रहा..।
चलिए आगे बढ़ते है हम कोयतुरियन समुदाय के लोग हैं हमें ही गोंडवाना का गण्डजीव, गण्डमंदाना ,गण्डधरवाना या कोयावंशीय कहा गया ये सभी पहचान हमारी मातृभाषा /महतारी के कोख से पुंगार बनकर,कोया नत्तूर से निकली है। हम कोया के नत्तूर है हमारी पहचान हमारे पुरखों ने दी है। यही हमारा शुद्ध ओरिजनल नत्तूर है। किंतु समय के प्रवाह मेंइस विराट कोयतुर समुदाय को अपनी पहचान के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। और यह संघर्ष हमें गैरों के साथ साथ अपनों के साथ भी करना पड़ रहा है। विषम डगर है, बड़ा भंवर है और हम इस भंवर से नहीं खुद को निकाल पा रहे।हमारी कोयताड़ दाई विलख विलख कर विलाप कर रही है किंतु हम उनको नहीं समझ पा रहे कि दाई क्या कह रही है? कारण एक ही है हम अपनी मातृभाषा नहीं जानते और ना ही पुनेम की व्यवस्था। पुनेम का संबंध हमारी भाषा से है।अब जब भाषा नही नहीं तो भला पुनेम कहां? सब दकियानूसी है इधर का नालेज उधर का नारेज इसके सिवाय कुछ नहीं। हम बिछड़ गए पूनेम से,हम बिछड़ गये अपनी व्यवस्था से।सामुदायिक टोटमिक, जीवन जीने वाला समुदाय कभी एक ही घाट में पानी पीता था एक साथ माधुर्यता से जीवन यापन करता था।किंतु आज अलग अलग जाति समुहों मे बंटा हुआ है।और हजारों गुटों मे बंटकर संघर्षरत है।
किंतु आज भी एक हिस्सा ऐसा है जो अपने प्राचीन महान कोया पुनेमी व्यवस्था का पालन कर रहा है यही शुद्ध रूप से कोयतुर है।और संदेश दे रहा कि हमारी असली पहचान हमारे भाषा और संस्कृति में निहित हैकिंतु हमारा समुदाय अपनी पुरखों की प्राचीन व्यवस्था को भूलकर दूसरों की आइडोलोजी में अपना भविष्यफल ढूंढ रहा हा है।वह विकल्प ढूंढने में लगा हैऔर स्वयं की झोली भरने मे व्यस्त है। मस्त है उसे स्वयं को कोयतुर कहने में शर्म आती है, वह कोयामूरी दीप, कुयवाराष्ट्र की महान अवधारणा को स्वीकार करने में अपमानित महसूस कर रहा है कारण उसे दूसरों की आइडोलोजी, दूसरों से शासित होना पसंद करता है। दूसरों की भाषा, बोलता है दूसरों के झण्डे उठाता है। वो भूल गया है कि वह कभी शासक था। अब दूसरों का सहभागी है।वह दूसरों की जीत पर जश्न मनाता है।दूसरों के तीज , त्योहार में आनंदित है हम कह सकते हैं !
आए एक ही देश से उतरे एक ही घाट
हवा लगी संसार की हो गये बारं बाट ।।
हम भूल गए अपनी व्यवस्था, हम भूल गये अपनी भाषा , हम भूल गये अपनी पहचान, हम भूल गये अपने नेंग मिजान और दस्तूर, हम भूल गये अपना स्वाभिमान
सगाजनों हमेशा याद रखें हम चाहे कितनों अमीर ,सभ्य, विकसित हो जाएं किंतु हमारा CONCEPT यदि सही नहीं रहा तो सब व्यर्थ है। यदि हमारा स्वयं का साफ्टवेयर दूसरों की आइडियोजी पर गढ़ा गया हो तो उसका कोई अस्तित्व नहीं रहेगा। हमारा अस्तित्व हमारे जीवन दर्शन में छुपा हुआ है और अपनी मातृभाषा में है। हम अपनी भाषा नहीं सीखना चाहते जबकि सारी गड़बड़िया़ भाषा से ही हुई है।हम इधर उधर दिमाग लगाते हैं और कागजी संकलित जानकारियों को पढकर समाज को स्वयं न सीखकर ज्यादा सिखाने में यकीन करते हैं। अभी का युवा जेनरेशन नालेज जनरेट कर रहा है किंतू वास्तविकता से कोषो दूर है। एक दिन तो हद तब हुई जब उसने कहा आप पुनेम की बात मत करो संविधान की बात करो । हम पुनेम जानते है। मैं आश्चर्यचकित और हतप्रभ था । यकायक मेरे मुर्सेनाल दादा मोतीरावेन कंगाली की याद आई । उन्होने कचारगढ़ के चबूतरे में बैठकर कहा था कि गोंडवाना का गूढ़ विद्या और कोया पुनेम की लिंगो जीवन दर्शन इतनी वृहद है कि मैं अपने जीवन में मात्र एक बूंद ही ले पाया। मतलब मात्र 25% ही जान सका। इसलिए मैं आश्चर्य चकित था। इसलिए इधर सब गड़बड़ है।इसे समझना बहुत जरूरी है व्यक्तिवाद हावी हो चला है।व्याख्याकार बढ़ गए है। जबकि हमारे मुठवापोय पहांदी पारी कुपार लिंगो है असली व्याख्याकार। ये बात भी दादा ने बताई। हम तो केवल निमित्त मात्र हैं। हमने कुछ नहीं किया सब दर्शन लिंगों का है। ये समझने वाली बात है ।
हमें जो बीज बोना है उसकी पहचान जरूरी है हम क्या बो रहे है इसका परीक्षण जरूरी है।प्रकृति का सिद्धांत कहता है कुछ न कुछ तो उगेगा ही।चाहे तुम शंकाएं बो, या स्पष्टता। ये आपके ऊपर निर्भर करता है। आप अपनी धरती पर क्या बोना चाहते हो? आपको जमीन भी मिली हुई है किंतु इस जमीन पर जो तुम कल्पना बो रहे हो तो सिर्फ उड़ सकते हो इससे ज्यादा कुछ नही कर सकते। एक शेर है ….।
खुदी को करके बुलंद इतना
चढ़ा वो जैसे तैसे …..
खुदा ने जब बंदे से पूछा -अबे चढ़ तो गया अब उतरेगा कैसे।।
इसलिए सगाजनों आगम चेति सगा सुखी। हमे व्यक्तिवाद की जरूरत नहीं सामुदायिक वाद की _आवश्यकता है और पुनेम की आवश्यकता है_ हमे केवल मुठवापोय पहांदीपारी कुपार लिंगों के बताए हुए रास्ते पर चलने की आवश्यकता है। _हमारे मुठवापोय लिंगो कहते हैं मैं कोयतुरों को भटकते हुए देख रहा हूं मै देख रहा हूं इस समुदाय को कोया सर्री सत्यमार्ग की आवश्यकता है इसलिए मैं संपूर्ण जीवन सत्य की में लगाऊंगा। और वही किया सत्य को जाना फिर कहा – कि जिस सत्यमार्ग की तलाश तुम कर रहे हो वह मार्ग कोया वंशीय गण्डजीवों के सर्व कल्याण साध्य करने का पुयनेम मार्ग है।इसलिए हे कोया मेरी बात ध्यान से सुनो …..मैने अपने मन , शारिरिक कर्म इंद्रियों को अपने बस में करके सात वर्षों की कठिन साधना सावरी मड़ा के नीचे की और बौद्धिक ज्ञान चक्षुओं के प्रकाश से पुनेम का साक्षात्कार किया है तुम व्यर्थ में इधर -उधर भटक रहे हो। मैने तुम्हे जिस सगावेन गोंदोला युक्त सामाजिक संरचना को बनाकर सबमें प्रेमभाव ,बंधुभाव विकसित की उसे सुनो और धारण करो ।
इमा केंजा रो कोया इमा केंजा रो।
इदामा सिरडीप पुर्वाकुण्डा आंदू।।
इदामा सिंगारदीप भुइयां आंदम इदामा गांगरा पार्रंड मंदांग ।।
इमा केंजारो कोया इदामा सिरडी मोद्दूर तवीता ।
इमा केंजारो कोया इदामा सक्कूम येरेनूर संयू तविता।।
आपने कहा –
केंजा ए चेलानी सेवा सेवा पुंजी हंदाना। सुयमोदी आसी ईमाट सुयमोदी सियाना ।
तमवेड़ची आसी इमाट ,रेक्वेड़ची कियाना।
सगा तम्मू आसी इम्माट सगा पाड़ी बियाना।
सुयवन्के आसी इम्माट सुयवाणी वड़कीना ।
सेवकाया आसी इम्माट सगा सेवा कियाना।।
अर्थात यहां सुयमोदी से तात्पर्य है हमें स्वयं सत्यज्ञान की तलाश करनी होगी। स्वयं प्रकाशित होना होगा।और जब हम प्रकाशित होंगे तो औरों को प्रकाशित आलोकित करना होगा। यह कहकर लिंगों ने हमें गोटूल की ओर प्रेरित किया है उक्त पंक्तियां कह रही है कि हमे सर्वप्रथम सीखने की कला विकसित करनी होगी ।
क्योंकि जब हम सीखते है तो हम विकसित होते हैं । और पहले से ज्यादा काबिल बनते है।
इसके लिए महासभा ने एक साफ्टवेयर विकसित किया है यदि आपमें सीखने की ललक है तो आप हम सबसे जुडिए ।इसके लिए हमने KOYTUR LEADERSHIP SKILL DEVLOPMENT TRAINING SEEMINAR करने हेतु एक युनिवर्सिटी तैयार कर लिया है !
जिस तरह पुकराल जगत में सर्वप्रथम लिंगो ने लांजीकोट में एक युनिवर्सिटी लगाई और सलेक्टिव बच्चों को चुना और उन्हे कोया पुनेम के दस कमांण्ड दिये। टेन फार्मूले दिए । उसी तरह हमारे युनिवर्सिटी में भी लिंगो के बताएं दर्शन की , पदचिन्हों की , व्यवस्थाओं की जानकारी देती है। हम आपको यह क्लीयर कर देना चाहते है कि यहां व्यक्तिवाद बिल्कुल भी नहीं । यहां कोई यकायक अवतारी पुरूष नहीं , और ना ही कोई वैकल्पिक आइडियाज है।
यहाँ पर केवल लिंगो के दर्शन है उनके बताए हुए सगा साध्य कल्याण मार्ग है।जो कि'” “सुयमोदी आसी सुयमोद सियाना “के पथ पर चलती है।यहाँ व्यक्तिवाद के लिए तनिक भी गुंजाइश नहीं।
आज हम देख रहे हैं सब गोंडवाना मुव्हमेंट को तोड़ने मे लगे हैं। शुद्ध कोयतुरों को मंच पर चढ़ने नहीं देना चाहते। ना ही बुलाना चाहते हैं केवल धंधा चलना चाहिए। गैरों का चाल चलन अच्छा लगता है। उनका झोला ,उनका डंडा अच्छा लगता है।भला घर क्यों अच्छा लगे दूसरे की दाल पसंद है। ये सब गडझबड़ियां बड़े पैमाने पर चल रही हैं इसमे गैर तो गैर हमारे अपने भी लूट रहे है।वो कहावत है ना
हमें तो अपनों ने लूटा गैरों में कहां दम था ।
हमारी किश्ती वहां जा डूबी जहां पानी कम था ।।
हमारे मुठवापोय पहांदी पाड़ी कुपाड़ लिंगो कहते है कि जो परम्परा अपना ज्ञान आगे न बढ़ाकर दूसरों का ज्ञान बढ़ाती है वह स्वतः ही नष्ट हो जाती है।
इसी तरह कहा गया है कि जो समाज अपनी भाषा अपनी मातृभूमि को भूल जाए उसका भी पतन निश्चित है।
इसलिए सगाजनों अपने दिमाग की बत्ती को जलाए रखना होगाऔर सीखने की प्रवृत्ति को तैयार करनी होगी आप सभ्य लोग हैं आप काबिल लोग है बस जरूरत है कि हम स्वयं को सीखने हेतु तैयाल हों। इसलिए तो हमने युनिवर्सिटी तैयार कर लिया है। यहां शुद्ध कोयतुड़ तैयार किए जाते है। हमारा लक्ष्य एक है, हमारा विचारधारा एक है और हमारा मिशन भी एक है।
गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन के प्रणेता दादा हीरा सिंह मरकाम कहते थे जिसका बात एक उसका बाप एक ।। हम दादा के कथन पर खरा उतरना चाहते हैं। यहां हजारों गड़बड़ियां है संगठन है किंतु वो पुनेम के विरोध में कार्य करती हैं। गो़डवाना के आंदोलन की समझ शून्य है। ये हमारे महापुरुषों का तस्वीर लगा तो लेते है किंतु उनकी विचारधारा के बिल्कुल विपरीत कार्य करते हऐ। लोग हमारे होते है काम दुश्मनो का करते हुए गोंडवाना के मिशन को सदा सदा के लिए समाप्त कर देना चाहते है। किंतु हम ये नहीं होने देंगे। गोंडवाना का दीपक सदा से जलता आया है और सदा जलता रहेगा। हमे सच्चे कोयतुर हैं। हमारा ब्रांड नत्तूर से जुड़ा है कोयतुड़ कभी झुकेगा नहीं साला…।। हम विकल्प नहीं ढूंढते हम लिंगों के बताए मार्ग पर चलते हैं हमारा मकसद साफ है –
जब एक है मंजिल तो फिर क्यूं हो अलग अलग रास्ते।।
एक मैं भी गोंडवाना के वास्ते , एक तू भी गोंडवाना के वास्ते।
इसलिए सगाजनों आप तैयार हो जाओ। कोयतुर दाई की आवाज सुनो। दाई पुकार कर रही कि मेरे बच्चों कोई मेरा गला पकड़ रहा है कोई मेरा ब्लाऊज फाड़ रहा है मेरे बच्चों मेरी रक्षा करो। स्वयं को तैयार करो।
इसलिए सगाजनों तैयारी उसी को करनी पडती है जिसका मिशन बड़ा होता है। हमारा मिशन भी बडा है। इस मिशन में ईमानदारी, संप्रेषण, धैर्य,विनम्रता, शिष्टता, संपूर्णता, तार्किकता, बुद्धिमत्ता, उत्पादकता, दक्षता जैसे गुणों का समायोजन है । इस लीडरशिप ट्रेनिंग को महत्व दें। मूल्यवान बनें। हमारा उद्देश्य हमारे समुदाय के हित मे है। हम कोयतुर नफरत से नहीं बल्कि प्रेम , वात्सल्य से समाज को आगे लए जाएंगे, ताकि हम अपने भारत को अर्थात महान कोयामूरी दीप का भविष्य बेहतर बना सके।और सत्य यह है कि हम लिंगों दर्शन से ही हम विश्व की प्रथम सभ्यता को विश्व की महान शक्ति बना सकते हैं।
भूचालों की मार सहन कर हम बड़े हुए..
इसलिए हम कोयतुर सीना ताने अड़े हुए..
खुद- ब- खुद हट जाएंगे रोड़े राहों के..
लिंगो के दर्शन से हम अभिभूत हुए।
बुद्धम श्याम , अम्बिकापुर
कोयतुर लीडरशिप स्किल डेवलपमेंट ट्रेनिंग अशोसिएशन