कोरिया (गरूड़डोल) -: कोरिया भ्रमण के दौरान ग्राम गरूड़डोल में दिनांक 10/09/22 दिन शनिवार को बैठक रखा गया जिसमें कोया पुनेम गोंडवाना महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता तिरूमाल बुद्धम श्याम जी के नेतृत्व में यह बेठक रखा गया । इस बैठक की अध्यक्षता कर रहे तिरूमाल शिव प्रसाद आयाम सरपंच ने बताया कि बैठक का मुख्य उद्देश्य कोयतुर समुदाय को कैसे संगठित किया जाय एवं उनके अंदर कोया पुनेम की विचारधारा को कैसे विकसित किया जाय इस पर चर्चा परिचर्चा रखा गया ।
इस बैठक में कोया पुनेम गोंडवाना महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने अपनी बात रखते हुए कहा कि हमें सर्वप्रथम कोया पुनेम की विचारधारा को गांव – गांव तक पहुंचाना है, इसके लिए हर गांव में “कोया पुनेम सगा मांदी” आयोजित करने की आवश्यकता है। किंतु इसके लिए कोया पुनेम गोंडवाना महासभा की मेम्बरशिप को बढ़ाने की आवश्यकता है साधन और संशाधन निमार्ण किए बगैर हम अपने लक्ष्य णक नहीं पहुँच सकते है । आज हमारा समाज पूरी तरह से भटक चुका है और गैरों की पहचान, गैरों का आइडिया लेकर स्वयं को आदिवासी, वनवासी, गिरिजनवासी कहलाने में गर्व महसूस कर रहा । अपनी मूल पहचान खोकर आनंद मना रहा है। त्योहार मना रहा है जबकि हमारे समुदाय में त्योहार नहीं बल्कि पाबुन और पंडूम होते हैं। यह सब गड़बड़ियां क्यों हो रही हैं इसे समझने की आवश्यकता है। कोई भी सभ्यता हो उसकी अपनी मौलिकता होती है भाषा होती है सभ्यता होती है किंतु आज हम दूसरों की भाषा ,दूसरों की संस्कृति, दूसरों की सभ्यता को ढो रहे हैं। सारी गड़बड़ियां भाषा से ही हुई हैं। भाषा खत्म तो हम भी खत्म हम अपना अस्तित्व दूसरों की भाषा में ढूंढ रहे इसलिए स्वयं को आदिवासी कहने में गौरवान्वित महसूस कर रहे है । आज दुनियां के इस सांस्कृतिक व राजनीतिक संघर्ष में अस्तित्व की लड़ाई जो हम लड़ रहे हैं वो दिशाहीन है। कारण भाषा , साहित्य दूसरों का है, जिस भाषा का जितना साम्राज्य होगा उसका साहित्य भी उतना व्यापक होगा। हमारी भाषा नहीं रही इसलिए हमारा साम्राज्य नहीं रहा। हमारी मातृभूमि कोयामर्री दीप था तो भाषा भी थी सभ्यता भी था। किंतु आज न मातृभूमि रही ,न भाषा रही न ही सभ्यता जीवित है। किसी भी सभ्यता को पहचानना है तो उसकी भाषा का जीवित होना बेहद जरूरी है। इसलिए हमारी पहली प्राथमिकता हमारी भाषा को जीवित करने की होनी चाहिए। भाषा ही असली चाभी है जो हमारे गौरवशाली इतिहास को संरक्षित कर सकती है। इसलिए आप संगठित होइए। अपनी मातृभाषा को विलुप्त होने से बचाइए। कोयताड़ महतारी रो रही है । रो रो कर विलाप करती आवाज दे रही है कह रही है मेरे बच्चों मुझे बचाओ। किंतु बच्चा अपनी दाई की करूड़ रूदन को नहीं समझ पा रहा कारण दाई गोंडी में बोल रही । और बच्चा गोंडी नहीं जानता । इसलिए वह अपनी दाई को समझ नहीं रहा। ये सारी गड़बडियां क्यों हो रही है ? ये सारी गडबड़ियां इसलिए हो रही क्योकि वह बच्चा अपनी भाषा नही जानता। आज हमारा समाज आधुनिक सभ्यता के चकाचौंध में अपनी व्यवस्था भूल गया। स्वयं को भूल गया , अपनी मातृभूमि , मातृभाषा, अपनी संस्कृति को भूल गया है। इस कारण सारी गड़बड़ियां हो रही। इसलिए हमें कोया पुनेम जीवन दर्शन की आवश्यकता है। हम अमीर हो सकते हैं। किंतु दर्शन नहीं रहा तो हम भिखारी ही कहलाएंगे। यह बहुत दुख की बात है जिसकी मातृभूमि छीन ली गई हो ,भाषा छीन ली गई हो, पहचान छीन ली गयी हो वो आनंद मना रहे। उनको आज तक एहसास ही नहीं है कि वो गुलाम हैं। इस बात को गंभीरता से सोंचने की आवश्यकता है। इसके लिए हम सबको संगठित होना पड़ेगा। एक विचारधारा एक दृष्टिकोण की महति आवश्यकता है । अलग अलग टुकड़ों में बंटा हुआ हमारा समाज आज भी अलग अलग लड़ाई लड़ रहा है। इसलिए तो हर बार हार रहा है । इसके लिए कोया पूनेम गोंडवाना महासभा ने राष्ट्रीय शक्ति निर्माण करने की पहल की है जो निश्चित ही सराहनीय कदम है। इसके लिए हम सबको एक मंच पर आने की आवश्यकता है।हमने 1750 वर्षो तक इस कोयामर्री दीप मे राज्य किया है। यह वही समुदाय है जिसने इस धरती पर सर्वप्रथम सभ्यता की नींव डाली।किंतु इस समाज को हर जगह पर अपमान का जहर पीना पड़ रहा ।जातिवाद और अश्पृश्यता का लेबल चिपकाकर जंगली असभ्य आदिवासी, वनवासी ,गिरिजनवासी का पहचान दिया जा रहा । जबकि हम कोयताड़ दाई के कोंख से जन्म लिए कोयतूर है। हमारी पहचान ब्रांडेड होनी चाहिए। जैसे हम कपड़ा खरीदने जाते हैं तो कहते है हमें ब्रांडेड कपड़ा दिखाओ , जूता खरीदने जाते है तो कहते है वुडलैंड का ब्रांडेड जूता दिखाओ, साड़ी में ब्रांडेड बनारसी साड़ी दिखाओ । मै पूछता हूं जब कपड़ा ब्रांडेंड चाहिए, जूता ब्रांडेंड चाहिए तो हमारी पहचान ब्रांडेड नहीं चाहिए। इसलिए कोयतूर ही हमारी असली ब्रांडेड पहचान है। ये सभी मौलिक बाते हैं जिसे समझने की आवश्यकता है। आइए हम सब संगठित हो ।
कोयतुर समाज को दूसरों की आइडोलोजी की नहीं , बल्कि कोया पुनेमी पहचान की आवश्यकता है । तभी हमारा समाज शासक की तरह सोंच पाएगा ।
हम सब जानते है कि हम अपने कोयतुड़ दाई के नत्तूर है इसलिए हम कोयतुड़ हैं। हमारी मातृभूमि कोयामर्री दीप रही है । आज जिसे भारत कहते हैं। मगर सब जानते है कि यह भारत से पहले कोयामूरी दीप ,संयुंगारदीप थी। किंतु कोयतुड़ आज भी अपनी सभ्यता की लड़ाई लड़ रहे है और लड़ते रहेंगे। इस आंदोलन को टूटने नहीं देंगे। गोंडवाना का आंदोलन गोंड गोंडी गोंडवाना का आंदोलन है जिसे कोयतुड़ मूंद मंशूल सर्री या मुरक्का सर्री कहते हैं। जिसे त्रैगुण्यमूल कहा जाता है। इसे समझने की आवश्यकता है । इस आंदोलन को समझने के लिए आपसी समझ विकसित करने की आवश्यकता है। हम धर्म को नहीं जानते हम पुनेम को जानते हैं। धर्म तो मानव की बनाई गयी व्यवस्था है जबकि पुनेम नैसर्गिक है। हमे इसलिए कोया पुनेम को समझना है उसके जीवन दर्शन को समझना है। यह पथ अति दुष्कर है किंतु आगे चलकर हमको एक मजबूत आधार मिलेगा। इसके लिए कोया पुनेम गोंडवाना महासभा आप सभी को संगठित करनू का कार्य कर रही है। हम कोयतुड़ों को भिखारी की तरह नहीं बल्कि शासक के रूप में स्वयं को तैयार करना होगा। इसके लिए बेहद जरूरी है हम अपने नत्तूर से समझौता न करें। हमारा आंदोलन स्वाभिमान से जुड़ा है और हमें विकल्प नहीं हमारी मातृभूमि, हमारी भाषा , हमारी सभ्यता जीवंत चाहिए। इसके लिए हम कोई भी कीमत देने को तैयार है। इस तरह की आपने अपनी बात समाप्त की और कहा कि “कोया पुनेम सगा मांदी “की व्यापक तैयारी हम सब करेंगे। आशा करता हूं आप सबको मेरी बाते समझ आई होंगी। गरूड़डोल से पहली सगा मांदी की शुरुआत करने की अपील करते हुए आपने अपनी बात को विराम दिया। गरूड़डोल के इस कार्यक्रम में आपका स्वागत है हम सभी ग्राम वासी आपके इस विचारधारा का समर्थन करते है हम आपको विश्वास दिलाते है कि बहुत जल्द ही कोया पुनेम सगा मांदी की तैयारी कर आपको अवगत कराएंगे। हमारे गरुड़डोल के सभी सगापाड़ियों को जीवातल सादर सेवाजोहार आप सभी ने बैठक मे सहमति दी है। इस कार्यक्रम में सुखनंदन सिंह , देवराजेंद्र सिंह , शिवकुमार आयाम, लक्ष्मण सिंह पोया , ओम प्रकाश सिंह, संतोष सिंह अजमेर सिंह श्याम ,प्रेम सिंह पोया ,जगत सिंह मरकाम,उमा शंकर सिंह मसराम, महेंद्र सिंह आयाम, वृंदा सिंह आयाम, लक्ष्मण सिंह पोया इत्यादि लोग सम्मिलित थे