शीर्षक – जंगल पहाड कंदराएँ उँघते अनब
बैगानी – बोली भाषा कविता (मध्यप्रदेश),
जंगल पहाड कन्दराएँ
ऊँघते अनमने जंगल
नदी नाले के ऊपर
दल – दल में धँसी
पानी में फँसी झिटका , उलीच
पकड़ रही छोटी – छोटी मछलिय
डलिया हो या झिटका आ गई मछलियाँ
पुरवा पान में साग बन गई
चटनी जैसी बन गई मछलियाँ
बर्तन का काम कर गई,
मोहलाइन की पत्तियाँ
ले आई बैगा दाई मछलियाँ ।।
डॉ. सुनीता पेन्द्रो (लेखिका) भोपाल (म.प्र.)
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