Sunday, August 24, 2025
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जंगलों को काटकर,जंगल सफारी बना रहे हैं ।

जंगलों को काटकर

जंगल सफारी बना रहे हैं ।
प्रकृति को बर्बाद कर 
खेतों में जंगल उगा रहें हैं ।
बिरसा तुम्हारे जंगल हो रहे वीरान
लूट रही जल ,जंगल ,जमीन ।
लो जनम फिर से 
लेकर तीर कमान ।
कर दो ऊल गुलाल फिर से 
आदिवासियों में भर दो जान ।
तुमने तो लड़ा अंग्रजों से 
जिसकी गोरा रंग था पहचान ।
आज तो अपनों के बीच 
सराफत की मुखडा लगाकर 
दुश्मन छुपे हैं 
जिसकी नही कोई पहचान ।
दो धारी तलवार के बीच 
नक्सल और फोर्स से 
निर्दोष आदिवासी हो रहे कुर्बान ।

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सोमती सिदार, पुसौर, रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
कविता संग्रह:- सोमती सिदार, पुसौर, रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
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