कोयतुर विचारधारा वह विचार धारा है जो हमे अपने पूर्वजों से विरासत में मिली है कोयामुर्री दीप,जंगोंदीप,सिंगारदीप और गोंडवाना लैंड की धरती से यह विचारधारा बहती आई है, इसी विचार धारा से हासपेंन मोती रावेन कंगाली,हासपेंन सुमेर सिंह तराम,हासपेंन दादा हीरा सिंह मरकाम जैसे कई महान और विद्वान तैयार हुए और अपने समाज को जगाने के लिए जी जान लगा दिए, पर आज इन कोयतुर विद्वानों के विचारधारा को लोग एक जुट करने में असक्षम नजर आ रहे है ! इसीलिए आज हमें अपनी सोच को निर्मल रखते हुए शांत मन से कोयतुर विचारधारा पर गहन अध्ययन करना चाहिए और कोया पुनेम् व्यवस्था पर भी अपने कोयतुर समाज को गहरी चिंतन मनन कर सोचना चाहिए की आज हमारे हर गांव के पेंन ठानाओं में बाहरी व्यवस्था को अपने ही लोग थोपने का काम कर रहे है, इस पर गांव के सगा समुदाय को बाहरी एजेंडा पर कड़ी नजर रखनी होगी खासकर कुछ नेताओं और उनके पीछे घुमने वाले कुछ संगठनों के साथ अधिकारीयों पर भी कड़ी नजर रखनी होगी ! तभी हमारे पेंन ठानाओं को हमलोग सुरक्षित रख पाएंगे !आज के वैज्ञानिक युग मे भी हमारे लोग बाहरी और काल्पनिक चीजों पर विश्वास कर रहे है, मैं खुद कई वर्षो से बाहरी व्यवस्था पर हावी था, मेरे जैसे उपवास रहने वाले और पूजा पाठ करने वाले शायद ही मेरे गांव में कोई रहा होगा ! पर मैं अपना खुद का तर्क लगाना शुरू किया तो मैं पाया कि यह सब काल्पनिक है, इससे कुछ होने वाला नही है बल्कि हमारी ही पैसा से मूर्ति खरीदते है हमारी ही पैसा को पंडितो को दान देते है हमारे ही पैसा से डीजे मंगाते है, इससे लगभग हमारे मेहनत की कमाये हुए 15 से 20 हजार रुपए खत्म होते है ! वैसे भी जनजाति समुदाय मूर्ति पूजक नही है,बल्कि प्रकृति पूजक है, अगर हमारे समाज के मुर्तिक पूजक लोग इस मूर्ति पूजा को छोड़कर हमलोग हर वर्ष शिक्षा के नाम से चंदा ले और सब कुछ भूलकर कोया पुनेम् व्यवस्था को समझते हुए अपने गांव के होनहार बच्चो को इसी पैसे से अच्छी शिक्षा दे जैसे – वकील,डॉक्टर,आईएएस और आईपीएस जैसे कोचिंग कराकर अपने बच्चों को बेहतरीन जीवन दे इससे अपना समाज को आर्थिक मदत के साथ आपका गाँव भी जागरूक और सक्षम होगा ! आज कोयतुर समुदाय के लोग पढ़ लिखकर बड़े – बड़े पोस्ट पर बैठे है पर उनका ध्यान अपने समुदाय के ऊपर बिल्कुल नही है क्योंकि उनकी कोयतुरिय विचारधारा टूट चुकी है,जो कोयतुरियन विचारधारा भाषा रीति-रिवाज को जानते है समझते है,उनको आज के कुछ पढ़े लिखे लोग उन्हें बैकुप समझते है, तो ऐसे में हमारी कोयतुर समुदाय कैसे आगे बढेगा ! हमें अपने समाज के कुछ नेताओं ,कुछ संगठनों के साथ हमारे कुछ अधिकारी कर्मचारियों पर भी विश्वास करना छोड़ देना चाइये क्योंकि इन्ही लोग अपने कोयतुर विचारधारा और कोया पुनेम व्यवस्था को तोड़ने का काम करते है, इन सभी को छोड़ते हुए हमें कोया पुनेम् व्यवस्था की विचारधारा कि राह पर चलते हुए सत्य की मार्ग को अपनाना चाहिए ताकि हम सभी अपने कोयतुर समुदाय में जागृति ला सके और हमारे कोयतुर समाज को प्रकृति के अनुसार चला सके अगर हम लोग बाहरी धार्मिक एंजेडा को छोड़ प्रकृति का अनुसरण करे तो यह हमारे समाज के लिए बेहतर साबित होगा ! क्या? आज हमारे समाज के पढे लिखे लोगों से कोया पुनेम् व्यवस्था को लेकर उम्मीद कर सकते है जी नही बिल्कुल नही कर सकते है क्योंकि आज हमारे कोयतुर जीवन शैली को समझने के लिए हमे अपने पूर्वजों की विचारधारा को स्मरण करना होगा हमारे पूर्वज अनपढ़ थे फिर भी इस भू-भाग में कई हजार वर्षों से शासन सत्ता अपने हाथ मे रख गोंडवाना साम्राज्य चलाये और हम सब पढ़े लिखे लोग बाहरी और काल्पनिक व्यवस्था को मानते हुए अपने जल,जंगल,जमीन को तो छोड़ो अपने घर को भी संरक्षित नही रख पा रहें है !आज हमारे पढे लिखे बच्चें गांव-गांव में मूर्ति त्यौहार माना रहे है जबकि हमारे बच्चे पढे लिखे है, उनको तर्क और विचार करना चाहिए कि क्या सही है या गलत है, जबकि त्यौहार का अर्थ ही यहाँ की मूलनिवासियों की हार होती है ! हमारे शरीर का जबतक तन मन जीवित है तबतक अपने समाज के लिए काम सच्चे मन और लगन से करना चाहिए कोया पुनेम् नेंग ,मिजान पर काम करना चाहिए हमे बाहरी आडंबरों से दूर रहना चाहिए अपने पेंन पुरखों पर विश्वास करना चाहिए न की बाहरी आडंबरों पर तभी हमारी कोयतुर समुदाय सुरक्षित रह पाएगा ! आज हम सभी कोयतुर समुदाय अपने आखरी पड़ाव पर है, अपने मूल संस्कृति, रीति रिवाज,पेंन ठाना औऱ बोली भाषा को बचाने के लिए सभी कोयतुर समुदाय को एक होकर लड़ाई लड़नी चाहिए ताकि अपना समाज आगे की ओर बढे और बाहरी आडंबरों से भी दूर रहे तभी हमारी समाज मे तरक्की होगी तभी हमारी मूल संस्कृति ,रीति रिवाज ,नेंग मिजान,बोली भाषा रहेगी हमें अपने पूर्वजो से विरासत में मिली कोयतुर विचारधारा को आगे बढाने की जरूरत है !!
सामाजिक कार्यकर्त्ता
कोयतुर महेन्द्र सिंह मरपच्ची
प्रदेश मीडिया प्रभारी (को.पु.गो.म.)
कुडेली, जिला-कोरिया (छत्तीसगढ़)