कांप उठे जल, जंगल, जमीन और पहाड़
कांप उठे जल, जंगल, जमीन और पहाड़
कांप उठे जल,जंगल, जमीन और पहाड़ !
तू शेर है दहाड़, तू शेर है दहाड़
तेरे पदचाप की आहट से
भय आतंक से थरथरा उठे वे लोग
जो भूखे है
जल,जंगल, जमीन के लिए
जो भूखे है
तुम्हारी बहन, बेटियों की अस्मिता से
खेलने के लिए
इससे पहले की वो आगे बढे
कर उनका शिकार
तू शेर है दहाड़,,,,,,,
तुम्हारे सीने में धधकती ज्वाला है
हवाओं के थपेडों में बुझने न दें
भर बारूद
मिटा दे उनका नामो-निशान
कई पुस्तो तक
नपुसंक पैदा हो उनके औलाद
जो करते रहे हैं तुम पर
सदियों से अतयाचार
तू शेर है दहाड़,,,,,,,,,,
सागर से भी गहरा घाव है तेरा
मरहम मत लगा
मिटा दे उन दरिन्दों को
जिसने तुम्हें घाव दिया
उठा ले अपने कंधो पर धरती का भार
तू शेर है दहाड़,,,,,,,,
उठा धनुष चढ़ा प्रत्यंचा
लगा तीर
तुम्हारे पीछे पीछे चल पड़े
यह कारवां
टूट पड़ो बनकर सैलाब
हटा दो रास्तों पर आने वाले
हरेक फौलादी चट्टानों को
वक़्त की यही है पुकार
तू शेर है दहाड़,,,,,,,,,
तू शहीद वीर नारायण ,बिरसामुणडा
गुण्डाधुर की औलाद है
मोम नहीं फौलाद है
तुम्हारे बाजुओ में
हजार हाथियों का बल है
तुम्हारे जंघाओ में
चीतों से भी तेज रफ्तार है
उठ खड़े हो
अपनी शक्ति को पहचान
कर प्रहार
तू शेर है दहाड़,,,,,,,,,
रचनाकार
सहदेव सोरी
मो. न. 9479059143
जिला बालोद छत्तीसगढ़