पृथ्वी के प्रत्येक देश में कोई न कोई एक ऐसा प्रकृतिवादी विचारक उत्पन्न हुए है कि जिसके विचारों का अनुकरण उस देश के मनुष्य करते हैं । ऐसा ही एक महान् कोया पुनेमी प्रकृतिवादी विचारक मुठवा पाडी पहांदी कुपाड़ लिंगो गोंडवाना में हुए जिनके प्रकृतिवादी विचारों को सभी मनुष्य गोंडी धर्म या कोया पुनेंम कहते हैं । प्रकृति की मान्यता के बिना कोई आध्यात्मिक विचार होता ही नहीं है ।
कोया पुनेम (गोंडी धर्म) मुठवा (गुरु) पाडी पहांदी कुपाड लिंगो के विचार भी प्रकृति शक्ति फड़ापेंन(धरती, जल, वायु, अग्नि, आकाश) की मान्यता के बिना नहीं हैं,जहां जहां प्रकृति शक्ति की मान्यता है ,वहां वहां मनुष्य के प्रकृतिवादी जीवन को जीने की विधि(प्रकृति) का भी विधान (मीजान) है । उनके नियम (नेंग सेंग मीजान) भी हैं । मरने के बाद शव को मिट्टी देने की भी नेग है ।ध्यान (तंदरी जोग ) करने की विधि/मीजान भी हैं, विश्व भर में रहने वाले indigenous मनुष्य जाति भी किसी न किसी को प्रकृति शक्ति को मानकर उत्सव मनाते हैं प्रकृतिवादी विचारक अनेक नहीं होते हैं किन्तु उनके समर्थक अनेक होते हैं । स्वतः ज्ञान किसी को होता नहीं है ,कि कुछ सीखा न जाए और सभी प्रकार का ज्ञान हो जाए ज्ञान का निर्माण प्रकृति (नेचर) ने ही किया है । अर्थात सभी मनुष्यों का जीवन सुख पूर्वक निर्बाध बीत जाए ,ऐसा नियम मात्र प्रकृति ही बना सकती हैं । मनुष्य से लेकर देवताओं (पेन शक्ति) तक सभी श्रेष्ठ आध्यत्मवेत्ता प्रकृति के बनाए गए नियमों के अनुसार ही चलते हैं बस इतना समझना चाहिए कि जिसे आप प्रकृतिवादी कह रहे हैं, उसकी बात का अनुमोदन करने वाले और उसके काम के प्रशंसक एवम प्रकृति के मार्ग कोयापुनेंम पर चलने वाले आदिम जनजाति समुदाय गोंडवाना धरती में अधिक संख्या में मिल रहे हैं , जिन्हे indigenous peoples कहते हैं।
लेखक
कोयतुर बुद्धम् श्याम
अम्बिकापुर (छत्तीसगढ़)